फोटो गैलरी

Hindi Newsकाला धन करदाताओं को देंगे,एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में मोदी ने कहा

काला धन करदाताओं को देंगे,एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में मोदी ने कहा

भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने हर मुद्दे, हर पहलू पर ‘हिन्दुस्तान’ के साथ साझा किए अपने विचार... ‘काला धन वापस लाना मेरी व्यक्तिगत प्रतिबद्धता है (सत्ता में आने पर)...

काला धन करदाताओं को देंगे,एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में मोदी ने कहा
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 24 Apr 2014 07:02 AM
ऐप पर पढ़ें

भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने हर मुद्दे, हर पहलू पर ‘हिन्दुस्तान’ के साथ साझा किए अपने विचार...

‘काला धन वापस लाना मेरी व्यक्तिगत प्रतिबद्धता है (सत्ता में आने पर) हम एक टास्क फोर्स का गठन करेंगे। काला धन वापस लाकर उसका आंशिक हिस्सा ईमानदार करदाताओं, खासकर वेतनभोगियों को देंगे।’ भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को ई-मेल पर ‘हिन्दुस्तान’ के सवालों के जवाब में यह घोषणा की।

‘आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर आपकी क्या प्राथमिकता होगी?’-‘हिन्दुस्तान’ ने पूछा। इस पर मोदी ने कहा- ‘आतंकवाद और माओवाद के खिलाफ नरम रवैया अख्तियार करने का समय अब नहीं रहा। इनको करारा जवाब देने के लिए दरअसल कानूनी रूप से मजबूत आतंकवाद विरोधी ढांचा तैयार करना पड़ेगा। मैं समझता हूं कि केंद्र एवं राज्य सरकारों को कंधे से कंधा मिलाकर कदम उठाना चाहिए।’ 

मोदी से अगला सवाल था- ‘आपकी सरकार को लेकर देशभर में जो इतनी ज्यादा उम्मीदें बांधी जा रही हैं, उससे आपको कभी डर नहीं लगता?’ जवाब मिला- ‘मुझे लगता है कि सभी नागरिकों को सपने संजोने का हक है, आशावादी होने का अधिकार है। उम्मीदें बांधने की इजाजत होनी चाहिए, इसमें कुछ बुरा नहीं है। इन सभी बातों का हमें पूरी तरह ध्यान है और उसी के अनुसार कठिन से कठिन परिश्रम करने की मानसिक तैयारी हम कर चुके हैं।

‘पड़ोसी देशों, खासकर चीन और पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के लिए क्या आपकी कोई तत्काल योजना है?’ -सीमा पर पसरे तनाव पर ‘हिन्दुस्तान’ का प्रश्न। उत्तर मिला- ‘देश का हित सर्वोपरि रखा जाना चाहिए। हम न किसी को आंख दिखाना चाहते हैं और न ही चाहते हैं कि कोई हमें आंख दिखाए। हम चाहते हैं आंख से आंख मिलाकर बात करें। जरा सोचिए, जब तक कोई भी पड़ोसी देश हमारे देश के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देगा तब तक उसके साथ अच्छे रिश्ते बनाना तो मुश्किल होगा ही न।’

गठबंधन राजनीति के खट्टे-मीठे अनुभवों पर सवाल- ‘साझा सरकार की एक धारणा बन गई है कि इसका प्रधानमंत्री मजबूर प्रधानमंत्री होता है। इस धारणा को कैसे बदलेंगे?’ मोदी का मत है- ‘गठबंधन धर्म क्या है एवं उसे कैसे निभाया जाता है, इसका अटल जी ने सर्वश्रेष्ठ उदाहरण दिया। हम उसी भावना के साथ आगे बढ़ेंगे। हमारा मानना है कि यदि नीतियां स्पष्ट हों एवं नीयत साफ हो तो अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि साथियों के प्रति अविश्वास नहीं होना चाहिए।’

