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‘इंतजार था सही समय और कहानी का’

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्मकार रवि जाधव ने अपनी पहली मराठी भाषा की सफलतम फिल्म ‘नटरंग’ से मराठी सिनेमा को नई राह दिखा दी थी। अब वह पहली बार हिंदी फिल्म ‘बैंजो’ लेकर आए...

‘इंतजार था सही समय और कहानी का’
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 23 Sep 2016 08:23 PM
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राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्मकार रवि जाधव ने अपनी पहली मराठी भाषा की सफलतम फिल्म ‘नटरंग’ से मराठी सिनेमा को नई राह दिखा दी थी। अब वह पहली बार हिंदी फिल्म ‘बैंजो’ लेकर आए हैं। फिल्म निर्देशक रवि जाधव से बातचीत के कुछ अंश: 


- बेहतरीन मराठी फिल्में बनाते हुए हिंदी फिल्मों तक पहुंचने में छह साल का समय क्यों लग गया?
इसकी एकमात्र वजह यह रही कि मराठी भाषा में अच्छा काम कर रहा था। मैंने मराठी भाषा में पांच फिल्में निदेर्शित की। इन्हें बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त सफलता मिली और पांचों को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल गया। एक लघु फिल्म बनाई, उसे भी राष्ट्रीय पुरस्कार मिल गया। हर इंसान का सपना बॉलीवुड से जुड़ना होता है, पर मुझे ऐसा कभी नहीं लगा। मैंने ऐसा कोई सपना नहीं देखा। मेरा सपना महज बेहतरीन सिनेमा बनाना ही रहा। मेरी राय में बॉलीवुड से जुड़ने के लिए सही समय, सही कहानी चाहिए। मैं कई कहानियों पर काम कर रहा था। पर वह बॉलीवुड के लिए फिट नहीं बैठ रही थी। जब ‘बैंजो’ की पटकथा तैयार हुई तो मुझे लगा कि इसे हर भाषा व हर वर्ग का दर्शक पसंद करेगा। इसलिए इसे मैंने हिंदी में बनाया। यह कहानी/ फिल्म स्ट्रीट म्यूजीशियन के बारे में है। स्ट्रीट म्यूजीशियन सिर्फ महाराष्ट्र में नहीं, बल्कि पूरे भारत देश में है।  

- इसकी पटकथा लिखने से पहले किस तरह का शोध किया?
मैं करीबन साठ बैंजो के कलाकारों से मिला। उनसे लंबी बात की। उनका वीडियो फिल्माया। यह लोग पूरे दिन यही काम नहीं करते। यह सभी कहीं नौकरी करते हैं। जब शादी का सीजन हो या गणेशोत्सव हो या नवरात्रि उत्सव, तब यह सब पैसा कमाने के लिए उन दिनों बैंजो बजाते हैं। लोग इन्हें पैसा दे देते हैं, पर इज्जत नहीं मिलती। पैसा भी बहुत ज्यादा नहीं मिलता। यह लोग शादी में बैंजो बजाते हैं, पर कोई इन्हें मंडप में आकर भोजन करने के लिए नहीं कहता।  

- फिल्म ‘बैंजो कलाकारों’ की समस्या पर बात करती है या..?
हमारी फिल्म पेट से दिल तक की यात्रा है। आखिर हम पेट के लिए कब तक बजाएंगे, कभी तो हमें दिल के लिए बजाना या काम करना चाहिए। जब वह दिल के लिए काम करना शुरू करते हैं, तभी वह इंज्वॉय कर पाते हैं। यह फिल्म इनकी यात्रा है। यह यात्रा इनसे क्या-क्या करवाती है, उसकी कहानी है। एक लड़की न्यूयॉर्क से भारत आती है। वह इनके साथ मिलकर न्यूयॉर्क में एलबम करने की योजना बनाती है। दोनों के बीच भाषा की भी रुकावटें हैं।  

- फिल्म में रितेश देशमुख ही क्यों?
रितेश के साथ मैंने एक फिल्म ‘बालक पालक’ बनाई थी। पर हमने निर्देशक व कलाकार के तौर पर कभी काम नहीं किया। बैंजो की जब  कहानी लिखी तो पहले दिन से मेरे दिमाग में रितेश देशमुख का ही नाम था। पर मैंने उन्हें यह कहानी बहुत बाद में सुनाई। फिर मैंने उसके घर पर बैंजो वाद्ययंत्र भेजा। उन्हें ट्रेनिंग देेने के लिए एक शख्स उनके घर जाता था। अब तो वह बैंजो दस-बारह घंटे बजाते हैं। उनका बेटा भी बैंजो की धुन पर नाचता है। 

- बैंजो का संगीत लाइव रिकॉर्ड किया है या...?
नब्बे प्रतिशत संगीत लाइव रिकॉर्ड करना पड़ा। विशाल-शेखर ने बढ़िया संगीत दिया है। साकेत भाई ने बैंजो बजाया है, जिन्होंने ‘कर्मा’ से लेकर ‘हीरो’ तक में काम किया था।     

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