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B'DAY SPECIAL: मनोज ने दिलीप से इंप्रेस होकर एक्टर बनने का किया था फैसला

हिंदी फिल्म जगत के बहुआयामी कलाकार मनोज कुमार 24 जुलाई 2016 को 79वां जन्मदिन मना रहे हैं। मनोज को एक ऐसे कलाकार के तौर पर जाना जाता है जिन्होंने फिल्म निर्माण की प्रतिभा के साथ-साथ  निर्देशन,...

B'DAY SPECIAL: मनोज ने दिलीप से इंप्रेस होकर एक्टर बनने का किया था फैसला
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 24 Jul 2016 12:12 PM
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हिंदी फिल्म जगत के बहुआयामी कलाकार मनोज कुमार 24 जुलाई 2016 को 79वां जन्मदिन मना रहे हैं। मनोज को एक ऐसे कलाकार के तौर पर जाना जाता है जिन्होंने फिल्म निर्माण की प्रतिभा के साथ-साथ  निर्देशन, लेखन, संपादन और बेजोड़ अभिनय से भी दर्शकों के दिलों में अपनी खास पहचान बनाई है।

सात फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए

मनोज अपने करियर में सात फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किये गए हैं। इन सबके साथ ही फिल्म के क्षेत्र में मनोज के उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए उन्हें वर्ष 2002 में पदमश्री पुरस्कार, वर्ष 2008 में स्टार स्क्रीन लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार और वर्ष 2016 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। मनोज कुमार इन दिनों प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट पर फिल्म बना रहे हैं। जन्मदिन के खास मौके पर जानिए उनके करियर के बारे में सबकुछ-


        
मनोज कुमार मूल नाम हरिकिशन गिरी गोस्वामी का जन्म 24 जुलाई 1937 में हुआ था। जब वह महज दस वर्ष के थे तब उनका पूरा परिवार राजस्थान के हनमुनगढ़ जिले में आकर बस गया। बचपन के दिनों में मनोज ने दिलीप कुमार की 'शबनम' देखी थी। फिल्म में दिलीप कुमार के निभाए किरदार से मनोज इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने भी फिल्म अभिनेता बनने का फैसला कर लिया।

दिल्ली के हिंदू कॉलेज से की ग्रेजुएशन

मनोज ने अपनी स्नातक की शिक्षा दिल्ली के मशहूर हिंदू कॉलेज से पूरी की। इसके बाद बतौर अभिनेता बनने का सपना लेकर वह मुंबई आ गए। बतौर अभिनेता मनोज कुमार ने अपने करियर की शुरुआत वर्ष 1957 में प्रदर्शित फिल्म 'फैशन' से की। फिल्म में मनोज ने छोटी सी भूमिका निभाई थी। 1957 से 1962 तक मनोज फिल्म इंडस्ट्री मे अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। इस बीच उन्होंने कई बी ग्रेड फिल्मों में अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई।

1962 में आई फिल्म 'हरियाली और रास्ता' से चमका किस्मत का सितारा

मनोज कुमार की किस्मत का सितारा 1962 में आई फिल्म 'हरियाली और रास्ता' से चमका। फिल्म में मनोज के अपोजिट माला सिन्हा थी, उनकी जोड़ी को बेहद पसंद किया गया।
1964 में मनोज की एक और सुपरहिट फिल्म 'वह कौन थी'। रहस्य और रोमांच से भरपूर इस फिल्म में साधना की रहस्यमय मुस्कान के दर्शक दीवाने हो गये।

1965 में मनोज को 'गुमनाम', 'हिमालय की गोद' में काम करने का मौका मिला जो टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुयी। इस फिल्म में भी मनोज कुमार की नायिका माला सिन्हा थी। 1965 में ही आई 'शहीद' मनोज के करियर की खास फिल्मों में शुमार की जाती है। इस फिल्म में मनोज ने भगत सिंह की भूमिका को रूपहले पर्दे पर जीवंत कर दिया। फिल्म से जुड़ा दिलचस्प तथ्य है कि मनोज के ही कहने पर गीतकार प्रेम धवन ने न इस फिल्म के गीत लिखे साथ ही फिल्म का संगीत भी दिया। उनके रचित गीत 'ऐ मेरे प्यारे वतन' और 'मेरा रंग दे बसंती चोला' आज भी उसी तल्लीनता से सुने जाते हैं, जिस तरह उस दौर में सुने जाते थे।

1967 में प्रदर्शित फिल्म 'उपकार' में मनोज कुमार किसान की भूमिका के साथ ही जवान की भूमिका में भी दिखाई दिए। फिल्म में उनके चरित्र का नाम 'भारत' था बाद में इसी नाम से वह फिल्म इंडस्ट्री में मशहूर हो गये।
         
वर्ष 1970 में मनोज कुमार के निर्माण और निर्देशन में बनी एक और सुपरहिट फिल्म 'पूरब और पश्चिम' प्रदर्शित हुई। फिल्म के जरिए मनोज कुमार ने दौलत के लालच में अपने देश की मिट्टी को छोड़कर पश्चिम में पलायन करने के मुद्दे को उठाया। वर्ष 1972 में 'शोर' प्रदर्शित हुई ।
         
1974 में आई फिल्म 'रोटी कपड़ा और मकान' मनोज कुमार के करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में शुमार की जाती है। इस फिल्म के जरिये मनोज कुमार ने समाज की अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट की। साथ ही आम आदमी की जिंदगी में जरूरी रोटी, कपड़ा और मकान के मुद्दे को उठाया।

लगभग पांच सालों तक फिल्म इंडस्ट्री से किया किनारा

1976 में प्रदर्शित फिल्म 'दस नंबरी' की सफलता के बाद मनोज ने लगभग पांच वर्षों तक फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया। 1981 में मनोज कुमार ने फिल्म 'क्रांति' के जरिये अपने करियर की दूसरी पारी शुरू की। दिलचस्प बात है इसी फिल्म के जरिये मनोज के आदर्श दिलीप कुमार ने भी अपने सिने करियर की दूसरी पारी शुरू की थी। देशभक्ति के जज्बे से परिपूर्ण फिल्म में मनोज और दिलीप की जोड़ी को जबरदस्त सराहना मिली।

(2016 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से किया गया सम्मानित)

निर्देशन में मिली असफलता के बाद 6 साल के लिए इंडस्ट्री के लिए किनारा

1983 में अपने बेटे कुणाल गोस्वामी को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने के लिये मनोज ने फिल्म 'पेन्टर बाबू' का निर्माण किया लेकिन कमजोर पटकथा और निर्देशन के कारण फिल्म टिकट खिड़की पर औंधे मुंह गिरी। फिल्म की असफलता से मनोज ने लगभग छह साल तक फिल्म निर्माण से किनारा कर लिया। 1989 में मनोज एक बार फिर से फिल्म निर्माण और निर्देशन के क्षेत्र में वापस आए और फिल्म 'क्लर्क' का निर्माण किया लेकिन यह फिल्म भी टिकट खिड़की पर असफल साबित हुई। 1999 में आई फिल्म 'जय हिंद' बतौर निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार के सिने करियर की अंतिम फिल्म साबित हुई जो टिकट खिड़की पर बुरी तरह नकार दी गई।    

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