‘क्या आप मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट से आपको जो क्लीनचिट मिली है वह पर्याप्त है? अल्पसंख्यकों का दिल जीतने के लिए क्या इससे आगे कुछ करने की जरूरत नहीं है?’ -गुजरात दंगों पर लंबे समय से जारी विवाद से जुड़े इस सवाल पर उनका जवाब था- ‘जो लोग अपने देश की कानून व्यवस्था, न्याय व्यवस्था का सम्मान करते हैं एवं उसमें विश्वास रखते हैं, उनके लिए तो मुझे क्लीनचिट मिलना पर्याप्त है। परन्तु जिन लोगों के जीवन का एकमात्र उद्देश्य मोदी को बदनाम करना, उसे नीचा दिखाना रह गया है, उन्हें तो चाहे मुझे दुनिया की हर कोर्ट, हर संस्था से क्लीनचिट मिले, संतोष नहीं ही होगा।’

व्यक्ति केंद्रित राजनीति पर ‘हिन्दुस्तान’ ने प्रश्न किया- ‘पहली बार प्रचार पार्टी से हटाकर व्यक्ति केंद्रित किया है, अबकी बार मोदी सरकार। इससे लोकतंत्र मजबूत होगा या कार्यकर्ताओं की पार्टी को एक व्यक्ति के हवाले से जाना जाएगा?’ भाजपा दिग्गज ने स्पष्ट किया- ‘इस बार का चुनाव पार्टी या व्यक्ति नहीं लड़ रहा, देश की जनता लड़ रही है। देश की जनता ने इस बार भाजपा सरकार बनाने का मन बना लिया है। पार्टी ने मुझे नेतृत्व का अवसर प्रदान किया है। मैं अपनी पूरी शक्ति एवं क्षमता लगाकर लोगों की आशाओं को पूरा करने का प्रयास कर रहा हूं।’

आरोपों की पीड़ा मेरे लिए दवा बन जाती है...

नरेन्द्र मोदी से ‘हिन्दुस्तान’ ने ई-मेल के जरिए उनसे जुड़े तमाम विवादों और सवालों पर सीधे सवाल किए। जवाब भी वैसे ही मिले...सपाट पर बेहद संयत। वे कठिन परिश्रम का वादा कर देश को आगे बढ़ाने की इच्छा जताते हैं। आतंकवाद पर नरमी की जगह कठिन रुख की वकालत करते हैं और आर्थिक उन्नति के लिए नीतियों में बदलाव का संकल्प भी। विपक्ष के आरोपों को वे अपने लिए दवा मान रहे हैं, लेकिन देश को चलाने में सभी से विचार विमर्श का संकेत भी देते हैं। भाजपा के कद्दावर नेताओं की तल्खी को वे आंतरिक लोकतन्त्र मानते हैं। पेश है ‘हिन्दुस्तान’ द्वारा पूछे गए सवालों पर नरेन्द्र मोदी के जवाब:

हिन्दुस्तान: आपकी सरकार को लेकर देश भर में जो इतनी ज्यादा उम्मीदें बांधी जा रही हैं, उससे आपको कभी डर नहीं लगता?
नरेन्द्र मोदी:
मुझे अहसास है कि भाजपा से देश भर में बहुत उम्मीदें बांधी जा रही हैं लेकिन मुझे लगता है कि सभी नागरिकों को सपने संजोने का हक है, आशावादी होने का अधिकार है। इन बातों का हमें पूरा ध्यान है और उसी के अनुसार कठिन से कठिन परिश्रम करने की मानसिक तैयारी हम कर चुके हैं।

हिन्दुस्तान: क्या आप तत्काल नतीजे देने के लिए दो महीने, तीन महीने या सौ दिन जैसा कोई लक्ष्य बनाएंगे? काले धन पर आप क्या प्रयास करेंगे?
नरेन्द्र मोदी:
जो काम जितने समय में किया जा सकता है, वो काम उतने ही समय में किया जाएगा। मुझे इस देश की 125 करोड़ लोगों के सपनों को पूरा करने का यदि समय मिलेगा तो सिर्फ 60 महीने का। मैं हर पल, हर दिन मेहनत करने से पीछे नहीं हटूंगा। काला धन सिर्फ कर चोरी नहीं बल्कि देशद्रोही प्रवृत्ति भी है। काला धन विदेशों में जमा होकर गैरकानूनी एवं देशद्रोही गतिविधियों में खर्च होता है। इसे वापस लाना मेरी व्यक्तिगत प्रतिबद्धता है। हम टास्क फोर्स का गठन करेंगे और जरूरी कानूनी सुधार तथा कानूनी फ्रेमवर्क में बदलाव भी लाएंगे। इतना ही नहीं, काला धन वापस लाकर उसका आंशिक हिस्सा ईमानदार करदाताओं, खासकर वेतनभोगी करदाताओं को देंगे। यह जरूरी है कि हमारी कर-व्यवस्था ईमानदार करदाताओं को प्रोत्साहन देने वाली हो।

