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नगदी हस्तांतरण और बचत का गणित

घरेलू गैस पर मिलने वाली सब्सिडी का पैसा उपभोक्ता के खाते में सीधा हस्तांतरित (डीबीटी) करने संबंधी योजना की सफलता से उत्साहित सरकार ने अब सार्वजनिक वितरण प्रणाली को भी इसकी जद में लाने का मन बना लिया...

नगदी हस्तांतरण और बचत का गणित
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 08 Oct 2015 10:01 PM
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घरेलू गैस पर मिलने वाली सब्सिडी का पैसा उपभोक्ता के खाते में सीधा हस्तांतरित (डीबीटी) करने संबंधी योजना की सफलता से उत्साहित सरकार ने अब सार्वजनिक वितरण प्रणाली को भी इसकी जद में लाने का मन बना लिया है।

केंद्र ने सभी राज्य सरकारों से कहा है कि इस साल के अंत तक यह काम शुरू हो जाना चाहिए। रसोई गैस पर डीबीटी नवंबर 2014 से ही लागू है। सरकार 14.19 करोड़ उपभोक्ताओं के बैंक खाते में सब्सिडी के 25,447 करोड़ रुपये सीधे जमा करा चुकी है और  हेराफेरी पर अंकुश लगाकर उसने 15,000 करोड़ रुपये की बचत भी कर ली है। यह योजना जब राशन की दुकानों से मिलने वाले गेहूं-चावल पर लागू होगी, तब अंदाज है कि सरकार करीब 50,000 करोड़ रुपये और बचा लेगी।

केंद्र शासित चंडीगढ़ और पुडुचेरी में तो राशन का पैसा कार्ड धारक के खाते में सीधे जमा करने का काम शुरू भी हो चुका है। लेकिन राशन कार्डों की घटती संख्या इस योजना को सफलतापूर्वक लागू करने में आड़े आएगी। पिछले कुछ साल में देश की आबादी तो बढ़ी है, पर राशन कार्ड धारकों की संख्या 22 करोड़ से घटकर 16 करोड़ रह गई है। राशन के गेहूं-चावल के जरूरतमंदों को न मिलने और खुले बाजार में बिकने की शिकायत भी आम है।

केंद्र सरकार के अनुसार, अभी राशन का 20 से 25 प्रतिशत अनाज बाजार में ऊंचे दाम पर चोर-बाजारी से बेचा जा रहा है। एक डर यह भी है कि इस योजना के लागू हो जाने के बाद सरकार किसानों की उपज का न्यूनतम खरीद मूल्य बढ़ाने में हिचकिचाएगी, क्योंकि अनाज का जितना खरीद मूल्य बढ़ेगा, सरकार पर सब्सिडी का बोझ भी उतना बढ़ जाएगा। यदि किसानों की उपज की कीमत नहीं बढ़ी और उन्हें पेट भरने के लिए सस्ती दर पर पर्याप्त अन्न मिल गया, तो वे अनाज पैदा करने की बजाय अन्य नकदी फसल उगाएंगे। इससे अनाज का आयात करना पड़ेगा और खाद्य सुरक्षा पर संकट भी आएगा। खाद्य सुरक्षा कानून और डीबीटी लागू करने के लिए गांवों में मजबूत ढांचा  खड़ा करना होगा।

वैसे भी रसोई गैस और अनाज पर मिलने वाली सब्सिडी में भारी भेद है। राशन की दुकानों से मिलने वाले सस्ते गेहूं-चावल करोड़ों गरीबों के जीने का सहारा हैं। जो लोग राशन के भरोसे ही अपना जीवन चलाते हैं, उनमें से अधिकांश के लिए रसोई गैस कनेक्शन पाना और रखना एक सपना है। इसीलिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली में जरा-सी चूक से लाखों गरीबों के मुंह से कौर छिन सकता है। सरकार केरोसीन को भी डीबीटी से जोड़ना चाहती है। इससे भी उसे करोड़ों रुपये की बचत होगी। यह समय इस बचत के सही इस्तेमाल पर सोचने का भी है। अच्छा हो सब्सिडी से बची रकम का इस्तेमाल शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी योजनाओं पर किया जाए। इन दोनों क्षेत्रों को निवेश की सख्त जरूरत है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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