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पश्चिम एशिया का बढ़ता संकट

सीरिया के ऐतिहासिक शहर पलमेरा और इराक सीमा पर बसे शहर रमादी पर इस्लामिक स्टेट ऑफ सीरिया ऐंड इराक यानी आईएसआईएस का कब्जा हो जाना सीरिया और इराक, दोनों ही जगह युद्ध लड़ रहे अमेरिकी गठजोड़ के लिए बहुत...

पश्चिम एशिया का बढ़ता संकट
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 24 May 2015 08:03 PM
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सीरिया के ऐतिहासिक शहर पलमेरा और इराक सीमा पर बसे शहर रमादी पर इस्लामिक स्टेट ऑफ सीरिया ऐंड इराक यानी आईएसआईएस का कब्जा हो जाना सीरिया और इराक, दोनों ही जगह युद्ध लड़ रहे अमेरिकी गठजोड़ के लिए बहुत बड़ा झटका है। इससे अमेरिका की उस रणनीति की खामियां भी सामने आ गई हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह गलत सोच पर आधारित है और उस पर अधूरे दिल से अमल हो रहा है। अभी कुछ हफ्ते पहले तक वाशिंगटन, लंदन और अरब देशों की राजधानियों में परंपरागत समझ यह बन रही थी कि आईएसआईएस के पांव उखड़ चुके हैं, इसके पास न नगद पैसा है और न ही ज्यादा हथियार, फिर इन चीजों की आपूर्ति को लेकर भी समस्या है। यह भी स्वीकार किया जा रहा था कि आईएसआईएस की प्रचार मशीनरी अब भी मनोबल बनाए हुए है और नई भर्तियां भी कर रही है। लेकिन ताजा घटनाएं बताती हैं कि इन सब पर फिर से सोचने की जरूरत है। अब यह कहा जा रहा है कि ओबामा प्रशासन अपनी इस सोच की फिर से समीक्षा कर रहा है। रमादी शहर के आईएसआईएस के हाथों में चले जाने के बाद एक अमेरिकी अधिकारी ने बताया, 'जो हुआ, उससे हमें निराशा हुई है, हमें ऐसी आशंका नहीं थी, अब हमें सोचना है कि क्या गलत हुआ, इसे कैसे ठीक किया जाए और सही रास्ता क्या अपनाया जाए?' इस पर अमेरिका के पूर्व रक्षा सचिव रॉबर्ट गेट की टिप्पणी ज्यादा दो टूक है, 'हमारे पास कोई रणनीति है ही नहीं, हम तो वहां हर दिन एक अलग लड़ाई लड़ रहे हैं।' इस पर तत्काल प्रतिक्रिया बस इतनी ही हुई है कि इराकी फौज को तुरंत ही टैंक रोधी मिसाइलों की खेप भेज दी गई है। लेकिन इन दो शहरों में मिली मात से जो बड़े सामरिक और राजनीतिक सवाल उठे हैं, उनका जवाब अभी तक नहीं दिया गया।

प्राथमिकता अब भी इराक को ही दी जा रही है। वहां पिछले सितंबर में अमेरिका, ब्रिटेन और आधा दर्जन अन्य देशों ने हवाई हमले किए थे, जबकि सीरिया में स्थिति दूसरी है। सीरिया का ऑपरेशन पूरी तरह अमेरिका के अलावा सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की प्रतीकात्मक उपस्थिति पर ही निर्भर है। गठबंधन फौजों के बमवर्षकों ने अभी तक इराक पर 2,200 हवाई हमले किए हैं, जबकि सीरिया पर कुल 1,400 हवाई हमले ही हुए हैं। सीरिया और तुर्की की सीमा के कोबानी कस्बे को जब इन फौजों ने आईएसआईएस के कब्जे से मुक्त करवाया था, तो इसका खासा प्रचार हुआ था। पिछले हफ्ते अमेरिका ने स्पेशल फोर्स के उस हमले का खासा जिक्र किया, जिसमें आईएसआईएस को वित्तीय मदद देने वाला मारा गया था। ब्रिटेन ने इस बात के लिए काफी प्रयास किया था कि बशर-अल-असद के जरिये सीरिया से कच्चा तेल खरीदने वाले देशों पर पाबंदिया लगाई जाएं। इसके पीछे की सोच यही थी कि आईएसआईएस की आर्थिक स्थिति कमजोर कर दो। घरेलू आतंकवाद के मामले में भी यही किया जाता है।

