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MOVIE REVIEW: बेदम, बेअसर, बेवजह...'हीरो'

शुरुआत में ही ये बताने की जरूरत तो नहीं लग रही, फिर भी बता देते हैं कि यह फिल्म 1983 में आई निर्देशक सुभाष घई की फिल्म 'हीरो' (1983) का ऑफिशियल रीमेक है, जिसके जरिये अभिनेता आदित्य पंचोली के बेटे...

MOVIE REVIEW: बेदम, बेअसर, बेवजह...'हीरो'
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 11 Sep 2015 04:34 PM
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शुरुआत में ही ये बताने की जरूरत तो नहीं लग रही, फिर भी बता देते हैं कि यह फिल्म 1983 में आई निर्देशक सुभाष घई की फिल्म 'हीरो' (1983) का ऑफिशियल रीमेक है, जिसके जरिये अभिनेता आदित्य पंचोली के बेटे सूरज पंचोली और सुनील शेट्टी की बेटी अथिया शेट्टी को बॉलीवुड में लांच किया गया है। क्योंकि अभिनेता सलमान खान इन नवोदित कलाकारों को लेकर इस फिल्म का इतना ज्यादा प्रचार कर चुके हैं कि अब वाकई लगने लगा है कि ये उनके ही बैनर की फिल्म है।

इस फिल्म की रिलीज से पहले ऐन मौके पर एक खबर ये भी आयी कि सलमान खान अब एडिटर भी बन गये हैं। उन्होंने इस फिल्म को प्रोड्यूस करने और एक गीत गाने के साथ-साथ फिल्म का संपादन भी किया है। करीब आधे घंटे से ज्यादा की फिल्म में उन्होंने कुछ दिन पहले ही एडिट की, जिसके बाद फिल्म की लंबाई दो घंटे कुछ मिनट रह गयी। और एक महत्वपूर्ण बात ये भी कि इस फिल्म पटकथा को नया रूप देने में निखिल आडवाणी और उनके सहयोगियों को साल डेढ़ साल का लंबा वक्त लगा, जिसे सुभाष घई ने पढ़कर क्लीन चिट दी और फिर फिल्म बननी शुरू हुई।

तो क्या आज के यूथ को ध्यान में रख कर लिखी गयी इस कहानी-पटकथा में वाकई वो बात है, जिसके दम पर कभी जैकी श्राफ-मिनाक्षी शेषाद्री रातों रात स्टार बन गये थे और सुभाष घई शो मैन। क्या सूरज-अथिया की एक्टिंग में वो स्पार्क है, जिसे 32 साल पहले एक संगीतमय फिल्म में नए चेहरों के साथ लोगों ने पसंद किया था, जबकि वो जमाना तो अभिताभ बच्चन जैसे सुपरस्टार का था और घई ने तो 'हीरो' में जैकी श्राफ से एक-एक दो-दो लाइनें पढ़वाकर फिल्म पूरी की थी। लेकिन पहले एक नजर 'मॉडिफाइड' कहानी पर।

मुंबई में रहने वाले एक गली के गुंडे सूरज (सूरज पंचोली) को मुंबई पुलिस के आईजी श्रीकांत माथुर (तिग्मांशु धुलिया) की बेटी राधा (अथिया शेट्टी) को देखते ही पहली ही नजर में प्यार हो जाता है। राधा को सूरज की असलियत नहीं पता। सूरज, पाशा (आदित्य पंचोली) का आदमी है, जिसपर एक कत्ल का इल्जाम है। आईजी को पता है कि पाशा ही कातिल है और वो उसे हर हाल में जेल कराना चाहता है। मामला बिगड़ता देख पाशा सूरज से राधा का अपहरण करवा लेता है।

सूरज, राधा को शहर से बाहर ले जाता है, जहां इन दोनों के बीच प्यार पनपने लगता है। एक दिन राधा को सूरज की असलियत पता चल जाती है और वो उसे पुलिस को सरेंडर करने को कहती है। इसी दौरान पाशा किसी तरह से जेल से भाग जाता है और सूरज को जेल हो जाती है। दो साल बाद सूरज एक शरीफ इंसान बन कर जेल से बाहर आता है एक इज्जत की जिंदगी जीने के लिए एक जिम खोल लेता है। लेकिन आईजी माथुर उसे अभी एक गली का गुंडा ही समझते हैं और फिर एक दिन कहानी ऐसा मोड़ लेती है जब सूरज को पाशा और राधा में से एक चुनना पड़ता है।

