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बेटी मांगने वाला एक अनोखा व्रत

इधर कुछ दशकों में लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या कम हो गई है। गर्भ-परीक्षण से लिंग निर्धारण और कन्या भ्रूण की हत्या जैसी चीजों पर कड़ी सजा का भी प्रावधान किया गया है, लेकिन यह सिलसिला थम नहीं...

बेटी मांगने वाला एक अनोखा व्रत
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 16 Nov 2015 09:54 PM
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इधर कुछ दशकों में लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या कम हो गई है। गर्भ-परीक्षण से लिंग निर्धारण और कन्या भ्रूण की हत्या जैसी चीजों पर कड़ी सजा का भी प्रावधान किया गया है, लेकिन यह सिलसिला थम नहीं रहा। प्रधानमंत्री ने इसके लिए 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का विशेष अभियान भी शुरू किया है। लेकिन कृषि प्रधान समाज की वह मानसिकता इतनी आसानी से खत्म नहीं होगी, जो बेटे को ही महत्वपूर्ण मानती है। बेटे के लिए ही देवी-देवताओं से मनौतियां मानी जाती हैं। अधिकांश व्रत-त्योहार के पीछे बेटे की ही आकांक्षा होती है। लेकिन छठ अकेला ऐसा महापर्व है, जिसमें महिलाएं सूर्य देवता से बेटी मांगती रही हैं।

यह व्रत घर-परिवार में स्त्री की विशेष स्थिति का दिग्दर्शन कराता है। इसके गीतों में स्त्री की ही प्रधानता है। इतना बड़ा व्रत वह स्वयं करती है, पुरुष उसको सहयोग भर देता है। गीतों में सूर्य देवता की पूजा अर्चना के उपरांत महिलाएं अपनी मांग भी रखती हैं। उन मांगों में उनकी पहली मांग होती है हल-बैल और हलवाहा, यानी घर की आर्थिक उन्नति। फिर सभा में बैठने के लिए बेटा और नुपूर ध्वनि सुनने के लिए वे बहू मांगती हैं। बायना बांटने के लिए बेटी और पढ़ा-लिखा दामाद। इसके बाद धेनू गाय और सेवक-सेविका मांगती हैं। सूर्य देव व्रती महिला का मांग पत्र सुनकर कहते हैं कि यह स्त्री सभी गुणों से पूर्ण है। इसकी मांग एक परिवार को संतुलित बनाने की मांग है। यदि महिलाएं बेटी की मांग नहीं करतीं, तो शायद संतुलित मांग नहीं होती।

वही परिवार चलाती हैं, इसलिए उनका संतुलित होना बहुत जरूरी है। छठ-व्रत के गीतों में बेटी-बहन के रूप में स्त्री का बहुत वर्णन है। ऐसे ही एक गीत में एक पुरुष के बड़े-बडे़ दांत देखकर लोग डर जाते हैं। वह लोगों को विश्वास दिलाते हुए कहता है कि आप मत डरिए, मैं अपनी बहन का भाई हूं। छोटी-मोटी मेरी एक बहन है, जिसके केश जमीन पर लोटते हैं। मां उसके केश संभालती हैं। पिताजी दुलार करते हैं। इन गीतों को गाने वाला समाज बेटी विरोधी नहीं रहा है। इस व्रत में व्रती महिलाएं दो दिनों के लिए निर्जला रहकर पानी में खड़ी होकर सूर्य देवता को अर्घ्य देती हैं। वे अपने परिवार के लिए जन, धन और स्वास्थ्य की कामना करती हैं। वे एक नहीं, दो-दो परिवारों में सुख-संपत्ति की कामना रखती हैं- ससुरा ला मांगिले अन्न, धन, सोनमा। नइहर सहोदर जेठ भाई।

ससुराल में धन संपत्ति की मांग और मायके में अपना बड़ा भाई। एक महिला के लिए यह सुखद स्थिति होती है। बिना भाई के मायके का सुख नहीं, तो बिना बहन के भाई का भी मान नहीं। इसलिए सूर्य देवता से बेटी मांगी जाती रही है। इस व्रत में ब्याही लड़कियां भी मायके आती हैं। बाल-बच्चों के बड़े हो जाने पर वे स्वयं ससुराल में छठ-व्रत करती हैं। यह महिलाओं का अपना पर्व है, पुरुष तो इसमें सिर्फ सहायक हैं। इसलिए वे सूर्य देवता से जो कुछ मांगती हैं, उनमें बेटी भी होती है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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