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4-डी तकनीक : फिल्म देखते हुए महसूस कर सकेंगे कॉफी की खुशबू

सोचिए सिनेमाघर में फिल्म देखते समय आपकी कुर्सियां हिलने लगें। फिल्म में कॉफी पीने का दृश्य होने पर कॉफी की महक आने लगे। बारिश का दृश्य होने पर हल्की फुहार चेहरे पर पड़े तो कैसा रहेगा। दरअसल यह कल्पना...

4-डी तकनीक : फिल्म देखते हुए महसूस कर सकेंगे कॉफी की खुशबू
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 30 Aug 2016 09:32 PM
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सोचिए सिनेमाघर में फिल्म देखते समय आपकी कुर्सियां हिलने लगें। फिल्म में कॉफी पीने का दृश्य होने पर कॉफी की महक आने लगे। बारिश का दृश्य होने पर हल्की फुहार चेहरे पर पड़े तो कैसा रहेगा। दरअसल यह कल्पना नहीं बल्कि 4-डी फिल्मों की हकीकत है। दुनिया के 30 देशों के150 सिनेमाघरों में 4-डी फिल्में दिखाई जाती हैं। हालांकि हमारे देश में अभी थ्री-डी फिल्मों की पहुंच भी कुछ सिनेमाघरों में हो पाई है। यहां खास चश्मा लगाकर थ्री-डी फिल्मों का लुत्फ उठाया जाता है। 

तकनीक न सिर्फ फिल्में देखने का अंदाज बदल रही हैंं बल्कि फिल्म निर्माताओं को भी नए तरीके से सोचने पर मजबूर कर रही है। गुलाम और आवारा पागल दीवाना जैसी फिल्में बना चुके निर्देशक विक्रम भट्ट ने 2011 में थ्री-डी फिल्म हांटेड फिल्म बनाई। उनके मुताबिक थ्री-डी फिल्म एक ऐसी चीज है जिसके बारे में सोचना काफी रोमांचक और आनंददायक होता है लेकिन इसे बनाना किसी भयावह दु:स्वपन के सच होने जैसा है। विक्रम भट्ट पहले दिन इस फिल्म के सिर्फ दो शॉट्स ही ले सके थे। थ्री-डी फिल्म का टिकट थोड़ा महंगा जरूर हो सकता है लेकिन दर्शक ऐसी फिल्में देखने के लिए अधिक खर्च करने से नहीं हिचकते।

4-डी सिनेमा: महसूस कर सकेंगे दृश्य
4-डी तकनीक से पर्दे पर जो भी होगा, उसे न केवल देखा जा सकेगा बल्कि महसूस भी किया जा सकेगा। इस तकनीक के सिनेमाहॉल में फिल्म देखने पर दर्शकों को धक्का भी लगेगा। फिल्म के किसी दृश्य में डायनासोर पास से गुजरेगा तो उसकी धमक भी महसूस होगी।इतना ही नहीं दर्शक सिर के पास से निकलती गोलियों से बचने की भी कोशिश कर सकेंगे।पर्दे के पीछे यहां दर्शकों को अलग-अलग अनुभव देने का इंतजाम रहता है। उदाहरण के लिए कॉफी, फूल और गन पाउडर की खुशबू देने का इंतजाम है। 4-डी सिनेमा की शुरुआत साल 2009 में दक्षिण कोरिया में हुई थी। अभी दुनिया के 30 देशों में लगभग 150 सिनेमाघरों में 4-डी फिल्में दिखाई जाती हैं
गहराई दिखाती थ्री-डी फिल्में
दरअसल हम पर्दे पर जो तस्वीरें देखते हैं वे सपाट नजर आती हैं क्योंकि इनमें दो ही विमाएं (डाइमेंशंस) होती हैं-लंबाई और चौड़ाई। थ्री-डी फिल्मों में लंबाई और चौड़ाई के साथ गहराई भी दिखाई देती है। इससे तस्वीरें जीवंत नजर आती हैं। फिल्म देखते समय दर्शकों को लगता है कि वे फिल्म में चल रहे दृश्यों से कुछ ही दूरी पर मौजूद हैं।

बिना चश्मा ऐसे देख सकेंगे थ्री-डी फिल्म
अमेरिका के मैसेच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के शोधकर्ताओं ने ऐसी स्क्रीन तैयार की है जिसपर थ्री-डी फिल्म देखने के लिए चश्मा लगाने की जरूरत नहीं होगी। दरअसल बिना चश्मे के थ्री-डी फिल्म देखने के लिए पर्दे के सामने एक निश्चित कोण पर बैठना पड़ता है। सिनेमाहॉल में तो दर्शक एक साथ बैठते हैं ऐसे में थ्री-डी फिल्मों का लुत्फ लेना असंभव हो जाता है। एमआईटी के वैज्ञानिकों ने जो स्क्रीन तैयार की है वह हर कोण पर थ्री-डी दृश्य दिखाने में सक्षम है।  

लगभग 40 फीसदी तक बढ़ जाता है बजट
निर्देशक विक्रम भट्ट के मुताबिक थ्री-डी तकनीक के इस्तेमाल से फिल्म के बजट में कम से कम 40 फीसदी इजाफा हो जाता है। ऐसे में फिल्म का टिकट भी महंगा हो जाता है। ट्रेंड विश्लेषक तरन आदर्श के मुताबिक थ्री-डी फिल्में आकर्षण तो पैदा करती हैं लेकिन इससे किसी फिल्म की सफलता की गारंटी नहीं मिलती। उनके मुताबिक कोई भी फिल्म अपनी संपूर्ण प्रस्तुति की वजह से चलती है। अगर फिल्म का विषय और कहानी बेहतर है तो दर्शक चश्मा लगाकर ऐसी फिल्में देखना पसंद करते हैं।

थ्री-डी का भविष्य


भारत में थ्री-डी फिल्में दिखाने वाले सिनेमाघरों की संख्या 200 से अधिक है।


थ्री-डी फिल्में दिखाने वाली सर्वाधिक स्क्रीन चीन में हैं। यहां 10 हजार स्क्रीनों पर थ्री-डी फिल्में दिखाई जाती हैं।


-एक अनुमान के मुताबिक दुनियाभर में लगभग 40 हजार स्क्रीन पर थ्री-डी फिल्में दिखाने की व्यवस्था है।


-भारत में पहली थ्री-डी फिल्म 1984 में बनी। तमिल में इसका नाम माई डियर कुट्टीचेतन था। बाद में इसे हिंदी में डब कर छोटा चेतन के नाम से रिलीज किया गया। यह एक बड़ी हिट फिल्म साबित हुई।


-इसके बाद जैकी श्रॉफ की थ्री-डी फिल्म शिवा का इंसाफ असफल साबिक हुई।

-रा वन, डॉन 2 और हांटेड जैसी कई थ्री-डी फिल्में भारत में बनी हैं।

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