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फिल्म रिव्यू: दम लगा के हईशा मन का मिलन

शादी क्या है?  जरूरत, मजबूरी या खुशहाली का एक जरिया?  इस हफ्ते रिलीज हुई बॉलीवुड फिल्म ‘दम लगा के हईशा’  की कहानी इन्हीं बातों की ओर ध्यान खींचती है। कहानी में ऐसा कुछ नहीं...

फिल्म रिव्यू: दम लगा के हईशा मन का मिलन
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 27 Feb 2015 07:56 PM
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शादी क्या है?  जरूरत, मजबूरी या खुशहाली का एक जरिया?  इस हफ्ते रिलीज हुई बॉलीवुड फिल्म ‘दम लगा के हईशा’  की कहानी इन्हीं बातों की ओर ध्यान खींचती है। कहानी में ऐसा कुछ नहीं है, जिसे लीक से हट कर कहा जाए। फिर भी यदि फिल्म का कथानक और कथाकार दोनों लाजवाब हों तो सौ बार कही गई बात भी नयेपन का एहसास करा सकती है। इस बात को बतौर डायरेक्टर शरत कटारिया ने इस फिल्म के जरिये साबित भी कर दिया है।

फिल्म की कहानी हरिद्वार और ऋषिकेश में बसे दो निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों के इर्द-गिर्द बुनी गई है। प्रेम प्रकाश तिवारी उर्फ लप्पू (आयुष्मान खुराना)  अपने पिता (संजय मिश्र)  के कैसेट्स के बिजनेस में हाथ बंटाता है। वो भी इसलिए कि वो कुमार शानू के गाने जी भर के सुन सके। दरअसल लप्पू कुमार शानू का बहुत बड़ा फैन है। जब लप्पू का काम में मन नहीं लगता तो घर वाले उसके लिए रिश्ता देखने जाते हैं।

दसवीं कक्षा फेल लप्पू को खूबसूरत बीवी की चाह है,  पर जब वह मंदिर में भारी डील-डौल वाली संध्या (भूमि पेड़नेकर) को देखता है तो उसे  जोर का झटका लगता है। दरअसल इस झटके के जरिये फिल्म में युवा लड़कों की उस सोच को दर्शाने की कोशिश की गई है,  जो अमूमन हर लड़के की होती है। सिर्फ लड़कियां ही सपनों के राजकुमार का इंतजार करती हैं,  इस धारणा को तोड़ती यह फिल्म आज के युवाओं को खुद को काबिल बनाने का संदेश भी देती है। मजबूरी में शादी करके विषम परिस्थितियों में संध्या तलाक के पेपर लप्पू के घर भेज देती है। कोर्ट में दोनों परिवारों का आमना-सामना होता है तो दोनों परिवारों के विलाप दृश्य से डायरेक्टर ने परिवार के मुखियाओं को चेताया है कि थोपी गई शादी बोझ बनती है। कहानी धीरे-धीरे आगे बढ़ती है,  लप्पू सयाना होता जाता है और संध्या जिम्मेदार। फिर कहानी का वो मोड़ भी आ जाता है, जहां पूरी फिल्म कहती है- दम लगा के हईशा। अब दम लगाने के बाद आखिरकार कहानी किस करवट बैठती है, यह जानने के लिए आपको थियेटर का रुख करना पड़ेगा।

इस फिल्म के जरिए डायरेक्टर शरत कटारिया ने समाज के कई पहलुओं की ओर ध्यान खींचने का सफल प्रयास किया है। जहां एक तरफ लड़के की एजुकेशन से शिक्षा के स्तर और उसकी कमी होने से जिंदगी में आने वाली दिक्कतों की ओर इशारा किया गया है, वहीं अपने फायदे के लिए दो लोगों की बेमेल शादी करवाने से परिवार में होने वाली परेशानी पर भी सोचने को विवश किया है। फिल्म में जिस तरह से इस बात को दिखाया गया है कि शादी दो परिवारों,  समाज और स्टेटस से इतर दो दिलों के मिलन पर ज्यादा निर्भर करती है, वह वास्तव में दर्शकों को तालियां बजाने पर विवश करता है। फिल्म के कलाकारों में खास कर संजय मिश्र, आयुष्मान खुराना और नवोदित अभिनेत्री भूमि पेड़नेकर ने अपनी बेजोड़ कलाकारी से फिल्म के कथानक को दम लगा कर मजबूती दी है। अपने भारी-भरकम शरीर के बावजूद भूमि ने जिस तरीके के डांस स्टेप्स किए हैं,  उसे परदे पर देख कर काफी रोमांचक अनुभव होता है।

इस फिल्म में जोरदार अभिनय के जरिये भूमि ने बॉलीवुड में अपने लिए रास्ते खोल दिए हैं। फिल्म में जो सबसे खास बात है, वो हैं संवाद। बाप-बेटे के बीच का टकराव हो या फिर नयी-नवेली बहू पर बेवजह आरोप लगा रही रिश्तेदार के साथ तू-तू, मैं-मैं। सिनेमा देखते वक्त आपको ये संवाद खूब गुदगुदाएंगे। हरिद्वार की क्षेत्रीय भाषा को लेकर फिल्म में होमवर्क की कमी नजर आती है। एक और बात जो आपको खटक सकती है, वो है लोकेशन का चुनाव। हरिद्वार और ऋषिकेश जैसे छोटे शहरों पर आधारित फिल्म में जिस तरह के शहर या लोकेशन का दृश्य आना चाहिए था, उसकी कमी अखरती है, लेकिन पटकथा इतनी कसी हुई है कि इन बातों को नजरअंदाज किया जा सकता है। बात अगर संगीत की हो तो बतौर म्यूजिक डायरेक्टर अनु मलिक ने प्रभावित किया है। फिल्म के आखिरी गीत ‘दर्द करारा..’की कोरियोग्राफी जहां आंखों को सुकून देती है, वहीं गाने के बोल काफी कर्णप्रिय हैं। वैसे फिल्म के सातों गीत आपको मधुर संगीत की याद दिलाने में सफल साबित होंगे। परिवार के साथ बैठ कर हंसने-हंसाने का मन हो तो ये फिल्म देखने का रुख कर सकते हैं।

कलाकार:  आयुष्मान खुराना, भूमि पेडनकर, संजय मिश्र, अलका अमीन, शीबा चड्ढा, सीमा पाहवा, संजीव वत्स, शादरुल राणा, चंद्रचूड़ राय, श्रीकांत वर्मा, महेश शर्मा कहानी, पटकथा और
निर्देशन:  शरत कटारिया
निर्माता:  मनीष शर्मा
बैनर:  यशराज फिल्म्स
संगीत:  अनु मलिक
गीत:  वरुण ग्रोवर
कोरियोग्राफी:  रेखा चिन्नी प्रकाश
अवधि:  111 मिनट

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