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FILM REVIEW: 'युवा' भटकी कहानी और बेजान निर्देशन

इस फिल्म के निर्देशक से पिछले दिनों बात हो रही थी। वो अपनी फिल्म के बारे में जब बता रहे थे तो लग रहा था कि फिल्म में वाकई कुछ अच्छी बातें निकल कर सामने आएंगी, लेकिन ऐसा कई बार होता है कि जो बातें या...

FILM REVIEW: 'युवा' भटकी कहानी और बेजान निर्देशन
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 27 Jun 2015 09:43 AM
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इस फिल्म के निर्देशक से पिछले दिनों बात हो रही थी। वो अपनी फिल्म के बारे में जब बता रहे थे तो लग रहा था कि फिल्म में वाकई कुछ अच्छी बातें निकल कर सामने आएंगी, लेकिन ऐसा कई बार होता है कि जो बातें या चीजें कागज पर लिखते समय या कहते-सुनते वक्त सामने रखी जाती हैं, वे जब फिल्म के रूप में सामने आती हैं तो पता चलता है कि वे पूरी तरह बदल गईं।

जसबीर भाटी की इस फिल्म के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। स्कूली बच्चों की जिंदगी पर आधारित यह फिल्म कुछ अच्छे विचारों और सोच के बावजूद निराश करती है। फिल्म की कहानी पांच दोस्तों की है। वे दोस्त कैसे एक छोटे स्कूल से निकल कर एक बड़े स्कूल में पहुंचते हैं। शरारतें करते हैं, पढ़ाई में ध्यान नहीं लगाते और फिर एक दिन वो एक मुसीबत में फंस जाते हैं तो उससे कैसे बचते हैं। इस बीच स्कूल प्रशासन के अलावा कहानी में इन बच्चों के माता-पिता और पुलिस प्रशासन के साथ-साथ कोर्ट के आदेश की भी भूमिका है।

राम प्रताप (विक्रांत राय), सलमान खान (मोहित बघेल), दीनबंधु (भूपेन्द्र सिंह), अनिल (रोहन मेहरा) और वीटी (मेधव्रत सिंह) को गांव के चौधरी साहब (ओमपुरी) बेहतर शिक्षा के लिए एक नामी स्कूल में दाखिला दिला देते हैं, जहां पांचों वहां के कोच (संग्राम सिंह) की नाक में दम करके रख देते हैं। स्कूल के प्रिंसिपल (रजित कपूर) को इन पांचों में अच्छे बच्चों वाले गुण दिखते हैं, लेकिन स्कूल के बाकी टीचर इन्हें बदमाश समझते हैं। ये पांचों आए दिन अपनी साथी छात्राओं निशा (विनती इंद्राणी), रश्मि (शीना बजाज), रोशनी (युक्ती कपूर), माला (नेहा खान) और पूजा (पूनम पांडे) को तंग करते रहते हैं।

एक दिन ये पांचों अपनी दोस्त निशा के घर पढ़ने के लिए रुक जाते हैं। रात को ये सारे घूमने के लिए बाहर जाते हैं तो देखते हैं कि एक कार से कोई लड़की गिरी है। घायल अवस्था में वे उसे अस्पताल पहुंचाते हैं। बाद में पता चलता है कि उस लड़की के साथ बलात्कार हुआ है। और घटनाक्रम कुछ ऐसा करवट लेता है कि उस बलात्कार के इल्जाम में ये चारों बच्चे फंस जाते हैं। इस पूरे मामले की जांच एसपी तेजवीर सिंह (जिमी शेरगिल) के हाथों में होती है, जो अपने ही ढंग से पूरे मामले को सुलझा लेते हैं।

देखा जाए तो फिल्म अपने मूल विषय से ही भटकी लगती है। निर्देशक का कहना है कि वह फिल्म के माध्यम से यह दिखाना चाहते हैं कि आजकल के बच्चे सामाजिक सरोकारों के प्रति जागरूक हो रहे हैं, जबकि फिल्म के किसी भी हिस्से से ऐसी गंभीरता या सरोकार नहीं झलकता। फिल्मांकन के लिहाज से भी यह फिल्म काफी कमजोर है। ऐसा एहसास ही नहीं होता कि आप कोई फिल्म देख रहे हैं। सभी कलाकार (स्कूली बच्चे) बेहद अपरिपक्व ढंग से अभिनय करते नजर आते हैं। संग्राम सिंह का रोल समझ से परे है।

बेहद बचकाने ढंग से फिल्म के अंत में एक जज को अपने ही ढंग का न्याय करते हुए दिखाया गया है।                          
कलाकार : जिमी शेरगिल, संग्राम सिंह, ओम पुरी, संजय मिश्रा, विक्रांत राय, रोहन मेहरा, मोहित बघेल, शीना बजाज, विनती इंद्राणी, युक्ति कपूर, पूनम पांडे, रजित कपूर, मनीष चौधरी, अर्चना पूरण सिंह
निर्देशन-कहानी : जसबीर बी. भाटी   निर्माता : अनिल डी. जेठानी, चंद्रेश डी. जेठानी
संगीत : राशिद खान, हनीफ शेख, प्रवीण-मनोज
गीत : भूपेन्द्र सिंह, हनीफ शेख, शिव सिंह

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