फोटो गैलरी

Hindi NewsFILM REVIEW बांके की क्रेजी बारात

FILM REVIEW: बांके की क्रेजी बारात

आजकल एप्प का जमाना है। बहुतेरी चीजें इसी जरिये खरीदी-बेची जा रही हैं। इस फिल्म की बात सच मानें तो शादी-ब्याह में रंगा रंग प्रोग्राम के लिए देसी ‘नचनिया’ भी एप्प के जरिये मंगाई जा सकती है।...

FILM REVIEW: बांके की क्रेजी बारात
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 28 Aug 2015 02:55 PM
ऐप पर पढ़ें

आजकल एप्प का जमाना है। बहुतेरी चीजें इसी जरिये खरीदी-बेची जा रही हैं। इस फिल्म की बात सच मानें तो शादी-ब्याह में रंगा रंग प्रोग्राम के लिए देसी ‘नचनिया’ भी एप्प के जरिये मंगाई जा सकती है। इस बात में कितना दम है ये तो ऊपरवाला जाने, लेकिन हां फिल्म में तो ऐसा ही दिखाया गया है।

अपने टाइटल से आकर्षित करती ये फिल्म बांके (राजपाल यादव) की शादी की दास्तान कहती है, जिसे निर्देशक ने दुल्हे-दुल्हन को लेकर होने वाली छद्म शादियों के ताने-बाने से बुना है। बांके की एक बेहद सुंदर (बांके की तुलना में उससे कहीं सुंदर) लड़की अंजलि (टिया बाजपेयी) से शादी होनी है, जिसके लिए उसका पिता (राकेश बेदी), चाचा कन्हैया (संजय मिश्रा) और रिश्तेदार लल्लन (विजय राज) एक छद्म दुल्हे की व्यवस्था करते हैं।

ऐन मौके पर वो छद्म या कहिये कि वो नकली दुल्हा कहीं भाग जाता है। कन्हैया के सुझाव पर एक हैंडसम लड़के विराट (सत्यजीत दुबे) को नकली दुल्हा बनने के लिए तैयार किया जाता है। विराट के पिता को कन्हैया का दस लाख का कर्ज चुकाना है, इसलिए वो बांके बन कर अंजलि से नकली शादी करने के लिए मान भी जाता है।

शादी की रस्मों और रीति-रिवाज निभाने के दौरान विराट को अहसास होता है कि वो ऐसा करके अंजलि के साथ ठीक नहीं कर रहा है, क्योंकि पहली ही नजर में उसे अंजलि से प्यार हो जाता है। यहां शादी के झमेले में अंजलि के घरवालों को दुल्हे के नकली होने पर शक भी होने लगता है, लेकिन कन्हैया और लल्लन किसी तरह से बात संभाल लेते हैं। वो असली बांके को बिट्टू कह कर पुकारने लगते हैं। बात बिगड़े इससे पहले बांके बना विराट अंजलि को ब्याह कर घर ले आ जाता है। यहां पहुंचते ही कन्हैया विराट के पिता का कर्ज माफ कर देता है और उसे अंजलि को छोड़ कर जाने के लिए कहता है। ये सब देख कर अंजलि टूट जाती है और उसे पता चल जाता है कि विराट ने बांके बन कर उसे पैसों की खातिर धोखा दिया है।

उधर, विराट अंजलि तो समझाता है कि उसने ये सब किसी मजबूरी में किया है। तभी अंजति एक प्लान बनाती है और बेचारा असली बांके मुंह ताकता रह जाता है।

हो सकता है कहानी पढ़ कर आपको मजा आ रहा होगा, लेकिन ये जरूरी नहीं है कि फिल्म देख कर भी आपको मजा आए, क्योंकि ये फिल्म दर्शकों के आनंद के लिए बनाई गयी है या फिर छद्म शादियों पर तंज कसने के लिए बनाई गयी है, साफ नहीं होता। आज कल बहुतेरे नए निर्देशक अपनी पहली ही फिल्म में किसी बात बेहद असरकारक ढंग से बयां कर देने में सफल दिखते हैं। ऐसे में इस फिल्म से बहुत बड़ी उम्मीदें पालना बेमानी लगता है। 

अभिनय के लिहाज से टिया बाजपेयी और सत्यजीत ने बस ठीक ठाक सा काम किया है। फिल्म में टिकने के लिए मजबूर करते हैं तो बस संजय मिश्रा, राजपाल यादव और विजय राज। तीनों ने फिल्म में सुर से सुर बांधे रखा है। फिल्म देख कर लगता है कि राजपाल यादव फिल्मों में वापस लौट रहे हैं। एक से गेटअप में दिखने वाले संजय मिश्रा वाकई किसी करीबी बड़े चचा टाइप लगते हैं, जिन्हें किसी शादी-ब्याह में किसी को डांटते-लपड़ते अक्सर देखा जाता है। लठैत मूड में विजय राज भी जंचे हैं। बावजूद इसके बांके की बारात से वो क्रेजीपन गायब दिखता है, जो इसके टाइटल और पोस्टर आदि में दिखता है।

रेटिंग : 2 स्टार
कलाकार : संजय मिश्रा, राजपाल यादव, सत्यजीत दुबे, विजय राज, टिया बाजपेयी, विजय राज, राकेश बेदी
निर्देशक : एजाज खान
निर्माता : अनिता मनी

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें