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B'Day Special: बॉलीवुड के आन-बान-शान थे 'प्राण'

बॉलीवुड में प्राण एक ऐसे खलनायक थे, जिन्होंने 50 से 70 के दशक के बीच फिल्म इंडस्ट्री में अपनी बेजोड़ खलनायकी और रोबीली आवाज के दम पर एकछत्र राज...

B'Day Special: बॉलीवुड के आन-बान-शान थे 'प्राण'
एजेंसीFri, 12 Feb 2016 01:39 PM
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बॉलीवुड में प्राण एक ऐसे खलनायक थे, जिन्होंने 50 से 70 के दशक के बीच फिल्म इंडस्ट्री में अपनी बेजोड़ खलनायकी और रोबीली आवाज के दम पर एकछत्र राज किया।
               
प्राण जिस फिल्म में होते दर्शक उसे देखने अवश्य सिनेमाहॉल जाया करते थे। इस दौरान उन्होंने जितने भी फिल्मों में अभिनय किया उसे देखकर ऐसा लगा कि उनके द्वारा अभिनीत पात्रों का किरदार केवल वे ही निभा सकते थे।
        
तिरछे होंठो से शब्दों को चबा-चबा कर बोलना, सिगरेट के धुंओं का छल्ले बनाना और चेहरे के भाव को पल-पल बदलने में निपुण प्राण ने उस दौर में खलनायक को भी एक अहम पात्र के रूप में सिने जगत में स्थापित कर दिया। खलनायकी को एक नया आयाम देने वाले प्राण के पर्दे पर आते ही दर्शकों के अंदर एक अजीब सी सिहरन होने लगती थी।
        
प्राण की अभिनीत भूमिकाओं की यह विशेषता रही है कि उन्होंने जितनी भी फिल्मों मे अभिनय किया उनमें हर पात्र को एक अलग अंदाज में दर्शकों के सामने पेश किया। रुपहले पर्दे पर प्राण ने जितनी भी भूमिकाएं निभायी उनमें वह हर बार नए तरीके से संवाद बोलते नजर आये। खलनायक का अभिनय करते समय प्राण उस भूमिका में पूरी तरह डूब जाते थे। उनका गेट अप अलग तरीके का होता था।

दुष्ट और बुरे आदमी का किरदार निभाने वाले प्राण ने अपने सशक्त अभिनय से अपनी एक ऐसी छवि बना ली थी कि लोग फिल्म में उन्हें देखते ही धिक्कारने लगते थे। इतना ही नहीं उनके नाम प्राण को बुरी नजर से देखा जाता था और उस दौर में शायद ही ऐसा कोई घर होगा, जिसमें बच्चे का नाम प्राण रखा गया हो।
        
प्राण के हिंदी फिल्मों में आगमन की कहानी काफी दिलचस्प है। प्राण का जन्म 12 फरवरी 1920 को दिल्ली के एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता केवल कृष्ण सिकंद सरकारी ठेकेदार थे। उनकी कंपनी सड़कें
और पुल बनाने के ठेके लिया करती थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद प्राण अपने पिता के काम में हाथ बंटाने लगे।
        
एक दिन पान की दुकान पर उनकी मुलाकात लाहौर के मशहूर पटकथा लेखक वली मोहम्मद से हुई। वली मोहम्मद ने प्राण की सूरत देखकर उन्हें फिल्मों में काम करने का प्रस्ताव दिया। प्राण ने उस समय वली मोहम्मद के प्रस्ताव पर ध्यान नहीं दिया लेकिन उनके बार-बार कहने पर वह तैयार हो गए।
        
फिल्म 'यमला जट' से प्राण ने अपने सिने करियर की शुरुआत की। फिल्म की सफलता के बाद प्राण को यह महसूस हुआ कि फिल्म इंडस्ट्री में यदि वह करियर बनाएगें तो ज्यादा शोहरत हासिल कर सकते हैं। इस बीच भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद प्राण लाहौर छोड़कर मुंबई आ गए।

इस बीच प्राण ने लगभग 22 फिल्मों में अभिनय किया और उनकी फिल्में सफल भी हुई लेकिन उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि मुख्य अभिनेता की बजाय खलनायक के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा।
       
साल 1948 में उन्हें बॉम्बे टॉकीज की निर्मित फिल्म 'जिद्दी' में बतौर खलनायक काम करने का मौका मिला। फिल्म की सफलता के बाद प्राण ने यह निश्चय किया कि वह खलनायकी को ही करियर का आधार बनाएगें और इसके बाद प्राण ने लगभग चार दशक तक खलनायकी की लंबी पारी खेली और दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।
             
प्राण जब रूपहले पर्दे पर फिल्म अभिनेता से बात करते होते तो उनके बोलने से पहले दर्शक बोल पड़ते यह झूठ बोल रहा है, इसकी बात पर विश्वास नहीं करना यह प्राण है। इसकी रग-रग में मक्कारी भरी पड़ी है। साल 1958 में प्रदर्शित फिल्म 'अदालत' में प्राण ने इतने खतरनाक तरीके से अभिनय किया कि महिलाएं हॉल से भाग खड़ी हुई और दर्शकों को पसीने आ गए।
         
सत्तर के दशक में प्राण ने खलनायक की छवि से बाहर निकलकर चरित्र भूमिका पाने की कोशिश में लग गए। साल 1967 में निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार ने अपनी फिल्म 'उपकार' में प्राण को मलंग काका का एक ऐसा रोल दिया जो प्राण के सिने करियर का मील का पत्थर साबित हुआ।

फिल्म 'उपकार' में प्राण ने मलंग काका के रोल को इतनी शिद्दत के साथ निभाया कि लोग प्राण के खलनायक होने की बात भूल गए। इस फिल्म के बाद प्राण के पास चरित्र भूमिका निभाने का तांता सा लग गया। इसके बाद प्राण ने सत्तर से नब्बे के दशक तक अपने चरित्र भूमिकाओं से दर्शकों का मन मोहे रखा।
         
सदी के खलनायक प्राण की जीवनी भी लिखी जा चुकी है। जिसका शीर्षक 'प्राण एंड प्राण' रखा गया है। पुस्तक का यह शीर्षक इसलिए रखा गया है कि प्राण की अधिकतर फिल्मों में उनका नाम सभी कलाकारों के पीछे और प्राण लिखा हुआ आता था। कभी-कभी उनके नाम को इस तरह पेश किया जाता था 'अबव ऑल प्राण'।
        
प्राण ने अपने चार दशक से भी ज्यादा लंबे सिने करियर में लगभग 350 फिल्मों मे अपने अभिनय का जौहर दिखाया। प्राण के मिले सम्मान पर यदि नजर डालें तो अपने दमदार अभिनय के लिए वह तीन बार सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। साल 2013 में प्राण को फिल्म जगत के सर्वश्रेष्ठ सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार दिया गया था।
        
प्राण को उनके करियर के शिखर काल में कभी उन्हें फिल्म के नायक से भी ज्यादा भुगतान किया जाता था। 'डॉन' फिल्म में काम करने के लिए उन्हें नायक अमिताभ बच्चन से ज्यादा रकम मिली थी। अपने दमदार अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने वाले प्राण 12 जुलाई 2013 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।

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