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फिल्म रिव्यू: हवाईजादा नहीं, इश्कजादा!

आजादी की पहली संगठित कोशिश यानी 1857  के करीब चार दशक बाद और आजादी के करीब पांच दशक पूर्व एक भारतीय नौजवान शिवकर गोविंद तलपड़े उर्फ शिवि हवाई जहाज बनाने का सपना देखता है। वह चाहता है कि आधुनिक...

फिल्म रिव्यू: हवाईजादा नहीं,  इश्कजादा!
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 31 Jan 2015 01:20 PM
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आजादी की पहली संगठित कोशिश यानी 1857  के करीब चार दशक बाद और आजादी के करीब पांच दशक पूर्व एक भारतीय नौजवान शिवकर गोविंद तलपड़े उर्फ शिवि हवाई जहाज बनाने का सपना देखता है। वह चाहता है कि आधुनिक समय में एक भारतीय कोई काम अंग्रेजों से पहले करके दिखाए। ऐसा कर वह भारतीयों में आत्मविश्वास पैदा करना चाहता है,  ताकि वे इस आत्मविश्वास के बूते आजादी  हासिल कर सकें। एक पीरियड फिल्म बनाने के लिए निश्चित रूप से यह एक अच्छा विषय था,  लेकिन निर्देशक विभु  वीरेंदर पुरी, जो फिल्म के लेखक भी हैं, के कन्फ्यूजन से यह एक ऐसी फिल्म बन कर रह गई, जिसने शिवि के पूरे व्यक्तित्व को छिछला बना कर रख दिया।

शिवि (आयुष्मान खुराना)  के मेंटर शास्त्री जी (मिथुन चक्रवर्ती)  भी हवाई जहाज बनाना चाहते थे। उनके पास एक बहुत पुरानी पुस्तक है, जिसमें विमान बनाने की तकनीक का वर्णन है। उनकी जान उस किताब में बसती है। अंग्रेज किसी भी कीमत पर उस किताब को हासिल करना चाहते हैं,  क्योंकि उन्हें लगता है कि शास्त्री जी बम बनाने की फिराक में हैं। वे उनके पीछे पड़ जाते हैं। उधर शिवि एक मस्तमौला,  आजाद ख्याल नौजवान है। वह चौथी क्लास में आठ बार फेल हुआ है,  लेकिन उसका व्यावहारिक तकनीकी ज्ञान गजब का है। शास्त्री जी से उसकी कई बार नोक-झोंक होती है। शास्त्री जी संयोग से एक बार उसके घर पहुंचते हैं। शिवि के कमरे में अजीबो-गरीब चीजें देख कर वे हैरान रह जाते हैं। उन्हें लगता है कि शिवि में कुछ खास है।

वह उसे अपना सहायक बनने की ऑफर देते हैं,  लेकिन शिवि इनकार कर देता है। उसे सितारा (पल्लवी शारदा) नाम की एक नाचने-गाने वाली लड़की से प्यार हो जाता है। वह उससे शादी करना चाहता है। उसके जमींदार पिता इस बात पर उसे घर से निकाल देते हैं। इस बीच सितारा भी मुंबई छोड़ कर हैदराबाद चली जाती है। उसका मानना है कि एक नाचने-गाने वाली किसी भले घर की पत्नी नहीं बन सकती। घर से निकाले गए और सितारा के बिछड़ने के दुख में सड़क पर नशे में धुत  पड़े शिवि को शास्त्री जी अपने अड्डे पर ले आते हैं। और फिर गुरु-शिष्य दोनों की आंखों में हवाई जहाज बनाने का सपना एक साथ पलने लगता है। दोनों इस मिशन में जुट जाते हैं। शिवि की आंखों में हवाईजादा बनने के सपने के साथ-साथ सितारा का सपना भी चलता रहता है।

