फिल्म रिव्यू: मुंबई 125 किमी
फिल्म खत्म होने को थी और दिमाग में सिर्फ एक सवाल घूम रहा था कि एक भटकती आत्मा के ग्लैमर रहित रोल के लिए आखिर वीना मलिक को क्यों लिया गया? तभी फिल्म जंगल के अंधियारे से निकल कर फ्लैशबैक के उजाले में...
फिल्म खत्म होने को थी और दिमाग में सिर्फ एक सवाल घूम रहा था कि एक भटकती आत्मा के ग्लैमर रहित रोल के लिए आखिर वीना मलिक को क्यों लिया गया? तभी फिल्म जंगल के अंधियारे से निकल कर फ्लैशबैक के उजाले में जाती है। वीना का असली रूप सामने था। सबसे पहले पूल शॉट। बिकनी पहने वीना पूल से बाहर निकलती हैं। पलभर में बेडसीन और वीना के अपने पति से झगड़ते हुए आधा दजर्न मसालेदार डॉयलाग। वीना इस फिल्म में क्यों थीं, अब इससे आगे बताने की जरूरत नहीं है। लंबे समय से बन रही फिल्म ‘मुंबई 125 कि.मी.’ रिलीज के दहलीज पर लुका-छिपी करती आखिर दर्शकों के सामने आ ही गई। नए साल के जश्न में मुंबई जा रहे चार दोस्त आशिका (वेदिता प्रताप सिंह), प्रेम (करनवीर बोहरा), विवेक (विजय भाटिया), दीया (अपर्णा बाजपेयी) और जैक (जॉय देबरॉय) को हाईवे पार करते ही जंगल में बीच रास्ते पर एक पालना दिखता है। पालना साइड कर ये लोग आगे बढ़ जाते हैं। तभी घायल अवस्था में एक व्यक्ति उनके गाड़ी के सामने आ जाता है। थोड़ा और आगे जाने पर प्रेम को जंगल में एक लड़की दिखाई देती है, जिसकी गोद में एक बच्चा होता है। ऐसी कई रहस्यमयी बातें इनके साथ होती हैं। इसी दौरान जैक कहीं गायब हो जाता है और थोड़ी देर में एक कार उसकी लाश फेंक कर चली जाती है।
फिल्म फ्लैशबैक में चली जाती है, जहां पता चलता है कि वो भटकती औरत पूनम (वीना मलिक) है और वो घायल व्यक्ति उसका पति, लेकिन तब तक आशिका को छोड़ कर उसके बाकी तीनों दोस्त अपनी जान गंवा चुके होते हैं। आशिका ठान लेती है कि वो इस रहस्य की गुत्थी को सुलझा कर रहेगी। फिल्म की कहानी, अभिनय और गीत-संगीत के बखिये बाद में उधेड़ेंगे, पहले जरा ये समझ लिया जाए कि फिल्म को 3डी में बनाने की क्या आफत आन पड़ी थी। इससे बकवास 3डी इफेक्ट आपने पहले कभी नहीं देखा होगा। एक तो पूरी फिल्म अंधेरे में, ऊपर से हवा में कलाबाजी करती वीना। डर तो छोड़िए, ये सब नाटकबाजी देख कर आपकी हंसी भी किसी कोने में दुबक जाएगी। एक तरफ हॉलीवुड के दिग्गज फिल्मकार भारत में 3डी इफेक्ट बनवाने पर जोर दे रहे हैं और इधर एक हॉरर फिल्म के 3डी इफेक्टस का ये हाल!
अब बात कहानी की। करीब दो घंटे की ये फिल्म जंगल से आगे कहीं बढ़ती ही नहीं है। जहां पहली बार गाड़ी रुकती है, वहीं से साफ होने लगता है कि अब कोई न कोई मरेगा। रामसे बंधुओं से इसकी आदत भारतीय जनमानस को लग चुकी है। वो यही सब दिखा कर हॉरर आईकन बने हैं। वेदिता प्रताप सिंह, कुछ समय पहले तक टेली शॉपिंग का विज्ञापन किया करती थीं। करनवीर बोहरा टीवी शोज के एक्टर हैं। बाकियों का पता नहीं। वीना ने भुतहा मेकअप करना भी मुनासिब नहीं समझा। उनके चेहरे पर आती दरारें स्पेशल इफेक्ट्स का नतीजा हैं। फिल्म में न तो डर के झटके हैं और न ही झटकों का डर।
कलाकार: वीना मलिक, विजय भाटिया, करनवीर बोहरा, वेदिता प्रताप सिंह, अपर्णा बाजपेयी, जॉय देबरॉय, डिआना उप्पल
निर्माता: हेमंत मधुकर, मणि शर्मा
निर्देशक-लेखक: हेमंत मधुकर
संगीत: मणि शर्मा, जेएसएल सिंह
पटकथा-संवाद: हेमंत मधुकर, धीरत रतन