हिन्दुस्तान: आर्थिक मोर्चे पर देश बहुत सी समस्याओं से गुजर रहा है, सरकार बनाते ही आप तुरंत कौन से आर्थिक कदम उठाएंगे?
नरेन्द्र मोदी:
अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए रैपिड ग्रोथ चाहिए और इसके लिए निवेश जरूरी है। निवेश तभी आएगा जब व्यवस्था में निवेशकों का भरोसा लौटा पाएं। एनडीए की पुरानी सरकारों एवं भाजपा की वर्तमान राज्य सरकारों का ट्रैक रिकार्ड ध्यान में रखते हुए यह भरोसा लौटाना मुश्किल नहीं होगा। यही नहीं, हम इंफ्रास्ट्रक्चर एवं मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित करेंगे। मैन्युफैक्चरिंग पर जोर देकर बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन कर युवाओं को रोजगार देना भी हमारी प्राथमिकता होगी। वहीं, यूपीए के शासनकाल में उपेक्षित स्किल डेवलपमेंट जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र पर हमारा जोर रहेगा। भारत के विकास पर ब्रेक लगने की प्रमुख वजहों में से एक जो Policy Paralysis... यानी नीतियों को लकवे की स्थिति अभी है, उसमें से तुरंत बाहर निकलना है।

हिन्दुस्तान: इसी तरह आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर आपकी प्राथमिकताएं क्या होंगी?
नरेन्द्र मोदी:
आतंकवाद एवं माओवाद के खिलाफ नरम रवैया अख्तियार करने का समय नहीं रहा। आज हम न सिर्फ आतंकवाद के प्रति नरम रवैया अपना रहे हैं बल्कि आतंकवाद को लेकर ज्यादा नरमी बरतने की कोशिश करते हुए भी दिखना चाह रहे हैं। आतंकवाद और माओवाद जैसे उपद्रव से टक्कर लेने के लिए हमें मानसिकता में जड़ से परिवर्तन लाना होगा। संस्थानों को ज्यादा कारगर बनाने के अलावा राजनीतिक विचारधारा तथा राजनीतिक पहचान से उठकर कार्य करना होगा। कानूनी रूप से मजबूत आतंकवाद विरोधी ढांचा बनाना होगा। मैं समझता हूं कि सर्वाधिक अहम है कि केन्द्र एवं राज्य सरकार  साझा सोच के साथ कदम उठाएं ताकि वर्तमान चुनौती का दृढ़ता से मुकाबला किया जा सके।

हिन्दुस्तान: पड़ोसी देशों, खासकर चीन और पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के लिए आपकी कोई तत्काल योजना है?
नरेन्द्र मोदी:
हमारी विदेश नीति आपसी सम्मान एवं भाईचारे पर आधारित होनी चाहिए— Mutual Respect and Cooperation.. मेरा मतलब है, एक-दूसरे के प्रति सम्मान और सहयोग। इसी तरह हमारे अन्य देशों के साथ संबंध बराबरी एवं परस्परता पर आधारित होने चाहिए.. Equality and Reciprocity हम न आंख दिखाना चाहते हैं और न ही चाहते हैं कि कोई हमें आंख दिखाए। जरा सोचिए, जब तक कोई पड़ोसी देश हमारे खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देगा, तब तक उससे अच्छे रिश्ते बनाना तो मुश्किल होगा ही न।

