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Review: रंगून कुछ बेहतरीन, कुछ बोझिल! सैफ-शाहिद-कंगना का काम जबरदस्त

  सितारे: सैफ अली खान, कंगना रनौत, शाहिद कपूर, रिर्चड मैक्केब, गजराज सिंह, सहर्ष शुक्ला, लिन लाइश्रम,  निर्देशक-संगीत-संवाद: विशाल भारद्वाज निर्माता: आशीष पाल, विशाल भारद्वाज, वायका

लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 24 Feb 2017 02:38 PM


 

सितारे: सैफ अली खान, कंगना रनौत, शाहिद कपूर, रिर्चड मैक्केब, गजराज सिंह, सहर्ष शुक्ला, लिन लाइश्रम, 
निर्देशक-संगीत-संवाद: विशाल भारद्वाज
निर्माता: आशीष पाल, विशाल भारद्वाज, वायकाम 18 म¨शन पिक्चर्स
गीत: गुलजार
लेखक: मैथ्यू राबिंस, विशाल भारद्वाज, सबरीना धवन
रेटिंग 2 स्टार

निर्माता-निर्देशक विशाल भारद्वाज का कहना है कि उनकी नई फिल्म रंगून का फियरलेस नाडिया (1930 के दशक की अभिनेत्री एवं स्टंटवुमेन) या फिल्म हंटरवाली (1935) से कुछ लेना-देना नहीं है। अगर ऐसा है तो इस फिल्म के एक गीत में पिया, मियां कैसे हो गए और रंगून के बजाए वो इंग्लैंड कैसे पहुंच गए? 

फिल्म की मुख्य पात्र जूलिया (कंगना रनौत) को देख फियरलेस नाडिया की याद आना लाजिमी है। और इसके एक गीत मेरे मियां गए इंग्लैंड.. को सुन कर 1949 की फिल्म पतंगा की प्रसिद्ध गीत मेरे पिया गए रंगून... भी कान में गूंजने लगता है। 

यही नहीं फिल्म देख कर ऐसा लगता है कि भारद्वाज ने इन दो बातों को एक कालखंड (द्वितीय विश्व युद्ध) में पिरोने-भुनाने की कोशिश की है, जिसके पाश्र्व में एक प्रेम कहानी या कहिये एक प्रेम त्रिकोण है या कहिये देश प्रेम है या कहिये बहुत सारी कहानियां हैं, जिसकी वजह से रंगून एक बड़ा उलझाव बन कर उभरती है।
 
फिल्म के केन्द्र में है 1940 के दशक की एक मशहूर नायिका जूलिया (कंगना रनौत)। नाचने-गाने के अलावा दर्शक उसके स्टंट के भी दीवाने हैं। जूलिया, रूसी बिल्लमोरिया (सैफ अली खान) की फिल्मों की जान है जो एक जमाने में खुद नामी एक्शन हीरा था। लेकिन अब वह एक बड़े टाकीज-स्टूडियो का मालिक है। रूसी एक प्रभावशाली व्यक्ति है, जिसकी ब्रिटिश हुकूमत के उच्च अधिकारिरों संग अच्छी उठ-बैठ है। मात्र 12 साल की उम्र में रूसी ने जूलिया को एक हजार रूपये में खरीदा था। वो उसे प्यार से किड कहता है और जब उससे कोई बात मनवानी होती है तो बड़े प्यार से अपनी जांघ की तरफ इशारा करके कहता है- कम ऑन किड.. प्लीज कम हेअर...

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Review: रंगून कुछ बेहतरीन, कुछ बोझिल! सैफ-शाहिद-कंगना का काम जबरदस्त

जूलिया को बर्मा भेजने से पहले रूसी इसी अंदाज को दोहराता है। उसे पता है कि जूलिया उसे मना नहीं कर पाएगी। दूसरी तरफ जूलिया को विश्वास है रूसी उससे जल्द ही शादी कर लेगा। ब्रिटिश हुकूमत के एक जनरल डेविड हार्डिंग्स (रिचर्ड मैक्केब) की अगुवाई में जूलिया को रवाना कर दिया जाता है। जूलिया की रक्षा के लिए उसे एक निजी बाडीगार्ड जमादार नवाब मलिक (शाहिद कपूर) दिया जाता है। लेकिन बर्मा पहुंचने से पहले इस काफिले पर एक हमला होता है, जिसके बाद जूलिया अपने तमाम सहयोगियो से बिछड़ जाती है। वह नवाब के साथ जंगलों में कई दिनों तक भटकती रहती है। 

