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स्कीजोफ्रेनिया डे 24 को शहर में बढ़ रही है मरीजों की संख्या

शहर में बढ़ रही है मरीजों की संख्या

स्कीजोफ्रेनिया डे  24 को  शहर में बढ़ रही है मरीजों की संख्या
Tue, 23 May 2017 09:00 PM
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गाजियाबाद। वरिष्ठ संवाददाता

शहर में स्कीजोफ्रेनिया के मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। पिछले दो वर्षों में 5 फीसदी मरीजों की संख्या बढ़ी है। मनोचिकित्सकों के पास पहुंचने वाले कुल मरीजों में से 40 फीसदी स्कीजोफ्रेनिया के मरीज होते हैं। इसके लक्षण अलग-अलग होने के कारण इनको पहचानना मुश्किल है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि इस बीमारी से पीड़ित लोग चिकित्सक के पास बाद में पहले तात्रिंक आदि के पास जाते हैं, जिससे बीमारी बढ़ जाती है।

मनोचिकित्सक आर चन्द्रा ने बताया कि स्कीजोफ्रेनिया 84 फीसदी मरीजों में अनुवाशिंक होती है। हालांकि इस बीमारी का असर बचपन में नहीं दिखता। 15-16 साल की उम्र में असर दिखने शुरू होता है। बीमारी परिवार में एक से अधिक लोगों को भी हो जाती है। इसके अलावा गांजा, भांग, सिगरेट और शराब के लगातार सेवन से भी इस बीमारी के होने की संभावना होती है। इस बीमारी की चपेट में आने के बाद नशा करना और भी खतरनाक होता है। मरीज हिंसक हो जाता है। मनोचिकित्सक संजीव त्यागी ने बताया कि पिछले दो वर्षों में स्कीजोफ्रेनिया के मरीजों में बढ़ोत्तरी हुई है। इस दौरान मानसिक रोग क्लीनिकों में पहुंचने वाले कुल मरीजों में 35 फीसदी स्कीजोफ्रेनिया के होते थे लेकिन अब 40 फीसदी हैं।

जागरूकता जरूरी

संवेदना सोसाइटी फॉर मेंटल हेल्थ की ओर से मंगलवार को संवाददाता सम्मेलन का आयोजन किया गया। मनोचिकित्सक संजीव त्यागी ने बताया कि संस्था मरीजों को जागरूक करने का प्रयास कर रही है। दांपत्य जीवन टूटने के कई मामलों में स्कीजोफ्रेनिया रोग सामने आता है।

शक करना प्रमुख लक्षण

मनोचिकित्सक हेमिका अग्रवाल ने बताया कि इस बीमारी का प्रमुख लक्षण एक दूसरे पर शक करना होता है। मरीज को अपने करीबी पर विश्वास नहीं होता है। कई मरीज ऐसे होते हैं जो लगातार एक ही स्थिति में घंटों-घंटों बैठे रहते हैं। ऐसे लक्षणों को देखकर मरीज को पहचाना जा सकता है।

ये हैं अन्य लक्षण

- मरीज अपनी जिम्मेदारियों तथा जरूरतों का ध्यान नहीं रख पाता

- वह अक्सर खुद ही मुस्कुराता या बुदबुदाता दिखाई देता है

- रोगी कभी-कभी बेवजह खुद या किसी और को चोट भी पंहुचा सकता है

- रोगी की नींद व अन्य शारीरिक जरूरतें भी बिगड़ सकती हैं

- यह आवश्यक नहीं की हर रोगी में ये सभी लक्षण दिखाई दें

- कुछ समय बाद उसकी नींद में बाधाएं आने लगती है

- मरीज के हाव-भाव में कुछ अजीब बदलाव आने लगते हैं

- उसकी हरकतों के बारे में पूछने पर वह जवाब देने से कतराता है

तनाव से बचाव जरूरी

अत्यधिक तनाव, सामाजिक दबाव तथा परेशानियां भी बीमारी को बनाए रखने या ठीक न होने देने का कारण बन सकती हैं। मस्तिष्क में रासायनिक बदलाव या कभी-कभी मस्तिष्क की कोई चोट भी इस बीमारी की वजह बन सकती है।

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