MOVIE REVIEW: पढ़ें रणदीप हुड्डा की 'लाल रंग' का रिव्यू
क्या किसी मराठी पृष्ठभूमि की कहानी के लिए वाकई किसी मराठी कलाकार का होना जरूरी है? इसी तरह गुजराती, राजस्थानी या फिर पंजाबी पृष्ठभूमि की फिल्म के लिए कलाकार उक्त भाषी होना लाजिमी है। किसी अच्छे...
क्या किसी मराठी पृष्ठभूमि की कहानी के लिए वाकई किसी मराठी कलाकार का होना जरूरी है? इसी तरह गुजराती, राजस्थानी या फिर पंजाबी पृष्ठभूमि की फिल्म के लिए कलाकार उक्त भाषी होना लाजिमी है। किसी अच्छे कलाकार के लिए तो ऐसा कतई जरूरी नहीं है। लेकिन न जाने क्यों फिल्म ‘लाल रंग’ देख कर लगता है कि हरियाणवी पृष्ठभूमि की इस कहानी के लिए मौजूदा दौर में रणदीप हुड्डा से बेहतर कोई और नहीं हो सकता था।
रणदीप हरियाणा के ही हैं और अपने 15 साल के अभिनय करियर में करीब तीन दर्जन से अधिक फिल्में करने के बाद यह पहला मौका है जब वो पूरी तरह से खालिस हरियाणवी अवतार में दिखे हैं।
ये कहानी है हरियाणा के करनाल शहर की। यहां का रहने वाला शंकर (रणदीप हुड्डा) का अपना ही एक स्टाइल है और उसके इसी स्टाइल का दीवाना हो जाता है राजेश धिमण (अक्षय ओबेराय) जो कि लैब असिस्टेंट बनना चाहता है। दोनों की मुलाकात एक सरकारी संस्थान में होती है। राजेश यहां पढ़ने आया है और शंकर तो यहां बार-बार छात्र बन कर आता रहता है।
दरअसल, इस संस्थान में एक ब्लड बैंक भी है, जिससे गैर-कानूनी तरीके से ब्लड बेचा जाता है। शंकर और उसका सहयोगी पुष्पेन्द्र (राजेन्द्र सेठी) जो कि ब्लड बैंक का इंचार्ज है, के साथ मिल कर ये गोरख धंधा कई सालों से चल रहा है। शंकर, राजेश को भी इस काम में अपने साथ मिला लेता है। देखते ही देखते राजेश पैसों में खेलने लगता है।
एक दिन किसी बात पर राजेश और शंकर की ठन जाती है। राजेश, शंकर से अलग हो जाता है। वह खुद ही ब्लड की सप्लाई करने लगता है और एक दिन जब किसी खास ग्रुप के ब्लड की डिमांड आती है तो वह बिना जांच किये एक व्यक्ति का ब्लड बेच देता है। बाद में पता चलता है कि जिस व्यक्ति को वह ब्लड चढ़ाया गया था, उसकी तो मौत हो गयी है, क्योंकि ब्लड एचआईवी पॉजिटिव था। जांच होती है तो राजेश और पुष्पेन्द्र दोनों लपेटे में आ जाते हैं। वैसे भी मामले की जांच पर रहे एसपी गजराज सिंह (रजनीश दुग्गल) को राजेश पर पहले से ही शक था।
गजराज, राजेश से ब्लड माफिया से जुड़े अन्य लोगों के नाम जानना चाहता है, जिसमें से एक शंकर भी है। एसपी का दबाव काम कर जाता है और राजेश, शंकर का नाम देने के लिए तैयार भी हो जाता है, लेकिन ऐन मौके पर शंकर, राजेश को घेर लेता है और फिर जो होता है, उससे सब सन्न रह जाते हैं।
कुछ सत्य घटनाक्रमों पर आधारित यह फिल्म अपने विषय की वजह से चौंकाती तो है। खासतौर से ये जानना कि साल 2002 में दिल्ली के एक नामी अस्पताल के ब्लड बैंक से कैसे ब्लड चोरी करके हरियाणा ले जाकर बेचा जाता था। कैसे दिल्ली का लेबल हटा कर उन पर स्थानीय लेबल चिपकाए जाते थे और पैकेट से ब्लड को कैसे ट्रांसफर किया जाता था। ये भी कि कैसे पैसों का लालच देकर किसी भी कुपोषित व्यक्ति का ब्लड निकाल लिया जाता है और बेच दिया जाता है।
पेशेवर ब्लड डोनर और नशेड़ियों के रक्त दान के सच, चौंकाते तो हैं। याद कीजिए उस दौर को जब डेंगू फैलता है तो कैसे ब्लड की मांग बढ़ जाती है। ऐसे में इस धंधे से जुड़े लोगों की दीवाली मनती है। लेकिन ये कुछ तमाम बातें इंटरवल क बाद हैं, जिसकी वजह से फिल्म का पहला भाग काफी सुस्त हो गया है।
इसके अलावा राजेश और शंकर की प्रेम कहानी के एंगल इसे और बोझिल कर देते हैं। यह एक थ्रिलर फिल्म हो सकती थी, लेकिन इसे दोस्ती और भाईचारे के संदेश से पाट दिया है। तमाम बुराईयों के बावजूद शंकर हीरो बन जाता है। क्या इसलिए क्योंकि वो ब्लड निकालने से पहले डोनर की जांच कर लेता था? या जरूरतमंदों की वो मदद करता था। बाद में वो एक एनजीओ खोल लेता है और मुफ्त में ब्लड बांटता है। इससे शंकर हीरो कैसे बन जाता है, समझ से परे है। ये एक असल किरदार हो, तब भी एक कुपोषित व्यक्ति की उस मौत को कैसे नजरंदाज किया जा सकता है, जिसका जिम्मेदार शंकर है।
रणदीप का हरियाणवी लहजा भाता है, लेकिन संवाद बेहद कमजोर हैं। अभिनय तो वो अच्छा कर ही लेते हैं। ऐसा लगता है कि शंकर का किरदार उन्हीं के लिए लिखा गया है। अक्षय ओबेराय ने प्रयास अच्छा किया है, लेकिन वह बांध नहीं पाते। उनके इतर फिल्म के अन्य चरित्र किरदार ज्यादा आकर्षित करते हैं।
दरअसल, निर्देशक यह तय नहीं कर पाये कि इसे ब्लड माफिया पर केन्द्रित किया जाए या दोस्ती पर। यह भटकाव फिल्म में असमंजस की स्थिति पैदा करता है।
रेटिंग : 2 स्टार
सितारे : रणदीप हुड्डा, अक्षय ओबेराय, पिया बाजपेयी, रजनीश दुग्गल, मिनाक्षी दीक्षित, राजेन्द्र सेठी
निर्देशक : सैयद अहमद अफजल
निर्माता : निकिता ठाकुर
कहानी-पटकथा-संवाद : सैयद अहमद अफजल, पंकज माट्टा
गीत : मांगे राम कोच, दुष्यंत कुमार, शकील सोहेल, कौसर मुनीर
संगीत : विपिन पटवा, शिराज उप्पल, माथियार डय़ूप्लेसी