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मुगले आजम का संगीत देने से मना किया था नौशाद ने

वर्ष 1960 में प्रदर्शित फिल्म मुगले आजम के मधुर संगीत को आज की पीढ़ी भी गुनगुनाती है। लेकिन इसके गीत को संगीतबद्ध करने वाले संगीत सम्राट नौशाद ने पहले मुगले आजम का संगीत निर्देशन करने से इनकार कर दिया...

मुगले आजम का संगीत देने से मना किया था नौशाद ने
एजेंसीMon, 04 May 2015 03:06 PM
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वर्ष 1960 में प्रदर्शित फिल्म मुगले आजम के मधुर संगीत को आज की पीढ़ी भी गुनगुनाती है। लेकिन इसके गीत को संगीतबद्ध करने वाले संगीत सम्राट नौशाद ने पहले मुगले आजम का संगीत निर्देशन करने से इनकार कर दिया था।

कहा जाता है मुगले आजम के निर्देशक के आसिफ एक बार नौशाद के घर उनसे मिलने के लिये गये। नौशाद उस समय हारमोनियम पर कुछ धुन तैयार कर रहे थे। तभी आसिफ ने 50 हजार रुपये नोट का बंडल हारमोनियम पर फेंका। नौशाद इस बात से बेहद क्रोधित हुए। नोटो का बंडल के आसिफ के मुंह पर मारते हुये कहा कि ऐसा उन लोगों लिए करना जो बिना एडवांस फिल्मों में संगीत नहीं देते। मैं आपकी फिल्म में संगीत नहीं दूंगा। बाद में आसिफ की आरजू-मिन्न्त पर नौशाद न सिर्फ फिल्म में संगीत देने के लिये तैयार हुये, बल्कि इसके लिये एक पैसा भी नहीं लिया।
                
लखनऊ के एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में 25 दिसम्बर 1919 को जन्मे नौशाद का बचपन से ही संगीत की तरफ रुझान था और अपने इस शौक को परवान चढा़ने के लिए वह फिल्म देखने के बाद रात में देर से घर लौटा करते थे। इस पर उन्हें अक्सर अपने पिता की नाराजगी झेलनी पड़ती थी। उनके पिता हमेशा कहा करते थे कि तुम घर या संगीत में से एक को चुन लो।

एक बार की बात है कि लखनऊ में एक नाटक कम्पनी आई और नौशाद ने आखिरकार हिम्मत करके अपने पिता से बोल ही दिया- आपको आपका घर मुबारक, मुझे मेरा संगीत। इसके बाद वह घर छोड़कर उस नाटक मंडली में शामिल हो गए और उसके साथ जयपुर, जोधपुर, बरेली और गुजरात के बड़े शहरों का भ्रमण किया।

नौशाद के बचपन का एक वाकया बड़ा दिलचस्प है। लखनऊ में भोंदूमल एंड संस की वाद्ययंत्रों की एक दुकान थी जिसे संगीत के दीवाने नौशाद अक्सर हसरत भरी निगाहों से देखा करते थे। एक बार दुकान के मालिक ने उनसे पूछ ही लिया कि वह दुकान के पास क्यों खड़े रहते हैं। नौशाद ने दिल की बात कह दी कि वह उसकी दुकान में काम करना चाहते हैं। नौशाद जानते थे कि वह इसी बहाने वाद्ययंत्रों पर रियाज कर सकेंगे।
              
एक दिन वाद्य यंत्रों पर रियाज करने के दौरान मालिक की निगाह नौशाद पर पड़ गई और उसने उन्हें डांट लगाई कि उन्होंने उसके वाद्य यंत्रों को गंदा कर दिया है। लेकिन बाद में उसे लगा कि नौशाद ने बहुत मधुर धुन तैयार की है तब उसने उन्हें न सिर्फ वाद्य यंत्र उपहार में दे दिए, बल्कि उनके लिए संगीत सीखने की व्यवस्था भी करा दी।
    
नौशाद अपने एक दोस्त से 25 रुपये उधार लेकर 1937 में संगीतकार बनने का सपना लिये मुंबई आ गये। मुंबई पहुंचने पर नौशाद को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। यहां तक कि उन्हें कई दिनों तक फुटपाथ पर ही रात गुजारनी पड़ी। इस दौरान नौशाद की मुलाकात निर्माता कारदार से हुयी जिनकी सिफारिश पर उन्हें संगीतकार हुसैन खान के यहां चालीस रुपये प्रति माह पर पियानो बजाने का काम मिला।

बतौर संगीतकार नौशाद को वर्ष 1940 में प्रदर्शित फिल्म प्रेमनगर में 100 रुपए महीने पर काम करने का मौका मिला। वर्ष 1944 में प्रदर्शित फिल्म रतन में अपने संगीतबद्ध गीत.. अंखियां मिला के जिया भरमा के चले नहीं जाना.. की सफलता के बाद नौशाद 25000 रुपये पारिश्रमिक के तौर पर लेने लगे। इसके बाद नौशाद ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और फिल्मों में एक से बढ़कर एक  संगीत देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

नौशाद ने करीब छह दशक के अपने फिल्मी सफर में लगभग 70 फिल्मों में संगीत दिया। उनके फिल्मी सफर पर यदि एक नजर डालें तो पायेंगे कि उन्होंने सबसे ज्यादा फिल्म गीतकार शकील बदायूंनी के साथ ही की और उनके बनाये गाने जबरदस्त हिट हुये। नौशाद ने शकील बदायूंनी और मोहम्मद रफी के अलावा लता मंगेशकर, सुरैया, उमा देवी और गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी को भी फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
             
नौशाद ऐसे पहले संगीतकार थे जिन्होंने प्लेबैक गायन के क्षेत्र मे साउंड मिकसिंग और गाने की रिकॉर्डिंग को अलग रखा। फिल्म संगीत में एकोर्डियन का सबसे पहले इस्तेमाल नौशाद ने ही किया था। हिन्दी फिल्म उद्योग जगत में नौशाद पहले संगीतकार थे जिन्हें सर्वप्रथम फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
       
वर्ष 1953 मे प्रदर्शित फिल्म बैजू बावरा के लिये नौशाद को फिल्म फेयर के सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के रूप में सम्मानित किया गया। भारतीय सिनेमा में उनके महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुये उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। नौशाद 5 मई 2006 को इस दुनिया से सदा के लिये रूखसत हो गये।

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