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इस दौरान जूलिया और नवाब एक दूसरे के करीब आने लगते है और किसी तरह से एक दिन ये दोनों डेविड के कैंप तक पहुंच ही जाते हैं। जूलिया के गायब होने की खबर पाकर रूसी भी वहां आ जाता है और फिर शुरू होती है जूलिया के नृत्यों की एक श्रंखला, जिससे ब्रिटिश भारतीय सैनिकों का खूब मनोरंजन होता है। जूलिया और नवाब अब और करीब आने लगे हैं, जिसकी भनक रूसी को लगने लगी है। लेकिन इस प्रेम त्रिकोण से परे एक और आग धधक रही है, जिससे डेविड और रूसी अनजान हैं। वो आग है नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आईएनए द्वारा चलाए जा रहे एक मिशन की, जिसके तहत जयपुर के एक महाराज की बेशकीमती तलवार को रंगून पहुंचाना है। और इस पूरे मिशन की खबर केवल नवाब को है। कहीं नवाब ब्रिटिश हुकूमत से गद्दारी तो नहीं कर रहा?

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Review: रंगून कुछ बेहतरीन, कुछ बोझिल! सैफ-शाहिद-कंगना का काम जबरदस्त

इतनी कहानी से ये तो समझा ही जा सकता है कि ये एक प्रेम कहानी है, जिसे द्वितीय विश्व युद्ध के इर्द-गिर्द बुना गया है। ऐसा दावा इसके निर्देशक ने भी किया है। लेकिन इंटरवल के बाद ये प्रेम कहानी एक प्रेम त्रिकोण में तब्दील होने लगती है, जिसमें धोखा है, द्वेष है और इसकी एक कड़ी भारत की आजादी से भी जुड़ी है। मोटे तौर पर देखा जाए तो फिल्म में उलझाव का कारण भी यही है। भारद्वाज ने रंगून के जरिए बहुत सारी बातें कहने की कोशिश की है। ऐसा करने में कोई हर्ज तो नहीं है, लेकिन ये प्रयास सार्थक होता तो बेहतर रहता। ट्रीटमेंट के लिहाज से ये फिल्म भव्य है। बड़े-बड़े सेट्स बनाए गए हैं। मुश्किल हालातों में शूटिंग की गई है। चर्च में नवाब और जूलिया के बारिश वाले सीन में पता चलता है कि मूसलाधार बारिश के बीच ये सीन कैसे फिल्माए गए होंगे। इसी तरह से जापानी सेना के एक ध्वस्त बेस कैंप में इन दोनों किरदारों के बीच कीचड़ में फिल्माए गए प्रेम प्रसंग को भी भारद्वाज ने खूबसूरती दे डाली है। इसके अलावा बांबे में टॉकीज और स्टूडियोज की दुनिया का चित्रण, पोशाके, स्टीम इंजन वाली ट्रेन वगैराह पर भी खूब रिसर्च किया गया है।

रूसी द्वारा जूलिया के सीन्स का संपादन से दर्शाता है कि निर्माताओं की फिल्म में हस्तक्षेप कोई नई बात नहीं है, जबकि फिल्म का निर्देशक रूसी का भाई (रूशाद राणा) है। इस तरह की भव्यता के बीच जंगलों में रात के समय जगमग रोशनी संग जूलिया के आइटम नंबर ये सोचने पर भी मजबूर करता है कि आखिर उस समय अंग्रेज इतनी बिजली कहां से लो होंगे। क्या ऐसी परपारमेंस के बीच उन्हें जापानियों के हवाई हमले की डर नहीं सताता था? इसके पीछे एक सत्य ये भी है कि रंगून, विशाल भारद्वाज की अब तक की सबसे महंगी और महत्कांक्षी फिल्म है, जिसके लिए उन्होंने कई जगहों पर तथ्यो और बहस को भी जन्म दे डाला है।

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