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फिल्म रिव्यू: बैंग बैंग

इस फिल्म के टाइटल ‘बैंग बैंग’ का सही अर्थ क्या है, इसके लिए आप अपने स्मार्टफोन पर गूगलिया लें। और अगर सिनेमाई भाषा में जानना चाहते हैं तो इसका मतलब है सलमान खान की ‘वॉन्टेड’,...

फिल्म रिव्यू: बैंग बैंग
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 03 Oct 2014 07:51 PM
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इस फिल्म के टाइटल ‘बैंग बैंग’ का सही अर्थ क्या है, इसके लिए आप अपने स्मार्टफोन पर गूगलिया लें। और अगर सिनेमाई भाषा में जानना चाहते हैं तो इसका मतलब है सलमान खान की ‘वॉन्टेड’, ‘किक’, ‘एक था टाइगर’ और ‘दबंग’ सरीखी पिछले पांच-छह सालों में आयी फिल्में। इस कड़ी में आप अजय देवगन की ‘सिंघम’ सीरीज को भी जोड़ लें तो कोई टेंशन नहीं। बे सिर-पैर की मार-धाड़, उठापटक, गाड़ियों की तोड़फोड़, यहां से कूदे वहां गिरे, नाच-गाना, भागम-भाग, बिना पासपोर्ट के विदेश चले जाना और फिर वापस भी आ जाने का मतलब है बैंग बैंग। इन तमाम बातों के बावजूद हृतिक रोशन-कैटरीना कैफ और निर्देशक सिद्धार्थ आनंद की फिल्म ‘बैंग बैंग’ में एक आकर्षण है। ये आकर्षण है हृतिक के कमाल के एक्शन सीन्स और स्टंट का, उनके चार्मिंग अभिनय का, डांस का, कैटरीना के ग्लैमर का, इन दोनों के बीच स्क्रीन केमिस्ट्री का और ओवरऑल फिल्म के ट्रीटमेंट का। आपको लगेगा कि फिल्म की कहानी के बारे में तो कुछ बताया ही नहीं। तो बॉस ‘बैंग बैंग’ में कहानी का ही लोचा है। सुजॉय घोष, अब्बास टायरवाला और सुरेश नायर जैसे लेखकों के बावजूद ‘बैंग बैंग’ की कहानी औसत दर्जे की है। वो क्यों, आइये बताते हैं।

लंदन के एक म्यूजियम से कोहिनूर हीरे की चोरी हो गयी है। कोहिनूर चुराने वाले पर प्राग में रहने वाले एक व्यक्ति हामिद गुल (जावेद जाफरी) ने तगड़ा इनाम रखा है। भारत में इस खबर से तहलका मचा है। इस हलचल से दूर शिमला में कोहिनूर की सौदेबाजी हो रही है। किसी को नहीं पता कि कोहिनूर किसने चुराया है, सिवाय हामिद के प्यादों के। और कोहिनूर का चोर यानी राजवीर (हृतिक रोशन) मग्न है हरलीन साहनी (कैटरीना कैफ) को इम्प्रेस करने में, जो कि शिमला के ही एक बैंक में रिसेप्शनिस्ट है। हरलीन को नहीं पता कि कोहिनूर राजवीर के पास है। वो तो उसे एक दिलफेंक पागल इंसान ही समझती है, जो बातें कम गोलियां ज्यादा चलाता है। उधर, आईएसएस एजेंट जोरावर (पवन मल्होत्रा) को पता चलता है कि राजवीर शिमला में है। पर उसके वहां पहुंचने से पहले ही राजवीर, हरलीन को लेकर किसी अनजान टापू पर पहुंच जाता है। उसके बाद तलाश शुरू होती है उमर जफर (डैनी) की, जो कि कोहिनूर का असली मालिक बनना चाहता है।

अंग्रेजी फिल्म ‘नाइट एंड डे’ की ही तरह ‘बैंग बैंग’ की कहानी में भी कई उलझाव हैं। ‘धूम 3’ की तरह इस फिल्म में भी चोरी का कोई आकर्षण नहीं है, जबकि 1978 में आई धर्मेन्द्र की फिल्म ‘शालीमार’ में एक हीरे की चोरी पर पूरी फिल्म खींच दी गयी थी। फिर भी 1971 में आयी जेम्स बॉन्ड सीरीज की सातवीं किस्त ‘डायमंड्स आर फोरएवर’ जैसे पुख्ता प्लाट की कमी हमेशा ही खली है। ‘बैंग बैंग’ में एक जासूस पर  हृतिक रोशन का हीरोइज्म हावी दिखाई देता है। अगर कहानी में कुछ नई बातें होतीं, कुछ समझदारी भरे धुमाव होते, सिर खुजाने लायक सस्पेंस या क्लाईमैक्स होता तो शायद ‘बैंग बैंग’ मील का पत्थर साबित होती।

सिद्धार्थ आनंद ने अपना पूरा ध्यान फिल्मिंग और एक्शन पर केन्द्रित कर डाला है। और इन दोनों पक्षों के प्रति ईमानदारी साफ झलकती भी है। इस फिल्म में हृतिक के एक्शन सीन्स वाकई कमाल के हैं। मुझे याद नहीं पड़ता कि किसी फिल्म में हृतिक की एंट्री किसी सुपरस्टार की तरह हुई हो। इस फिल्म में वो हर दूसरे-तीसरे सीन में तालियों के हकदार नजर आते हैं। शायद किसी सुपरहीरो से कहीं बेहतर। केवल हृतिक के नए अवतार को स्क्रीन पर देखने के लिए ये फिल्म देखी जा सकती है। इस बार वे अपने साथ एक तरह का सम्मोहन लेकर आए हैं, जो फिल्म की कई कमियों पर भारी पड़ता है। इसलिए इस वीकएंड हृतिक के नाम पर बैंग बैंग बनता है।

कलाकार: हृतिक रोशन, कैटरीना कैफ, पवन मल्होत्रा, जावेद जाफरी, डैनी डैंजोंगपा 
निर्देशक: सिद्धार्थ आनंद  
संगीत: विशाल-शेखर

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