बहरहाल पूरी फिल्म में पता ही नहीं चलता कि निर्देशक विभु पुरी शिवि को क्या दिखाना चाहते हैं?  हवाईजादा या इश्कजादा? वह इसे एक बायोपिक की तरह बनाना चाहते थे या किसी देशभक्ति की फिल्म की तरह? किसी व्यक्ति की जीवनी को पर्दे पर लाने के लिए निर्देशक को कई प्रलोभनों से बचना पड़ता है,  लेकिन विभु इन प्रलोभनों से बच नहीं पाए हैं। ज्यादा नहीं तो बॉलीवुड में ही बनी बायोपिक ‘पान सिंह तोमर’ और ‘भाग मिल्खा भाग’ से ही थोड़ी सीख ले ली जाती तो बात बन सकती थी। फिल्म में उन्होंने इतने मसाले भर दिए हैं कि स्वाद कड़वा-सा लगता है। करीब 160 मिनट की फिल्म में 35 मिनट गाने पर खर्च कर दिए गए हैं, जो टेढ़े-मेढ़े रास्तों से गुजरती फिल्म को और भटका देते हैं।

इस फिल्म का समय 19वीं सदी का आखिरी दशक है, लेकिन कई जगहों पर शायद निर्देशक इसे भूल गए हैं। किरदारों को ढंग से गढ़ा नहीं गया है। पटकथा हर समय हिचकोले खाती रहती है। इस फिल्म में प्राचीन ज्ञान-विज्ञान को जिस तरीके से पेश किया गया है, वह कई जगह हास्यास्पद लगने लगता है। कई दृश्यों में अनावश्यक कॉमेडी पैदा करने की कोशिश की गई है। कहानी में रिसर्च की कमी साफ दिखती है। अगर कहानी पर गंभीरता से काम किया गया होता तो फिल्म प्रामाणिक बन सकती थी। हालांकि संवाद कई जगह मजेदार हैं और कुछ दृश्य प्रभावित करते हैं। कुछ इमोशनल सीन भी भले लगते हैं।

आयुष्मान को देख कर शिवि का नहीं,  चार्ली चैप्लिन का अक्स आंखों के सामने उभरता है। उनका अभिनय देख कर लगता है कि वह ‘विक्की डोनर’ के पंजाबी मुंडे के खोल से अभी तक बाहर नहीं निकल पाए हैं। तमाम संभावनाओं के बावजूद वह बहुत साधारण लगते हैं। आयुष्मान इस फिल्म में गायक  के रूप में ज्यादा प्रभावित करते हैं। शिवि के भतीजे नारायण के रूप में बाल कलाकार नमन जैन प्रभावित करते हैं। शिवि के पिता के रूप में जयंत कृपलानी भी ठीक हैं। पल्लवी शारदा के लिए इस फिल्म में संभावनाएं थीं, लेकिन वह प्रभावित नहीं कर पाईं। वह सुंदर लगी हैं, लेकिन किरदार में रंग नहीं भर पाईं। फिल्म में अगर कोई बात सबसे ज्यादा सुकून देती है तो वह है मिथुन चक्रवर्ती का अभिनय। थोड़े-से झक्की, लेकिन जुनूनी वैज्ञानिक के रूप में उन्होंने शानदार अभिनय किया है। वह जब भी पर्दे पर आते हैं, असर छोड़ते हैं। गीत-संगीत ठीक है। कई गाने सुनने में अच्छे लगते हैं।

इस फिल्म का सबसे सकारात्मक पक्ष यह है कि यह आज की पीढ़ी को अपने भारतीय हवाईजादे शिवि के जीवन के बारे में कुछ ज्यादा और प्रामाणिक जानकारी पाने के लिए प्रेरित करेगी। शिवि के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने हवाई जहाज के आविष्कारक राइट बंधुओं से भी आठ साल पहले हवाई जहाज उड़ाने में कामयाबी पाई थी।

कलाकार:  मिथुन चक्रवर्ती, आयुष्मान खुराना, पल्लवी शारदा, जयंत कृपलानी, नमन जैन
निर्देशन व स्क्रीनप्ले:  विभु वी. पुरी
निर्माता:  राजेश बंगा, विशाल गुरनानी, विभु वी. पुरी
बैनर:  ट्राईलॉजिक डिजिटल मीडिया लि., रिलायंस एंटरटेनमेंट, फिल्म फार्मर्स प्रोडक्शन
कहानी:  विभु वी. पुरी, सौरभ आर. भावे
संगीत:  रोचक कोहली, मंगेश धाकड़े, विशाल भारद्वाज, आयुष्मान खुराना
गीत:  विभु वी. पुरी, मिर्जा गालिब
सिनेमेटोग्राफी:  सविता सिंह
संपादन:  शान मोहम्मद

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