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बर्थडे स्पेशल: बेगम अख्तर की आवाज का जादू आज भी है कायम

अपनी दिलकश आवाज से श्रोताओं को दीवाना बनाने वाली 'बेगम अख्तर' ने कहा था, 'मैं शोहरत और पैसे को अच्छी चीज नहीं मानती हूं। औरत की सबसे बड़ी कामयाबी है किसी की अच्छी बीवी बनना।' उन्होंने शादी के बाद...

बर्थडे स्पेशल: बेगम अख्तर की आवाज का जादू आज भी है कायम
एजेंसीWed, 07 Oct 2015 11:29 AM
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अपनी दिलकश आवाज से श्रोताओं को दीवाना बनाने वाली 'बेगम अख्तर' ने कहा था, 'मैं शोहरत और पैसे को अच्छी चीज नहीं मानती हूं। औरत की सबसे बड़ी कामयाबी है किसी की अच्छी बीवी बनना।' उन्होंने शादी के बाद गुनगुना तक छोड़ दिया था। जानिए उनके जन्मदिन पर ऐसे ही दिलचस्प किस्से।

बेगम ने कहा मैं गाना नहीं सीखूंगी
       
बचपन में बेगम अख्तार उस्ताद मोहम्मद खान से संगीत की शिक्षा लिया करती थीं। उन दिनों बेगम अख्तर से सही सुर नहीं लगते थे। उनके गुरू ने उन्हें कई बार सिखाया और जब वह नहीं सीख पायी तो उन्हे डांट दिया। बेगम अख्तर ने रोते हुए उनसे कहा, 'हमसे नहीं बनता नानाजी, मैं गाना नहीं सीखूंगी। उनके उस्ताद ने कहा, बस इतने में हार मान ली तुमने। नहीं बिट्टो ऐसे हिम्मत नहीं हारते, मेरी बहादुर बिटिया। चलो एक बार फिर सुर लगाने में जुट जाओ।' उनकी बात सुनकर बेगम अख्तर ने फिर रियाज शुरू किया और सही सुर लगाए।

उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में 7 अक्टूबर 1914 को जन्मी बेगम ने फैजाबाद में सारंगी के उस्ताद इमान खां और अता मोहम्मद खान से संगीत की शुरुआती शिक्षा ली। उन्होंने मोहम्मद खान अब्दुल वहीद खान से भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखा।

नाटक में काम करोगी तो गाना नहीं सिखाऊंगा

तीस के दशक में बेगम अख्तर पारसी थियेटर से जुड़ गई। नाटकों में काम करने के कारण उनका रियाज छूट गया जिससे मोहम्मद अता खान काफी नाराज हुए और उन्होंने कहा,'जब तक तुम नाटक में काम करना नहीं छोड़ती
मैं तुम्हें गाना नहीं सिखाऊंगा।' उनकी इस बात पर बेगम अख्तर ने कहा,'आप सिर्फ एक बार मेरा नाटक देखने  आ जाएं उसके बाद आप जो कहेगे मैं करूंगी।'
        
उस रात मोहम्मद अता खान बेगम अख्तर के नाटक ‘तुर्की हूर’ देखने गए। जब बेगम अख्तर ने उस नाटक का गाना ‘चल री मोरी नैय्या’ गाया तो उनकी आंखों में आंसू आ गए और नाटक खत्म होने के बाद बेगम अख्तर से
उन्होंने कहा बिटिया तू सच्ची अदाकारा है, जब तक चाहो नाटक में काम करो।

फिल्मों में दिखाया एक्टिंग का जौहर
       
नाटकों में मिली शोहरत के बाद बेगम अख्तर को ईस्ट इंडिया कंपनी में अभिनय करने का मौका मिला। बतौर अभिनेत्री बेगम अख्तर ने  ‘एक दिन का बादशाह ’ से अपने सिनेमा करियर की शुरुआत की। लेकिन इस फिल्म की असफलता के कारण अभिनेत्री के रूप में वह कुछ ख़ास पहचान नहीं बना पाईं।  वर्ष 1933 में ईस्ट इंडिया के बैनर तले बनी फिल्म 'नल दमयंती' की सफलता के बाद बेगम अख्तर बतौर अभिनेत्री अपनी पहचान बनाने में सफल रही।
        
इस बीच बेगम अख्तर ने 'अमीना', 'मुमताज बेगम', 'जवानी का नशा', 'नसीब का चक्कर' जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखाया। कुछ वक्त के बाद वह लखनऊ चली गईं जहां उनकी मुलाकात महान निर्माता निर्देशक महबूब खान से हुई जो बेगम अख्तर की प्रतिभा से काफी प्रभावित हुए और उन्हें मुंबई आने का न्योता दिया।

