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FILM REVIEW: 'लव डे-प्यार का दिन'

बॉलीवुड की गोद से जिस तेजी से और जिस आक्रामक तादाद में बुरी और बर्बाद फिल्में टपक रही हैं उससे तो अब डर-सा लगने लगा है। कहीं ‘पीके’, ‘पिंक’, ‘तनु वेड्स मनु’,...

FILM REVIEW: 'लव डे-प्यार का दिन'
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 21 Oct 2016 04:25 PM
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बॉलीवुड की गोद से जिस तेजी से और जिस आक्रामक तादाद में बुरी और बर्बाद फिल्में टपक रही हैं उससे तो अब डर-सा लगने लगा है। कहीं ‘पीके’, ‘पिंक’, ‘तनु वेड्स मनु’, ‘सुल्तान’ और ‘पीके’ सरीखी फिल्मों बनाने वाले फिल्मकारों में से किसी एक की भी नजर ऐसी किसी फिल्म पर गई तो वह विदेशों में बॉलीवुड का झंडा कैसे बुलंद करेंगे। ऐसा नहीं है कि विदेश में बुरी और बर्बाद फिल्में नहीं बनतीं। वहां भी बनती हैं, लेकिन शायद बॉलीवुड से कम। मतलब तीन दोस्त मिल कर हंसी-मजाक में एक लड़की की इज्जत से कैसे खेल सकते हैं, जबकि उनमें से एक उस लड़की से शादी करने वाला है। ‘लव डेृप्यार का दिन’ का यह सीन दुख देता है, जबकि इस सीन को फूहड़ ढंग की कॉमेडी से पाटने की कोशिश की गई है। 

ये तीन दोस्तों मोंटी (एजाज खान), सैंडी (साहिल आनंद) और हैरी (हर्ष नागर) की कहानी है। सैंडी और हैरी तो थोड़े शरीफ हैं, लेकिन मोंटी तो बचपन से ही बदमाश था। उसी की हरकतों से चलते बरसों पहले सैंडी-हैरी के माता-पिता अपने बच्चों के साथ मुंबई आ गए थे। अपने जिगरी दोस्तों से बिछड़ने के बाद मोंटी भी मुंबई आ जाता है और कुछ ही दिनों में वह हैरी-सैंडी को ढूंढ लेता है। फिर क्या, शुरू हो जाती है मोंटी की धमाचौकड़ी और आए दिन सैंडी-हैरी की मुसीबतें बढ़ने लगती हैं। 

देखते ही देखते सैंडी-हैरी बड़े हो जाते हैं और स्कूल से कॉलेज पहुंच जाते हैं। लेकिन मोंटी इनका पीछा यहां भी नहीं छोड़ता। अपनी ऊल-जलूल हरकतों और बुरे कामों के चलते वह उनका कॉलेज बंद करा देता है और सैंडी-हैरी समेत जेल में बंद हो जाता है। कॉलेज के बाद सैंडी-हैरी को कहीं नौकरी तक नहीं मिलती। हैरी की किसी तरह से एक विधवा महिला के साथ शादी हो जाती है। और सैंडी फिल्म निर्देशक बनने के जुगाड़ में लग जाता है, जहां उसे हर सेट से ठोकर ही मिलती है। ऐसे में फिर से मोंटी की वापसी होती है और वो भी एक आकर्षक स्कीम के साथ।

मोंटी, अपने दोनों दोस्तों को देहरादून बुलवाता है। साथ में साहिबा (शालू सिंह) को भी लाना है जो सैंडी की पुरानी गर्लफ्रेंड है। वह उससे शादी करना चाहता है। सैंडी, हैरी और साहिब जब मोंटी से मिलते हैं और उसकी स्कीम सुनते हैं तो खुश हो जाते हैं। मोंटी, इन सबको डॉ. दुआ (अनंत महादेवन) के पास लेकर जाता है और डॉ. दुआ उन्हें एक तांत्रित शास्त्री के पास। शास्त्री इन सबको एक जंगल में ले जाता है, यहां वह अपने तंत्र-मंत्र की शक्ति से एक चुड़ैल को बुलाता है। चुड़ैल को अपने वश में करने के बाद शास्त्री उसके सामने अपनी मांग रखता है तथा मोंटी, सैंडी और हैरी को 40 करोड़ रुपये देने को कहता है। बदले में शास्त्री, चुड़ैल को उसकी भूख मिटाने केलिए 21 भेड़ देने का वायदा भी करता है। लेकिन भोग देने के बाद भी चुड़ैल उन्हें पैसे नहीं देती। फिर ये तीनों मिलकर एक नया प्लान बनाते हैं। 

पाठक अपने दिल पर हाथ रख कर बताएं कि इस कहानी को सुनने के बाद किसकी दिमाग नहीं घूमेगा? और इस फिल्म का नाम ‘लव डे-प्यार का दिन’ क्यों है? मोंटी जैसे किरदार के लिए तो हर दिन ही प्यार का दिन है। झूठ का सहारा लेकर वह सैंडी की प्रेमिका साहिबा को एक इंसान के साथ जिस्मानी रिश्ते बनाने के लिए भेज देता है। ये कह कर कि ऐन मौके पर पहुंच कर वो सब ठीक कर देगा। लेकिन इन तीनों को पहुंचने में देर हो जाती है और साहिबा... ऐसे में पीछे से गाना चलता है राम तेरी गंगा मैली हो गई... ये सीन हंसने वाला तो बिल्कुल नहीं है और फिल्म में ऐसा किसी एंगल से नहीं दिखाया गया है कि किरदारों को इसका पछतावा है, सिवाय साहिबा के, जो इस सीन के बाद से खुद को ढक कर रखने लग जाती है।
 
भौंडे जोक्स, बेहद खराब अभिनय, अश्लील और तन उघाड़ू गीत-प्रदर्शन आदि के सिवार इस फिल्म में कुछ है ही नहीं। और तो और फिल्म की नैरेशन बिल्कुल ‘3 इडियट्स’ की तरह है। यहां सैंडी, आर. माधवन यानी फरहान की तरह अपने टपोरी दोस्त मोंटी (रैंचो से प्रेरित) की यादों का बखान कर रहा है। बस उसके पागल आवारा था वो... गीत गाने की कसर बाकी थी। 

कलाकार: एजाज खान, साहिल आनंद, हर्ष नागर, अनंत महादेवन, वैभव माथुर, शालू सिंह  
निर्देशक-लेखक: हरीश कोटियान, संदीप चौधरी 
निर्माता: बलदेव सिंह बेदी 
संगीत : सुमेश हिमांशु, रैना सावन, सागर सरकार, विष्णु नारायण 
गीत : हिमांशु जोशी, असलम सोनी, रवि बाबू 
रेटिंग: 1 स्टार

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