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ईसप की जरूरत

कितने युग आए और बीत गए, लेकिन ईसप की कहानियां आबोहवा में बनी हुई हैं। इसे प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कार्ल गुस्ताव युंग 'कलेक्टिव अनकॉन्शस' या सामूहिक अवचेतन कहता है। यह अवचेतन मनुष्य की गहराइयों में बसा...

ईसप की जरूरत
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 04 Oct 2015 09:01 PM
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कितने युग आए और बीत गए, लेकिन ईसप की कहानियां आबोहवा में बनी हुई हैं। इसे प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कार्ल गुस्ताव युंग 'कलेक्टिव अनकॉन्शस' या सामूहिक अवचेतन कहता है। यह अवचेतन मनुष्य की गहराइयों में बसा है। हर युग में, हर सभ्यता में लोक कथाओं के भीतर ईसप जीता चला आया है। ईसप की कथाओं में पशु-पक्षी मनुष्यों की तरह बोलते हैं। यह अर्थपूर्ण है कि मनुष्य के संबंध में कुछ नग्न सत्य कहने हों, तो जानवरों से ही कहलवाए जा सकते हैं। जानवर मनुष्य जैसा आचरण करते हैं, तो यह मानवता पर करारा व्यंग्य हो जाता है। ईसप फ्रीजिया का एक गुलाम था। उन दिनों ग्रीस में एक चौथाई जनसंख्या गुलामों की थी। ईसप अत्यंत बदसूरत, बौना, बड़े पेट वाला इंसान था। उसे देखते ही लोगों को वितृष्णा होती थी। सेमस नगर का एक ग्रीक दार्शनिक क्झेनथस ईसप को खरीदकर घर ले आया।

जल्दी ही क्झेनथस ने पाया कि उसने एक शिक्षक को खरीदा है, न कि गुलाम को। बात-बात पर ईसप इतना गहरा ज्ञान देता कि क्झेनथस उसकी बात मानने पर मजबूर हो जाता। उस समय ग्रीस में सार्वजनिक हम्माम होते थे। एक बार क्झेनथस ने ईसप को सार्वजनिक हम्माम में यह देखने भेजा कि वहां भीड़ है या नहीं? ईसप ने वहां देखा कि दरवाजे के पास एक बड़ा पत्थर पड़ा था, हर कोई उससे टकराता और गाली देता हुआ आगे बढ़ जाता। तभी एक आदमी आया, वह भी पत्थर से टकराया, लेकिन उसने उस पत्थर को उठाकर दूर फेंक दिया। ईसप ने लौटकर बताया कि वहां तो बस एक ही आदमी है। क्झेनथस हम्माम पहुंचे, तो देखा कि वहां तो बड़ी भीड़ लगी है। नाराज होकर ईसप से पूछा, 'तू तो कह रहा था कि यहां एक ही आदमी है?' ईसप ने पूरी बात बताई, तो खुद इतने बड़े दार्शनिक क्झेनथस भी निरुत्तर हो गए। हमारे पास ईसप नहीं है, पर उसकी कहानियां तो हैं।      

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