मुंबई की चकाचौंध लगी थी उन्हें अजीब
       

वर्ष 1942 में महबूब खान की फिल्म  ‘रोटी’ में बेगम अख्तर ने अभिनय करने के साथ ही गाने भी गाये। उस फिल्म के लिए बेगम अख्तर ने छह गाने रिकॉर्ड कराए थे, लेकिन फिल्म निर्माण के दौरान संगीतकार अनिल विश्वास और महबूब खान की आपसी अनबन के बाद रिकॉर्ड किए गए तीन गानों को फिल्म से हटा दिया गया। बाद में उनके इन्हीं गानों को ग्रामोफोन डिस्क ने जारी किया। कुछ दिनों के बाद बेगम अख्तर को मुंबई की चकाचौंध कुछ अजीब सी लगने लगी और वह लखनऊ वापस चली गईं।

शादी के बाद गुनगुनाना तक छोड़ दिया

वर्ष 1945 में बेगम अख्तर का निकाह बैरिस्टर इश्ताक अहमद अब्बासी से हो गया। दोनों की शादी का किस्सा काफी दिलचस्प है। एक कार्यक्रम के दौरान बेगम अख्तर और इश्ताक मोहम्मद की मुलाकात हुई। बेगम अख्तर ने कहा, 'मैं शोहरत और पैसे को अच्छी चीज नहीं मानती हूं। औरत की सबसे बड़ी कामयाबी है किसी की अच्छी बीवी बनना।' यह सुनकर अब्बासी साहब बोले 'क्या आप शादी के लिए अपना करियर छोड़ देगी।’ इस पर उन्होंने जवाब दिया,‘हां यदि आप मुझसे शादी करते है तो मैं गाना बजाना क्या आपके लिए अपनी जान भी दे दूं।  शादी के बाद उन्होंने गाना बजाना तो दूर गुनगुनाना तक छोड़ दिया।'

गाना छोड़ने के गम में बीमार रहने लगी       

शादी के बाद पति की इजाजत नहीं मिलने पर बेगम अख्तर ने गायकी से रुख मोड़ लिया। गायकी से बेइंतहा मोहब्बत रखने वाली बेगम अख्तर को जब लगभग पांच साल तक आवाज की दुनिया से रुखसत होना पड़ा। वह इसका सदमा बर्दाश्त नहीं कर सकीं, हमेशा बीमार रहने लगी। हकीम और वैध की दवाइयां भी उनके स्वास्थ्य को नहीं सुधार पा रही थी।

5 साल बाद रेडियो पर गाने से शुरुआत की
      
एक दिन जब बेगम अख्तर गा रही थी कि तभी उनके पति के दोस्त सुनील बोस ने उन्हें गाते देखकर कहा, 'अब्बासी साहब यह तो बहुत नाइंसाफी है। कम से कम अपनी बेगम को रेडियो में तो गाने का मौका दीजिए।' अपने दोस्त की बात मानकर उन्होंने बेगम अख्तर को गाने का मौका दिया। जब लखनऊ रेडियो स्टेशन में बेगम अख्तर पहली बार गाने गईं तो उनसे ठीक से नहीं गाया गया।

अगले दिन अखबार में छपा कि बेगम अख्तर का गाना बिगड़ा, बेगम अख्तर नहीं जमी। यह सब देखकर बेगम अख्तर ने रियाज करना शुरू कर दिया और बाद में उनका अगला कार्यक्रम अच्छा हुआ। इसके बाद बेगम अख्तर ने एक बार फिर संगीत समारोहों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। इस बीच उन्होंने फिल्मों में भी अभिनय करना जारी रखा और धीरे-धीरे वह फिर से अपनी खोई हुई पहचान पाने में सफल हो गईं।

'जलसा घर' बेगम के सिनेमा करियर की आखिरी फिल्म
      
वर्ष 1958 में सत्यजीत रे द्वारा निर्मित फिल्म ‘जलसा घर’ बेगम अख्तर के सिनेमा करियर की अंतिम फिल्म साबित हुई। इस फिल्म में उन्होंने एक गायिका की भूमिका निभाकर उसे जीवंत कर दिया था। इस दौरान वह रंगमंच से भी जुडी रही और अभिनय करती रहीं।
      
सत्तर के दशक में लगातार संगीत से जुड़े कार्यक्रमों मे भाग लेने और काम के बढ़ते दबाव के कारण वह बीमार रहने लगी और इससे उनकी आवाज भी प्रभावित होने लगी। इसके बाद उन्होंने संगीत कार्यक्रमों में हिस्सा लेना काफी कम कर दिया।

पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्मानित की गईं
        
वर्ष 1972 में संगीत के क्षेत्र मे उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा वह पद्मश्री और पद्म भूषण पुरस्कार से भी सम्मानित की गई।
 
मौत से सात दिन पहले गायी थी कैफी आजमी की गजल
       
यह महान गायिका 30 अक्टूबर 1974 को इस दुनिया को अलविदा कह गईं। अपनी मौत से सात दिन पहले बेगम अख्तर ने कैफी आजमी की गजल गायी थी। यह गजल थी 'सुना करो मेरी जान उनसे उनके अफसाने, सब अजनबी है यहां कौन किसको पहचाने।'

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