सुनिल ग्रोवर की 'कॉफी विद डी' का FILM REVIEW
खबरों की दुनिया से जुड़ी ये फिल्म बीते कुछ दिनों से कई वजहों से खबरों में रही। पहले तो कई कारणों से इसकी रिलीज डेट आगे-पीछे खिसकती रही। फिर इसके मुख्य अभिनेता सुनील ग्रोवर और निर्माता को कुछ धमकि
खबरों की दुनिया से जुड़ी ये फिल्म बीते कुछ दिनों से कई वजहों से खबरों में रही। पहले तो कई कारणों से इसकी रिलीज डेट आगे-पीछे खिसकती रही। फिर इसके मुख्य अभिनेता सुनील ग्रोवर और निर्माता को कुछ धमकियां वगैरह सी मिलने लगीं। अब पता नहीं कि इन धमकियों में कितनी सच्चाई है। बहरहाल फिल्म देख कर ये लगा कि इसे बेवजह ही प्रचारित किया जा रहा था। इसमें ऐसा कुछ है ही नहीं, जिसे लेकर आप अपना कीमती समय और पैसा बर्बाद करें। फिर भी अगर उत्सुकता है तो एक नजर इसकी कहानी और ट्रीटमेंट पर।
अगर आप खबरिया चैनलों की दुनिया की थोड़ी बहुत भी खबर रखते हैं तो यहां के काम-काज और कुछ प्रसिद्ध एंकरों को इस फिल्म में चिन्हित कर सकते हैं। जैसे कि इस कहानी का मुख्य पात्र अर्नब घोष (सुनील ग्रोवर)। अर्नब पर अपने चैनल के संपादक-मालिक (राजेश शर्मा) का दबाव है, क्योंकि चैनल की टीआरपी दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है।
सुनिल ग्रोवर की 'कॉफी विद डी' का FILM REVIEW
अर्नब चैनल में एक एंकर है और उसका मुख्य काम है राजनीतिज्ञों के इंटरव्यूज वगैराह लेना और पूरे कार्यक्रम को अपनी ऊल-जलूल हरकतों से रोचक बनाना। उस पर रोजाना प्रेशर बढ़ रहा है। यहां तक की उसे दो महीने का समय भी दिया गया है कि वह किसी भी तरह से टीआरपी बढ़ाए। यही नहीं उसका शो एक अन्य एंकर नेहा (दिपानिता शर्मा) को दे दिया जाता है और अर्नब को एक कुकरी शो का एंकर बना दिया जाता है। अपनी नौकरी संकट में पड़ता देख अर्नब ये सारी परेशानियां अपनी गर्भवती पत्नी पारुल (अंजना सुखानी) से साझा सकता है।
पारुल उसे समझाती है कि उसे किसी ऐसे इंसान का इंटरव्यू करना चाहिए, जो अपने आप में ही सनसनीखेज हो। वो उसे डी (जाकिर हुसैन) का इंटरव्यू करने को कहती है जो कि एक कुख्यात डॉन है। अर्नब डी तक तो नहीं पहुंच पाता लेकिन उसके बारे में बेबुनियाद और अजीब सी कहानियां बना कर प्रसारित करने लगता है। अर्नब डी का ध्यान अपनी ओर खींचने में सफल हो जाता है और उसे डी के यहां से इंटरव्यू के लिए बुलावा भी आ जाता है, जिसके लिए अर्नब को कराची जाना पड़ता है।
सुनिल ग्रोवर की 'कॉफी विद डी' का FILM REVIEW
इस फिल्म को देख कर साल 2010 में आई अभिषेक शर्मा निर्देशित और अली जफर अभिनीत फिल्म ‘तेरे बिन लादेन’ की याद आती है। हालांकि दोनों फिल्मों में कंटेंट को लेकर कोई समानता तो नहीं है, लेकिन अहसास काफी करीब है। ये अहसास है किसी भी कीमत पर खुद को फिर से साबित करने का। इस घटनाक्रम में उपहास और विनोदी भाव की खूब गुंजाइश पनपती है, लेकिन निर्देशक और लेखक जोड़ी इसे अच्छे ढंग से पेश नहीं कर पाए।
जहां-जहां हंसी-मजाक और कटाक्ष की जरूरत बनती दिखी, वहां कलम कमजोर रही। इस फिल्म की असली परेशानी कमजोर लेखन है। ऐसा लगता है कि टीम ने बस दो दिन में ही कहानी लिख डाली है। फिल्म का कई जगहों से आधे-अधूरे ढंग से किसी अन्य सीन पर चले जाना हो या फिर विभिन्न सीन्स में किरदारों के सस्ते संवाद हों, फिल्म सीन दर सीन निराश करती है।
दूसरी तरफ सुनील ग्रोवर हैं जो कि अपने कॉमेडी शोज में कमाल का अभिनय करते हैं, दूसरों की मिमिक्री करते हैं और जिनकी शैली और संवाद भी गजब के होते हैं, इस फिल्म में थके हुए और बेबस नजर आते हैं। ऐसा लगता है कि वह केवल टीवी के लिए ही बने हैं। फिल्में उनके बस की बात नहीं है। जाकिर हुसैन और राजेश शर्मा अच्छे चरित्र कलाकार हैं, लेकिन उन्होंने भी निराश ही किया है। ले देकर गिरधारी के रोल (डी के सहयोगी) में अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने ही केवल फिल्म को संभालने की कोशिश की है। ऐसे में आप समझ सकते होंगे कि इस फिल्म में अभिनेत्रियों की क्या जगह रही होगी।
कुल मिला कर ये फिल्म केवल अपने कॉन्सेप्ट की वजह से सिर्फ आकर्षित ही करती है, कुछ मनोरंजन वगैरह नहीं करती, इसलिए कॉफी वगैरह छोड़िए अपनी चाय से ही मजे लीजिए।
रेटिंग: 1.5 स्टार
सितारे : सुनील ग्रोवर, जाकिर हुसैन, दिपानिता शर्मा, अंजना सुखानी, राजेश शर्मा, पंकज त्रिपाठी
निर्देशक : विशाल मिश्रा
निर्माता : विनोद रमानी
संगीत : सुपर्बिया
गीत : समीर
कहानी-पटकथा : आभार दधीच, विशाल मिश्रा
सुनिल ग्रोवर की 'कॉफी विद डी' का FILM REVIEW