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फिल्म रिव्यू: किल दिल

सबसे पहली बात ये कि इस फिल्म का टाइटल ट्रैक 'क क क किल किल द द द दिल दिल..' जबरदस्त है, जो फिल्म के कई हिस्सों में है और विभिन्न दृश्यों के साथ मैच करता है। दूसरी बात ये कि फिल्म में गोविंदा का...

फिल्म रिव्यू: किल दिल
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 15 Nov 2014 11:39 AM
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सबसे पहली बात ये कि इस फिल्म का टाइटल ट्रैक 'क क क किल किल द द द दिल दिल..' जबरदस्त है, जो फिल्म के कई हिस्सों में है और विभिन्न दृश्यों के साथ मैच करता है। दूसरी बात ये कि फिल्म में गोविंदा का नेगेटिव रोल, रसीली-चटकीली डायलॉगबाजी मजा देती है, तीसरी और अंतिम बात ये कि रणवीर सिंह फिल्म में अकेला ऐसा सितारा है, जिसकी बाकी सितारों संग गजब की केमिस्ट्री है। फिर भी शाद अली की ‘किल दिल’ एक पुराने स्टाइल की फिल्म से ज्यादा कुछ नहीं है।

‘किल दिल’ के डी में छिपा है डेविल भैयाजी (गोविंदा), जो अपने गलत काम करवाता है। के यानी किलर लुक वाला देव (रणवीर सिंह) और आई यानी इंटेलिजेंट टुटु (अली जफर)। एक दिन देव-टुटु की मुलाकात होती है एल यानी लवली-सी लड़की दिशा (परिणीति चोपड़ा) से, जो मस्त है, बिंदास है और तेज भी। दिशा के इस तेज-तर्रारपने पर देव मर-मर जाता है। दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती हैं और प्यार हो जाता है, पर दिशा को यह नहीं पता कि देव-टुटु करते क्या हैं। ये बात जब भैयाजी को पता चलती है तो लाजमी है कि वो आग-बबूला होगा। और आग-बबूला होगा तो कुछ न कुछ करेगा जरूर! तो भैया अपने प्यादे देव को वापस लाने के लिए एक चाल चलता है, जिसके बाद दिशा को इन दोनों की असलियत का पता चल जाता है।

इसके बाद क्या होता है,  इसके लिए या तो फिल्म देखिए या फिर आइडिया लगा लीजिए। ऐसे मामलों में हिंदी फिल्मों की कहानी कहां तक जाती है, इसका अंदाजा अगर आपको है तो आप सही ट्रैक पर हैं, क्योंकि फिल्म भी उसी ट्रैक पर है। पर ‘किल दिल’ कई जगह मजा देती है। देव-टुटु के किरदार अच्छे लिखे गए हैं। रणवीर नॉटी लगे हैं और परिणीति को इम्प्रेस करने का उनका अंदाज अच्छा है। अली जफर का रोल भी बराबरी का लिखा गया है, इसलिए एंटरटेनमेंट का डोज बराबर मिलता रहता है। पर फिल्म में परिणीति के पास करने के लिए कुछ खास नहीं है। ये बात अखरती है, क्योंकि दिशा का किरदार ही देव में बदलाव लाता है, नकारात्मक से सकारात्मक और फिर सकारात्मक से नकारात्मक, इसलिए इस किरदार को और मजबूत होना चाहिए था।

दूसरी ओर गोविंदा ने पूरी फिल्म में बांधे रखा है। भैयाजी का रोल आतंकित तो नहीं करता, लेकिन कहीं-कहीं डर की हल्की-सी आहट जरूर देता है। रोचक किरदारों के बावजूद ये फिल्म बहुत मजा नहीं देती। गीत-संगीत केवल देखने तक ही अच्छे लगते हैं। हालांकि गुलजार साहब ने गन-गोली के बीच गुलाब जैसे शब्द परोसने की पूरी कोशिश की है, पर टाइटल ट्रैक के अलावा कोई भी गीत जबान पर चढ़ता नहीं लगता। इसलिए ‘किल दिल’ एक रूटीन-सी मसाला फिल्म बन कर रह गई है। ऐसी फिल्मों से नब्बे के दशक में न जाने कितने निर्माताओं ने अपने बंगले और स्टूडियो खड़े किये होंगे।

कलाकार: रणवीर सिंह, परिणीति चोपड़ा, अली जफर, गोविंदा
निर्देशक: शाद अली
निर्माता: आदित्य चोपड़ा
संगीत: शंकर-अहसान-लॉय
गीत: गुलजार
पटकथा-संवाद: नितेश तिवारी, श्रेयस जैन, निखिल मेहरोत्रा

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