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FILM REVIEW: सलमान के लिए एक और सुपरहिट साबित होगी 'सुल्तान'

रेटिंग 3 स्टार सितारे : सलमान खान, अनुष्का शर्मा, रणदीप हुड्डा, अमित साध, कुमुद मिश्रा निर्देशक-लेखक : अली अब्बास जफर निर्माता : आदित्य चोपड़ा संगीत : विशाल-शेखर गीत : इरशाद कामिल सलमान खान...

FILM REVIEW: सलमान के लिए एक और सुपरहिट साबित होगी 'सुल्तान'
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 07 Jul 2016 05:29 PM
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रेटिंग 3 स्टार
सितारे : सलमान खान, अनुष्का शर्मा, रणदीप हुड्डा, अमित साध, कुमुद मिश्रा
निर्देशक-लेखक : अली अब्बास जफर
निर्माता : आदित्य चोपड़ा
संगीत : विशाल-शेखर
गीत : इरशाद कामिल

सलमान खान की किसी फिल्म को अब शायद किसी प्रकार की भूमिका की जरूरत नहीं दिखती। खासतौर से साल 2009 में आई उनकी फिल्म ‘वांटेड’ के बाद से। उनका बस नाम ही काफी है। शाहरुख खान के प्रसिद्ध डॉयलाग की तरह.. ‘राज, सिर्फ नाम ही काफी है..’ सलमान खान का स्टारडम और आकाश छूती उनकी बुलंदी इसकी गवाह है। इसलिए ‘सुल्तान’ को टिकट खिड़की पर पहले से ही सुपरहिट करार दिया जा चुका है। लेकिन क्या ये फिल्म वाकई सलमान की पिछली फिल्मों से इक्कीस है? क्या सलमान ने वाकई एक पहलवान की भूमिका को ढंग से जिया है? क्या यश राज बैनर की इस फिल्म में निर्देशक अली अब्बास जफर ने जान फूंक दी है? इस तरह के तमाम सवालों का जवाब मिलेगा, लेकिन पहले एक नजर फिल्म की कहानी पर।

ये कहानी है हरियाणा के एक छोटे शहर रेवाड़ी की, जहां रहता है सुल्तान अली खान (सलमान खान)। मस्तमौला, गबरू सुल्तान का शौक है कटी पतंग पकड़ना। एक दिन उसकी नजर आरफा (अनुष्का शर्मा) पर पड़ती है, जो रेस्लिंग यानी कुश्ती की खिलाड़ी है। पहली ही नजर में सुल्तान उसे अपना दिल दे बैठता है और शादी का प्रस्ताव भी दे डालता है। लेकिन आरफा उसे चुनौती देती है कि अगर उससे शादी करनी है तो वो पहले कुछ बनके दिखाए।

आरफा की मोहब्बत उसे पहलवान बना देती है और वो स्टेट लेवल के बाद अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पहलवान बन जाता है। प्रसिद्धि अपने साथ बहुत कुछ लेकर आती है। सुल्तान के लिए प्रसिद्धि गुरूर लेकर आती है, जिसे वह पचा नहीं पाता और अरफा के लाख मना करने के बावजूद वह एक अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए तुर्की चला जाता है। वह वहां से जीत कर तो आ जाता है, लेकिन आने के बाद वह बहुत कुछ खो देता है।

यहां से सुल्तान और आरफा के बीच अनबन शुरू हो जाती है और दोनों अलग हो जाते हैं। सुल्तान हमेशा के लिए रेस्लिंग को अलविदा कह देता है। इस घटना को आठ साल बीत जाते हैं और एक दिन सुल्तान की खोज में दिल्ली से एक बिजनेसमैन आकाश ओबेराय (अमित साध) रेवाड़ी आता है। वह सुल्तान को दिल्ली में पेशेवर रेस्लिंग का ऑफर देता है, जिसे सुल्तान पहले तो खारिज कर देता है। पर बाद में मान भी जाता है। मार्शल आर्ट का एक माहिर फाइटर (रणदीप हूडा) सुल्तान का कोच बन कर उसे पेशेवर कुश्ती की ट्रेनिंग देता है। लेकिन 40 साल के सुल्तान के लिए ये सब आसान नहीं होता।

मोटे तौर पर ये कहानी है एक मस्तमौला प्रेमी की है, जो शादी के बाद पति-पत्नी के बीच पैदा हुए विवाद से होते हुए एक पहलवान के पुर्नजन्म के रूप में करवट लेती है। इंटरवल से पहले की कहानी सुल्तान के पहलवान बनने एवं आरफा और उसके बीच हुए मन-मुटाव का चित्रण करती है। बाद की कहानी केवल पेशेवर रेस्लिंग को समर्पित है। कहने को तो ये एक छोटी-सी कहानी है, लेकिन इस कहानी को कहने में निर्देशक ने करीब तीन घंटे का समय लगा दिया है। पहली बात जो इस फिल्म को लेकर खटकती है वो है इसकी लंबाई।

