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अभिनेत्री नहीं डॉक्टर बनना चाहती थीं नरगिस

(पुण्यतिथि के अवसर पर) हिंदी फिल्मों की मशहूर अदाकारा नरगिस ने लगभग चार दशक तक अपने बहुआयामी अभिनय से दर्शकों को चमत्कृत किए रखा लेकिन वह बचपन के दिनों में अभिनेत्री नहीं डॉक्टर बनना चाहती...

अभिनेत्री नहीं डॉक्टर बनना चाहती थीं नरगिस
एजेंसीTue, 03 May 2016 03:35 PM
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(पुण्यतिथि के अवसर पर)

हिंदी फिल्मों की मशहूर अदाकारा नरगिस ने लगभग चार दशक तक अपने बहुआयामी अभिनय से दर्शकों को चमत्कृत किए रखा लेकिन वह बचपन के दिनों में अभिनेत्री नहीं डॉक्टर बनना चाहती थीं।
              
कलकत्ता (अब कोलकाता) शहर में एक जून 1929 को जन्मी कनीज फातिमा राशिद उर्फ नरगिस के घर में मां जद्दन बाई के अभिनेत्री और फिल्म निर्माता होने के कारण फिल्मी माहौल था। इसके बावजूद बचपन में नरगिस की अभिनय में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उनकी तमन्ना डॉक्टर बनने की थी जबकि उनकी मां चाहती थीं कि वह अभिनेत्री बनें।


               
एक दिन उनकी मां ने उनसे स्क्रीन टेस्ट के लिए फिल्म निर्माता एवं निर्देशक महबूब खान के पास जाने को कहा। चूंकि नरगिस अभिनय क्षेत्र में जाने की इच्छुक नहीं थीं इसलिए उन्होंने सोचा कि यदि वह स्क्रीन टेस्ट में फेल हो जाती हैं तो उन्हें अभिनेत्री नहीं बनना पड़ेगा।
            
स्क्रीन टेस्ट के दौरान नरगिस ने अनमने ढंग से संवाद बोले और सोचा कि महबूब खान उन्हें स्क्रीन टेस्ट में फेल कर देंगे लेकिन उनका यह विचार गलत निकला। महबूब खान ने अपनी फिल्म 'तकदीर' (1943) के लिए बतौर नायिका उन्हें चुन लिया।

इसके बाद वर्ष 1945 मे महबूब खान द्वारा ही निर्मित फिल्म 'हुमांयूं' में नरगिस को काम करने का मौका मिला। साल 1949 नरगिस के सिने करियर में अहम पड़ाव साबित हुआ। इस वर्ष उनकी बरसात और अंदाज जैसी सफल फिल्में प्रदर्शित हुई। प्रेम त्रिकोण बनी फिल्म अंदाज में उनके साथ दिलीप कुमार और राजकपूर जैसे नामी अभिनेता थे। इसके बावजूद भी नरगिस दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रही।
        
साल 1950 से 1954 तक का वक्त नरगिस के सिने करियर के लिए बुरा साबित हुआ। इस दौरान उनकी 'शीशा', 'बेवफा', 'आशियाना', 'अंबर', 'अनहोनी', 'शिकस्त', 'पापी', 'धुन', 'अंगारे' जैसी कई फिल्में बॉक्स ऑफिस पर असफल हो गयी लेकिन साल 1955 मे उनकी राजकपूर के साथ 'श्री 420' फिल्म प्रदर्शित हुई जिसकी कामयाबी के बाद वह एक बार फिर से शोहरत की बुंलदियो पर जा पहुंची।


                
नरगिस के सिने करियर मे उनकी जोड़ी राज कपूर के साथ काफी पसंद की गयी। राज कपूर और नरगिस ने सबसे पहले फिल्म साल 1948 मे प्रदर्शित फिल्म 'आग' में एक साथ अभिनय किया था। इसके बाद नरगिस ने
राजकपूर के साथ 'बरसात', 'अंदाज', 'जान-पहचान', 'प्यार', 'आवारा अनहोनी', 'आशियाना', 'आह', 'धुन', 'पापी', 'श्री 420', 'जागते रहो', 'चोरी चोरी' जैसी कई फिल्मों में भी काम किया।
       
साल 1956 मे प्रदर्शित फिल्म 'चोरी चोरी' नरगिस और राजकपूर की जोड़ी वाली अंतिम फिल्म थी। हांलाकि राजकपूर की फिल्म 'जागते रहो' में भी नरगिस ने अतिथि कलाकार की भूमिका निभायी। इस फिल्म के अंत में लता मंगेश्कर की आवाज मे नरगिस पर 'जागो मोहन प्यारे' गाना फिल्माया गया था।

साल 1957 में महबूब खान की फिल्म 'मदर इंडिया' नरगिस के सिने करियर के साथ ही व्यक्तिगत जीवन में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इस फिल्म में नरगिस ने सुनील दत्त की मां का किरदार निभाया था। मदर इंडिया की शूटिंग के दौरान नरगिस को आग से सुनील दत्त ने बचाया था। इस घटना के बाद नरगिस ने कहा था कि पुरानी नरगिस की मौत हो गयी है और नई नरगिस का जन्म हुआ है। उन्होंने अपनी उम्र और हैसियत की परवाह किए बिना सुनील दत्त को अपना जीवन साथी चुन लिया।
         
शादी के बाद नरगिस ने फिल्मों में काम करना कुछ कम कर दिया। करीब दस वर्ष के बाद अपने भाई अनवर हुसैन और अख्तर हुसैन के कहने पर नरगिस 1967 में फिल्म 'रात और दिन' में काम किया। इस फिल्म के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पहला मौका था जब किसी अभिनेत्री को राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया था।


         
नरगिस के सिने करियर में उनकी जोड़ी राजकपूर के साथ काफी पसंद गयी। नरगिस ने अपने सिने करियर में लगभग 55 फिल्मों में काम किया। नरगिस को अपने सिने करियर में मान-सम्मान बहुत मिला। वह अपनी अभिनेत्री थी जिन्हें पदमश्री पुरस्कार दिया गया। उन्हें राज्यसभा सदस्य भी बनाया गया।
             
अपने संजीदा अभिनय से सिने प्रेमियों को भावविभोर करने वाली नरगिस 03 मई 1981 को सदा के लिए इस दुनिया से रूखसत हो गयी।

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