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आयकर में कटौती से बढ़ेगी अर्थव्यवस्था

देश के मध्य वर्ग में एक बार फिर उम्मीद जगी है। डॉयरेक्ट टैक्स व्यवस्था में सुधार की बात एक बार फिर चर्चा में है। फिर से यह बात होने लगी है कि सुधारों से सरकार की कर आमदनी बढ़ाने के साथ ही निवेश व बचत...

आयकर में कटौती से बढ़ेगी अर्थव्यवस्था
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 20 Jan 2016 09:46 PM
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देश के मध्य वर्ग में एक बार फिर उम्मीद जगी है। डॉयरेक्ट टैक्स व्यवस्था में सुधार की बात एक बार फिर चर्चा में है। फिर से यह बात होने लगी है कि सुधारों से सरकार की कर आमदनी बढ़ाने के साथ ही निवेश व बचत व बचत का रास्ता भी खोला जा सकता है। यह भी सच है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने पहले साल में प्रत्यक्ष कर व्यवस्था में सुधार या इसके सरलीकरण के लिए कुछ नहीं किया।

उसकी सारी कोशिशें अप्रत्यक्ष कर, यानी जीएसटी पर ही केंद्रित रहीं, जिसका मामला आगे नहीं बढ़ पाया। फिलहाल चर्चा इसलिए भी शुरू हो गई हैं, क्योंकि आयकर नियमों को सरल बनाने के उपाय तलाशने के लिए गठित जस्टिस आर वी ईश्वर की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) की सीमा बढ़ाने के साथ ही इस पर कर की दर में भी कमी की जानी चाहिए।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में करीब 65 फीसदी व्यक्तिगत आयकर का संग्रह टीडीएस के जरिए होता है, इसलिए इसके प्रावधानों को ज्यादा अनुकूल बनाया जाना चाहिए। राष्ट्रीय बचत योजना और प्रतिभूतियों पर ब्याज पर भी टीडीएस की सीमा बढ़ाने की सिफारिश की गई है। सुझाव दिया  गया है कि ऐसे मामलों में टीडीएस सीमा को मौजूदा 2,500 रुपये से बढ़ाकर 15,000 रुपये, बैंक जमा से होने वाली आय पर टीडीएस सीमा मौजूदा 10,000 रुपए से बढ़ाकर 15,000 रुपये और अन्य जमा खातों पर इसे बढ़ाकर 5,000 रुपये किया जाना चाहिए। इसी तरह, किराये से होने वाली आय के लिए टीडीएस की सीमा 1.8 लाख रुपये से बढ़ाकर 2.4 लाख रुपये करने की सिफारिश की गई है। साथ ही, पेशेवर या तकनीकी सेवाओं के लिए टीडीएस सीमा 30,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये करने का सुझाव दिया गया है। ये सारी सिफारिशें ऐसी हैं, जिनसे मध्य वर्ग ही नहीं, देश का व्यापारिक समुदाय और कई उद्योग भी काफी राहत महसूस करेंगे।

ऐसे समय में, जब फिर से विश्व व्यापी मंदी की चर्चा शुरू हो गई है, वक्त आ गया है कि सरकार कई मोर्चों पर अपनी रणनीति बदले। सबसे जरूरी है कि घरेलू मांग बढ़ाई जाए। इससे एक तो देश के उद्योगों की विदेशी बाजार पर निर्भरता कम होगी, दूसरे विकास दर को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। यह तभी संभव हो सकता है, जब उपभोक्ताओं के हाथ में ज्यादा धन आए। सरकार ने वेतन आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार करके सरकारी कर्मचारियों के लिए अधिक आमदनी के रास्ते तो खोल दिए हैं, लेकिन बाकी वर्गों की आमदनी भी बढ़ाए जाने की जरूरत है। इस काम को कुछ हद तक करों में कमी करके किया जा सकता है। यह ठीक है कि करों में कटौती लोगों की क्रय क्षमता को एक हद से ज्यादा नहीं बढ़ा सकती, लेकिन यह कम-से-कम मध्य वर्ग पर पड़े महंगाई के बोझ को तो कम कर ही सकती है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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