ये कहानी ढाई घंटे या इससे भी कम वक्त में कही जा सकती थी। इसलिए इंटरवल से पहले और बाद में भी, संपादन की घोर गुंजाइश बार-बार खटकती है। ये फिल्म एक प्रेमी-प्रेमिका और बाद में एक पति-पत्नी के बीच के आपसी प्रेम और विश्वास को दर्शाती है, जिसे शुरूआत में तो बड़े आत्मविश्वास के साथ दिखाया गया है, लेकिन बाद में तमाम सीन्स थोपे गए से लगते हैं।

कहानी का एक अहम पहलू पहलवानी या कहिये कुश्ती पर आधारित है, जिससे दोनों किरदारों को बेहद लगाव है। उनके लिए ये खेल नहीं एक जुनून है। लेकिन ये जुनून एक छोर पर दामन छोडम्ने (आरफा की ओर से) लगता है। यहां भावनात्मक पहलुओं पर फोकस कम किया गया है। यहां पूरी मेहनत सिर्फ और सिर्फ चीजों को एक ‘स्टार’ के अनुरूप बनाने में की गई है, जबकि फिल्म का आधार रेस्लिंग और रिश्ते हैं। भावनात्मक पहलुओं का स्थान ड्रामा और दोहराव ने ले लिया है। संवादों में गहराई न के बराबर है और हरियाणवी माहौल होने के बावजूद हंसी-हाजिरजवाबी की कमी भी खलती है। ये तमाम बातें सहज रूप से सामने आती हैं। इनके लिए दिमाग पर बहुत जोर देने की जरूरत नहीं है।

‘बजरंगी भाईजान’ में सलमान खान ने साबित किया कि वह अपने अभिनय से भी दर्शकों को प्रभावित कर सकते हैं। लेकिन ये फिल्म केवल उनके स्टारडम पर टिकी नजर आती है। इसका उदाहरण है वह तमाम सीन्स जिन पर दर्शक तालियां बजाते दिखते हैं, सीटियां मारते हैं। उनके संवाद ऐसे हैं, जो केवल उन पर ही फबते हैं। लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद सुल्तान का किरदार इंटरवल के बाद प्रभावी लगता है।

खासतौर से जब वह एक थका हारा सा इंसान दिखता है। थकान और एक पहलवान को हरा देने वाला उसका मोटापा सलमान पर कई जगह जंचता भी है। इसलिए सुल्तान को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता। एक बात और कि सलमान खान का आभामंडल ही इस फिल्म को सुपरहिट बनाने के लिए काफी है। हो सकता है कि उनकी प्रसिद्धि के आगे फिल्म की तमाम खामियां कहीं न टिक पाएं। लेकिन एक सच ये भी है कि प्रेरणा देने वाली ये कहानी अपने हिचकोले खाते घटनाक्रम और कई जगह कमजोर लेखन की वजह से बोर भी करती है।

किसी फिल्म में सलमान की मौजूदगी के बाद किसी अन्य किरदार के लिए गुंजाइश कम ही रहती है। यहां भी ऐसा ही हुआ है। हरियाणवी लटके-झटकों से सजा अनुष्का शर्मा का रेस्लर वाला किरदार कुछ देर के लिए तो आकर्षित करता है, लेकिन बाद में उसे भी सुल्तान के स्टारडम की नजर लग जाती है। हालांकि उन्होंने कोशिश बहुत की है, लेकिन बहुत ज्यादा संभावनाओं के बावजूद आत्मविश्वास नहीं जगा पाई हैं। ‘सरबजीत’ जैसी फिल्म देखने के बाद आप कहेंगे कि रणदीप हुड्डा इस फिल्म में क्या कर रहे हैं। पेशेवर रेस्लिंग के दृश्य नाटकीयता से भरे पड़े हैं। इन्हें भी सुल्तान के अनुरूप ही बनाया गया है ताकि वह हर हाल में बस जीते ही। बेबी को बेस पसंद है...और जग घूमेया...जैसे गीत अच्छे हैं, जो सुनने में ज्यादा अच्छे लगते हैं।

कुल मिला कर ‘सुल्तान’ रिश्तों पर कम, बल्कि रेस्लिंग पर फोकस ज्यादा दिखती है, जिसका सौंदर्यकरण तो बहुत अच्छा किया गया है। लेकिन इसमें ठोस चीजों की कमीं भी दिखती है। ये फिल्म सलमान खान के लिए तो एक और सुपरहिट फिल्म साबित हो सकती है, लेकिन एक कलाकार के लिए नहीं।

बड़े बजट के साथ खास मौके पर रिलीज की गई ‘सुल्तान’ आपको निराश तो नहीं करेगी, लेकिन कुछ ऐसा भी नहीं देगी, जिसे आप साथ घर ला पाएं। या लंबे समय तक याद रख सकें।

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