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फिल्म रिव्यू: खामोशियां: चुप्पी में छुपे हैं ढेरों राज

हर खामोशी में कुछ न कुछ राज होता है। और अगर राज न हो तो दर्द होता है। इन्हीं दो लाइनों के इर्द-गिर्द  निर्देशक करण राणा ने अपनी हालिया फिल्म खामोशियां का ताना-बाना बुनने की कोशिश की है। फिल्म की...

फिल्म रिव्यू: खामोशियां:  चुप्पी में छुपे हैं ढेरों राज
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 31 Jan 2015 01:12 PM
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हर खामोशी में कुछ न कुछ राज होता है। और अगर राज न हो तो दर्द होता है। इन्हीं दो लाइनों के इर्द-गिर्द  निर्देशक करण राणा ने अपनी हालिया फिल्म खामोशियां का ताना-बाना बुनने की कोशिश की है। फिल्म की कहानी एक ऐसे प्रेमी से शुरू होती है,  जिसकी प्रेमिका उसके साथ बेवफाई करके दूसरे के साथ शादी करने वाली है। इस बात से गुस्से में आकर कबीर (अली फजल)  प्रेमिका के साथ बिताए अंतरंग पलों के वीडियो सबको भेज देता है।

उसकी प्रेमिका उसे कहती है कि उसने अलग होने का फैसला इसलिए लिया है,  क्योंकि कबीर ने अपनी जिंदगी में कोई काम पूरा नहीं किया। ये बात कबीर के दिल को लग जाती है। कबीर पेशे से राइटर है। वह अपनी नई किताब के लिए कहानी ढूंढ़ने निकल पड़ता है। इस दरमियान वह कश्मीर के एक ऐसे घर में पहुंचता है,  जहां मीरा (सपना पब्बी) बहुत बड़े घर में अकेली रहती है। शुरू से ही मीरा का व्यवहार अजीब था।

कबीर मीरा के इस व्यवहार के पीछे के राज को जानने की कोशिश करता है। इस कोशिश में कबीर और मीरा के बीच प्यार हो जाता है,  लेकिन कबीर के साथ घर में रह-रह कर अजीबोगरीब घटनाएं घटती हैं। कबीर के पूछने पर मीरा राज तो खोलती है, पर झूठ बोल कर। मीरा का पति जयदेव (गुरमीत चौधरी) बहुत पहले मर चुका होता है। जयदेव की आत्मा मीरा के साथ-साथ कबीर को भी खूब सताती है। कबीर, मीरा और जयदेव तीनों की ही जिंदगी में कई राज हैं, जिन्हें वे सब खामोश रह कर एक-दूसरे से छिपाते हैं। परत-दर-परत जब राज का पर्दाफाश होता है, तब जाकर पता चलता है कि आखिर सच्चाई क्या थी। photo1

ये हुई कहानी,  जो लिखने में तो एक सूत्र में लगती है,  लेकिन जब आप सिनेमाघर में फिल्म देख रहे होंगे तो कहानी इधर से उधर भटकती रहेगी और इसके सिरे जोड़ने में आपका सिर चकरा जाएगा। और अगर आपने ज्यादा मशक्कत की तो आखिर में हाथ कुछ नहीं आएगा, बस बची रह जाएंगी खामोशियां। यह जरूर है कि फिल्म में कलाकारों ने अपनी बेहतरीन एक्टिंग से  प्रभावित किया है। दूसरी तरफ निगम बोमजान ने बेहतरीन सिनेमैटोग्राफी के जरिये 70 एमएम स्क्रीन पर खूब रंग बिखेरे हैं। साथ ही अंकित तिवारी के गाए गाने कुछ वक्त के लिए हॉरर दृश्यों से सुकून दिलवाने में जरूर कामयाब हुए हैं।


कलाकार:  गुरमीत चौधरी, अली फजल, सपना पब्बी
निर्देशक: करण दारा
निर्माता: महेश भट्ट (प्रस्तुतकर्ता)/मुकेश भट्ट
संगीत: अंकित तिवारी, जीत गांगुली
सिनेमैटोग्राफी: निगम बोमजान
लेखक: विक्रम भट्ट निर्माता
कंपनी: विशेष फिल्म्स

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