जिन लोगों 1983 की 'हीरो' देखी है उन्हें आज की इस कहानी में ढेर समानताएं दिखने के साथ-साथ बहुत कुछ मिसिंग भी दिख रहा होगा। तो साहब आज की इस 'हीरो' में  मिसिंग तो बहुत कुछ है। अगर पहली फिल्म से तुलना न भी की जाए तो भी यह फिल्म कई मोर्चों पर लुढ़कती-फिसलती दिखती है।

कोई भी आम दर्शक जो पहली कतार में बैठकर बढि़या मनोरंजन मिलने पर सीटियां मारता है, वो इस 'मॉडिफाइड' कहानी के नाम ही इसके मेकर्स की क्लास ले लेगा। ये कह कर कि इसमें नया क्या है। क्या तीस-बत्तीस साल में कुछ नहीं बदला है? 'पीकू', 'मसान', 'मांझी', 'तनु वेड्स मनु रिर्टन्स', 'बदलापुर' और 'एनएच 10' सरीखी फिल्में पसंद करने वाली आज की पीढ़ी मेट्रो में, बस में, लोकल ट्रेन में मोबाइल पर न जाने किस-किस भाषा की, किन किन देशों की फिल्में देखती फिरती है, इस फिल्म पर अपना पैसा इन्वेस्ट करना चाहेगी, क्या वाकई? क्योंकि फिल्म के अंत में पाशा, जिस ढंग से पाशा का हद्य परिर्वतन होता है और वह फिर आत्म समर्पण कर देता है, ये सब हाजमा खराब करने के लिए काफी है।

तीन दशक पहले आयी उस फिल्म के गीत आज भी सुनने का जी कर जाता है। क्या इस फिल्म के गीत तीन-चार हफ्ते भी याद किये जाएंगे? नहीं, बिल्कुल नहीं। पता नहीं क्यों, कोई भी किरदार अपना असर नहीं छोड़ पाया। तिग्मांशु धुलिया को देख लगता है कि वो सीधे 'गैंग्स ऑफ वासेपुर 2' के सेट से लौटे हैं। मुंबई पुलिस का सर्वे सर्वा और इतना सुस्त। आईजी की तुलना में पाशा ज्यादा साफ सुथरा और डैशिंग लगता है। ऐसा लगता है कि क्यों न पाशा से मॉडलिंग कराई जाए। दामोदर, जिमी, जमना भाभी, मदन पुरी वाला किरदार और जैकी के दोस्त आदि सरीखे किरदारों का इस नई कहानी में कुछ अता पता ही नहीं है। इनमें से जिन किरदारों को फेर बदल करके रखा भी है तो वह भी असर नहीं छोड़ पाते। और रही बात सूरज-अथिया की तो इन्हें देख बस यही लगता है स्टार पुत्र-पुत्रियों को यूं चाव से लांच करने का मोह कहीं बॉलीवुड को ले न डूबे।

आप सोच रहे होंगे कि अगर यह फिल्म इतनी ही बुरी है तो फिर इसे ये डेढ़ स्टार भी किसलिए। हां, ये डेढ़ स्टार इस फिल्म के सहायक निर्देशकों की टीम और उस क्रू के लिए, जिसने परदे के पीछे रह कर इस फिल्म को बेहद ग्लॉसी लुक दिया है। उन फाइट कॉरियोग्राफर्स के लिए, जिन्होंने क्लाईमैक्स और कुछेक एक्शन सीन्स को वाकई बेहद प्रभावी ढंग से अंजाम दिया है। अथिया की स्टाइलिंग और ड्रेसेज (काश वो उसे ढंग से कैरी भी कर पातीं) के लिए। अच्छी सिनेमाटोग्राफी के लिए भी। इन सब चीजों के साथ काश कि बेहतर निर्देशन, गीत-संगीत और अभिनय भी ध्यान दिया जाता।

रेटिंग : 1.5 स्टार
कलाकार : सूरज पंचोली, अथिया शेट्टी, आदित्य पंचोली, तिग्मांशु धुलिया, शरद केलकर, चेतन हंसराज, अनिता हसनंदानी
निर्देशन : निखिल आडवाणी
निर्माता : सलमान खान, सुभाष घई
संगीत : जिगर, अमाल मलिक, मीत ब्रदर्स, अन्जान, जस्सी कत्याल, सचिन
गीत : निरंजन आयंगर, कुमार
कहानी : सुभाष घई संवाद : उमेश बिष्ट
पटकथा : निखिल आडवाणी, उमेश बिष्ट

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