हाल के कुछ हफ्तों में एक नई चीज यह हुई थी कि सऊदी अरब ने क्षेत्रीय ताकतों को जोड़ने के लिए काफी मेहनत की। वह अब अपने पुराने दुश्मनों कतर और तुर्की के साथ मिलकर एक ऐसा जोरदार गठजोड़ बना रहा है, जो सीरिया में जमीन पर सक्रिय उन असद विरोधी गुटों को मदद करेगा, जो आईएसआईएस से नहीं जुड़े। यह उन लोगों की मदद करना है, जो जमीन पर लड़ रहे हैं, 30,000 फीट की ऊंचाई से नहीं। इसके विपरीत अमेरिका ने जॉर्डन में कुछ हफ्ते पहले सीरिया के राष्ट्रपति असद से अलग सीरियाई गुटों को प्रशिक्षण और हथियार देने की एक योजना शुरू की थी, जो बहुत हैरतअंगेज ढंग से सुस्त रफ्तार में चल रही है। ब्रिटेन भी इस कोशिश का हिस्सा है, जिसका काम विपक्षी सीरियाई राष्ट्रीय मोर्चे को वित्तीय मदद और राजनीतिक समर्थन देना है। लेकिन सीरियाई राष्ट्रीय मोर्चे की यह मांग है कि इस पूरे इलाके को नो फ्लाई जोन और सेफ्टी जोन घोषित किया जाए, ताकि आम नागरिकों को असद की सेना, बैरल बमों और क्लोरीन गैस से बचाया जा सके, और इसी के चलते बात आगे नहीं बढ़ पा रही है।

विशेषज्ञों का कहना है कि अब इराक के मोर्चे पर अमेरिका को यह तय करना है कि वह बगदाद की लचर ढंग से आगे बढ़ रही सरकार को मदद बढ़ाने के पहले आईएसआईएस को कितनी और जीत का मौका देना चाहता है। ब्रुकलिन इंस्टीट्यूट के चार्ल्स लिस्टर का कहना है कि अमेरिका और उसके गठबंधन के सहयोगियों को सीरिया के उन विद्रोही गुटों को दी जाने वाली मदद बढ़ानी चाहिए, जिनका वे समर्थन करते हैं। लेकिन ये सब ऐसे मामले हैं, जिन पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की विश्वसनीयता काफी कम है। 'इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टै्रटेजिक स्टडीज' से जुड़े प्रतिष्ठित पश्चिम एशिया विशेषज्ञ एमाइल होकाएम का कहना है कि 'अगली बार, जब आईएसआईएस के बारे में अमेरिकी अधिकारी कोई बड़ा बयान दें, या अमेरिकी सेंट्रल कमांड आईएसआईएस के पांव उखड़ने का कोई नया नक्शा जारी करे, तो इसे सीधे कूड़ेदान के हवाले कर दें।'

इस पूरे मामले में बुनियादी समस्या यह है कि आईएसआईएस दो देशों में जो युद्ध लड़ रहा है, वह आपस में जुड़ा एक ही संकट है। और इस संकट को सुन्नी समुदाय का वह गुस्सा बरकरार रखे हुए है, जो यह मानता है कि अमेरिका और पश्चिम के देश अपने सामरिक कारणों से इराक के उन शिया गुटों को मदद दे रहा है, जिन्हें ईरान से शह मिली हुई है। दूसरी तरफ, पश्चिम एशिया में सामान्य सोच यह है कि जब तक सीरिया में असद की सरकार को मात नहीं मिलेगी, तब तक आईएसआईएस  को परास्त नहीं किया जा सकता। यह सही है कि सीरिया के राष्ट्रपति बसर अल-अशद की स्थिति हाल-फिलहाल में काफी कमजोर हुई है, इसके बावजूद उनके शासन का अंत कहीं से भी नजर नहीं आ रहा।
साभार- द गार्जियन
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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