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फिल्म रिव्यू : पीके

शायद सब लोग एक शब्द में जानना चाहते हैं कि आमिर खान की ‘पीके’ कैसी फिल्म है। अगर एक ही शब्द में बता दिया जाए तो आप में से बहुतेरे आगे कुछ भी पढ़ना पसंद नहीं करेंगे। और फिल्म देखने के बाद...

फिल्म रिव्यू : पीके
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 20 Dec 2014 02:25 PM
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शायद सब लोग एक शब्द में जानना चाहते हैं कि आमिर खान की ‘पीके’ कैसी फिल्म है। अगर एक ही शब्द में बता दिया जाए तो आप में से बहुतेरे आगे कुछ भी पढ़ना पसंद नहीं करेंगे। और फिल्म देखने के बाद मैं कौन-सा गीत गुनगुनाता हुआ बाहर निकला, ये आप जानेंगे तो हो सकता है कि आप में से बहुत सारे लोग ये फिल्म देखने ही न जाएं। ये फिल्म देखने के बाद मुङो हृतिक रोशन की फिल्म ‘कोई मिल गया’ का एक गीत ‘जादू जादू..’ गुनगुनाने का मन किया। तो क्या ये फिल्म किसी एलियन के अपने ग्रह वापस लौटने की कहानी कहती है, जिसकी मदद एक धरतीवासी करता है? तो जवाब है, हां। फिल्म की बेसिक कहानी या मेन प्लॉट यही है। तो फिर इसमें अलग और नया क्या है। बेशक फिल्म में कुछ नया भी है और काफी कुछ अलग भी।
 
ये कहानी है किसी अनजान ग्रह से आए एक एलियन की, जिसका धरतीवासी नाम रख देते हैं पीके (आमिर खान)। उसकी अजीब हरकतों और ऊल-जलूल सवालों के चक्कर में आकर उसका ये नाम रखा जाता है। एक टीवी रिपोर्टर जगत जननी उर्फ जग्गू (अनुष्का शर्मा) को जब पीके के धरती पर आने की असली कहानी पता चलती है तो वह उसे वापस भेजने का जिम्मा लेती है। पर इस पूरे प्रोजेक्ट में एक अड़चन है, जिसका नाम है स्वामी जी (सौरभ शुक्ला)। एक धर्म गुरु, जिसके पास है वो यंत्र, जिसके जरिये पीके अपने ग्रह वापस जा सकता है। ये वो यंत्र है, जो पीके से एक व्यक्ति ने छीन लिया था। और इसी यंत्र को पाकर स्वामी जी अपने भक्तों से मंदिर बनाने के लिए पैसा इकट्ठा कर रहे हैं, ये कह कर कि ये यंत्र भगवान ने उन्हें दिया है। जग्गू की योजना के अनुसार वो पीके को न केवल वो यंत्र वापस दिलवाना चाहती है, बल्कि स्वामी जी का भंडाफोड़ भी करना चाहती है।

मेन प्लॉट पता चल जाने के बाद आखिर इस ढाई घंटे की फिल्म में ऐसा क्या है, जो आपको बांधे रखेगा? वो है आमिर खान की बेहतरीन एक्टिंग और फिल्म में वो छोटी-छोटी बातें, जिन्हें आज कोई चौराहे पर करने बैठ जाए तो लोग उसे मिनटभर में पागल या बावला कह कर भगा देंगे। इन छोटी-छोटी बातों को बेहद असरदार बनाया है राजू हिरानी और उनकी टीम ने।


धर्म और आस्था के नाम पर ये वो बातें है, जिनसे आप और हम कभी न कभी दो चार जरूर हुए होंगे। ये वो सवाल हैं, जो मन में तो कई बार उठते हैं, लेकिन जब उनका मुकम्मल जवाब नहीं मिलता तो दब कर रह जाते हैं। अपनी पिछली फिल्मों की तरह राजकुमार हिरानी ने ऐसी ढेर सारी छोटी-छोटी बातों और घटनाओं से इस फिल्म को सजाया है। अच्छी बात ये है कि ये तमाम बातें बेशक धर्म और आस्था से जुड़ी हैं, लेकिन इनमें भाषणबाजी नहीं है। लगभग हर बात काफी हल्के-फुल्के अंदाज में कही गई है। डांसिंग कार क्या है, ये आप फिल्म देख कर जानें तो अच्छा है। और भी कई बातें हैं। जैसे मातम और खुशी का रंग क्या है, काला या सफेद? क्या इंसान धर्म की पहचान साथ लेकर पैदा होता है? और दूसरे ग्रह पर क्या झूठ नाम की कोई चीज होती है? दूसरे ग्रह से आया कोई इंसान धरती से अपने साथ क्या लेकर जाना चाहेगा?

फिल्म में मौजूदा दौर में हो रही बातों और चलन का भी जिक्र है। ये वो तमाम बातें हैं, जिन्हें कुछ देर के लिए ही सही आप घर साथ ले जा सकते हैं। और अंत में राजू हिरानी स्टाइल का इमोशनल इफेक्ट भी है। ये जानना रोचक है कि आखिर एक एलियन इतनी बढ़िया भोजपुरी कैसे बोल लेता है।

‘तलाश’ के बाद आमिर खान ने फिर से अच्छी एक्टिंग की है। इसलिए फिल्म में बाकी कलाकारों के कुछ करने का स्कोप बेहद कम दिखता है। सुशांत सिंह राजपूत का रोल बेहद छोटा है। सौरभ शुक्ला फनी लगे हैं। गीत-संगीत साधारण है, जबान पर चढ़ने वाला नहीं है। पर तमाम अच्छी बातों के साथ ये फिल्म राजू हिरानी के पिछले कार्यों का दोहराव-सा ही लगती है, क्योंकि फिल्म में कई ऐसी बातें है, जिनकी बखिया वो पहले भी उधेड़ चुके हैं। ऐसा लगता है कि उन्होंने ‘3 ईडियट्स’ के बाद आमिर के किरदार को सामाजिक जीवन में विस्तार दिया है। इसलिए इस फिल्म से चमत्कार की उम्मीद लगभग खत्म-सी हो जाती है।photo1

कलाकार : आमिर खान, अनुष्का शर्मा, संजय दत्त, सुशांत सिंह राजपूत, बोमन ईरानी, सौरभ शुक्ला निर्देशक: राजकुमार हिरानी निर्माता : विधु विनोद चोपडम, राजकुमार हिरानी लेखक-संवाद-पटकथा : अभिजात जोशी, राजकुमार हिरानी
संगीत : शांतनु मोइत्रा, अजय-अतुल
गीत : स्वानंद किरकिरे, अमिताभ वर्मा

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