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मैं अपनी रचनात्मकता से समझौता नहीं करता

भट्ट कैम्प से बतौर सहायक निर्देशक अपने करियर की शुरुआत करने के बाद पहली बार उसी कैम्प की फिल्म ‘जन्नत’ से बतौर स्वतंत्र निर्देशक बॉलीवुड में अपना करियर शुरू किया। अपनी एक खास पहचान बना...

मैं अपनी रचनात्मकता से समझौता नहीं करता
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 29 Aug 2014 08:03 PM
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भट्ट कैम्प से बतौर सहायक निर्देशक अपने करियर की शुरुआत करने के बाद पहली बार उसी कैम्प की फिल्म ‘जन्नत’ से बतौर स्वतंत्र निर्देशक बॉलीवुड में अपना करियर शुरू किया। अपनी एक खास पहचान बना चुके कुणाल देशमुख ने पहली बार भट्ट कैम्प के बाहर की फिल्म  ‘राजा नटवर लाल’ निर्देशित की है। उनसे की गई बातचीत के अंश

आपने तो सीरियल किसर इमरान हाशमी के साथ जोड़ी ही बना ली है?
इमरान से मेरे बहुत पुराने संबंध हैं। हम एक दूसरे को फिल्म ‘जहर’ के वक्त से जानते हैं, जो बतौर सहायक निर्देशक मेरी पहली फिल्म थी। स्वतंत्र निर्देशक के रूप में इमरान के साथ मेरी पहली फिल्म ‘जन्नत’ को जबरदस्त सफलता मिली थी। उसके बाद जब ‘जन्नत 2’ बनाई तो स्वाभाविक तौर पर उनका नाम दिमाग में था। जब मैं ‘राजा नटवरलाल’ लिख रहा था, उस वक्त तक इमरान स्टार बन चुके थे। स्क्रिप्ट लिखते समय इस चरित्र के लिए इमरान ही मेरे दिमाग में थे।

यानी आप इमरान को ही ध्यान में रख कर स्क्रिप्ट लिखते हैं?
चूंकि मैं भट्ट कैम्प से बाहर निकल कर पहली बार एक नये निर्माता के साथ काम कर रहा था तो मेरे दिमाग में यह विचार आया कि ऐसे कलाकार के साथ काम करूं, जिसके साथ मैं सहज हूं और फिर इमरान की अभिनय क्षमता का अंदाजा भी मुझे है, इसलिए उन्हें ही दिमाग में रखा।

मेरा सवाल यह है कि आप उन्हें ध्यान में रख कर ही स्क्रिप्ट लिखते हैं या..
नहीं! ऐसा नहीं है। मैंने ‘जन्नत’ की स्क्रिप्ट किसी को ध्यान में रख कर नहीं लिखी थी, पर जब ‘जन्नत 2’ बनाने लगा तो सीक्वल की वजह से इमरान आ गए। इसी तरह ‘तुम मिले’ की स्क्रिप्ट भी इमरान को दिमाग में रख कर नहीं लिखी थी, मगर ‘राजा नटवरलाल’ उन्हें ही दिमाग में रख कर लिखी। आखिरकार इमरान अब सुपरस्टार हैं।

एक ही कलाकार के साथ काम करने से रचनात्मकता बाधित नहीं होती?
जी नहीं! हम दोनों इस बात का ख्याल रखते हैं कि पहले की फिल्म का एक भी सीन न दोहराया जाए। हम तो सेटअप, लोकेशंस में भी दोहराव पसंद नहीं करते। माना कि हम कम्फर्ट जोन में काम करना पसंद करते हैं, पर रचनात्मकता के स्तर पर कोई समझौता नहीं करते।

पिछले दिनों इमरान की ‘शंघाई’, ‘घनचक्कर’, ‘एक थी डायन’ जैसी कुछ फिल्में बॉक्स ऑफिस पर चली नहीं?
हम यह क्यों भूल जाते हैं कि इमरान ने लीक से हट कर, अपनी ईमेज से इतर फिल्में करने का रिस्क उठाया। ‘शंघाई’ में उनके काम को सराहा गया। जिस वक्त उनका करियर ऊंचाई पर था, तब ऐसी फिल्में करने का रिस्क उठाया। मैं मानता हूं कि हर फिल्म की अपनी तकदीर होती है। कई बार अच्छी फिल्में भी नहीं चलतीं और यह भी कि फिल्म की असफलता के लिए कोई एक जिम्मेदार नहीं होता।

क्या फिल्म की कहानी मशहूर कॉनमैन नटवरलाल से प्रेरित है?
हमारी फिल्म कॉनमैन की नहीं, बल्कि बदले की कहानी है। यह एक छोटे-मोटे चोर की कहानी है, जो ठगे जाने पर बदला लेने के लिए ठगी करता है।

इस हिसाब से तो ‘जन्नत’, ‘जन्नत 2’ और ‘राजा नटवरलाल’ में काफी समानता है। तीनों फिल्मों में इमरान का पात्र ठगी ही करता है?
ऐसा नहीं है। ‘जन्नत’ और ‘जन्नत 2’ दोनों अपराध व ड्रामा वाली फिल्में थीं। एक में जुआ का मसला था तो एक में मैच फिक्सिंग का मसला, जबकि ‘राजा नटवरलाल’ में कहीं कोई अपराध नहीं है। यह पूरी तरह से बदले की दास्तान है।

कॉरपोरेट कंपनी यूटीवी डिज्नी के साथ काम करने के क्या अनुभव रहे?
शुरुआत में थोड़ी असहजता हुई, क्योंकि इससे पहले मैंने सिर्फ भट्ट कैम्प के लिए काम किया था, पर यूटीवी डिज्नी के साथ मेरे लिए फिल्म बनाना आसान रहा। सिद्धार्थ रॉय कपूर बेहतरीन निर्माता हैं। उन्होंने मुझे पूरी छूट दी।

भट्ट कैम्प के साथ फिर काम करेंगे?
भविष्य के बारे में नहीं सोचता। जब तक कोई विषय दिमाग में नहीं आता, तब तक कुछ भी नहीं कहा जा सकता, मगर मैं भट्ट कैम्प का हमेशा आभारी रहूंगा। मैंने भट्ट कैम्प के साथ काम करते हुए बहुत कुछ सीखा है। अब अपने हिसाब से कुछ नया और प्रयोगात्मक करने के लिए दूसरे निर्माताओं के साथ काम कर रहा हूं।

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