हिन्दुस्तान: चुनाव प्रचार की तल्खी में कई तरह के ध्रुवीकरण, कई तरह के वैमनस्य बन जाते हैं। नतीजों के बाद सद्भाव का माहौल बने इसके लिए क्या करेंगे?
नरेन्द्र मोदी:
अब तो आदत-सी हो गई है। हां, शुरुआत में बहुत पीड़ा होती थी। एक दशक से जैसे बेबुनियाद आरोप लगाए गए, जैसा कीचड़ मुझ पर उछाला गया, जैसा गाली—गलौज मुझे सहन करना पड़ा, वह था तो बहुत पीड़ादायक। वैसे तो सार्वजनिक जीवन में आरोप लगते हैं और कह सकते हैं कि यह एक Professional Hazard है ..पेशागत जोखिम। लेकिन जैसे आरोप मुझे झेलने पड़े वो मानसिक यातना एवं जुल्म की पराकाष्ठा थी। शायद डिक्शनरी में कोई भी ऐसा गंदा शब्द न होगा, जो मेरे विरोधियों ने मेरे बारे में न कहा हो। ..लेकिन जैसा कहते हैं न कि कभी—कभी दर्द ही दवा बन जाता है। मैंने भी कई वर्षों से यह तय कर लिया कि मन को जनता की सेवा में ऐसे समर्पित कर दूं कि मुझे ये सारी नकारात्मकता छू भी न सकें। विरोधी ऐसा क्यों करते हैं, शायद इसकी एक ही वजह है कि उनके पास अपनी उपलब्धियों के बारे में कहने को कुछ नहीं है एवं मेरे खिलाफ भी कोई गंभीर आरोप नहीं है। ऐसे में उनकी मजबूरी है कि वो झूठे आरोप लगाएं। मुझे लगता है कि हिन्दुस्तान की जनता ने मेरी इस प्रतिक्रिया की सराहना की है एवं उसका समर्थन किया है।

हिन्दुस्तान: विवादस्पद मुद्दों और विदेश नीति वगैरह पर आम सहमति बनाने को प्राथमिकता देंगे या सैद्धांतिक नजरिया अपनाएंगे?
नरेन्द्र मोदी:
देशहित के अधिकांश मुद्दों पर या तो सहमति के आधार पर कार्य किया जाए अथवा सभी मुख्य हितधारकों के साथ विचार कर निर्णय लिए जाएं तो परिणामों की स्वीकार्यता बढ़ती है। चर्चा, बहस, परामर्श.. ये सब लोकतंत्र में निहित हैं। मेरी और मेरी पार्टी की विचारधारा सबको साथ लेकर चलने, सबको जोड़ने की है। पहले अच्छी परंपरा थी। राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर काम होता था। दस वर्षों में इसे चोट पहुंची है। प्रयास होगा कि इस परंपरा को फिर समृद्ध बनाएं।

हिन्दुस्तान: साझा सरकार की एक धारणा बन गई है कि इसका प्रधानमंत्री मजबूर प्रधानमंत्री होता है। इसे कैसे बदलेंगे? अलग-अलग विचारधाराओं के गठबंधन की सरकार चलाने की स्थिति आती है, तो आप अपना एजेंडा कहां तक चला पाएंगे?
नरेन्द्र मोदी:
देखिए पहले कह चुका हूं, हम सभी को साथ लेकर चलने में यकीन रखते हैं। हम सभी साथी दलों के साथ परामर्श की स्वस्थ परंपरा का पालन करेंगे। गठबंधन धर्म क्या है एवं उसे कैसे निभाया जाता है, इसका अटल जी ने सर्वश्रेष्ठ उदाहरण दिया। हम उसी भावना से बढ़ेंगे। हमारा मानना है कि यदि नीतियां स्पष्ट एवं नीयत साफ हो तो अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। यह भी अहम है कि साथियों के प्रति अविश्वास न हो।

हिन्दुस्तान: आपने गुजरात के लिए जो विकास मॉडल अपनाया क्या उसे उसी रूप में पूरे देश पर लागू किया जा सकता है?
नरेन्द्र मोदी:
जो गुजरात में संभव, वह पूरे देश में संभव है। ..हां, जरूरत है तो बस इच्छाशक्ति एवं निर्णायक नेतृत्व की। ध्यान रहे, निवेश वहीं जाएगा जहां - प्रक्रियाएं सरल, निर्णय त्वरित हों और व्यवस्था पारदर्शी हो। भारत विशाल है एवं यहां बहुत विविधताएं हैं। हर राज्य की, हर क्षेत्र की अलग समस्याएं हैं एवं उनके समाधान भी अलग हैं। यहां तक कि गुजरात में भी हर जिले की अपनी लाक्षणिकताएं हैं। मेरा ये मानना है कि “One Shoe fits all” अप्रोच लागू नहीं की जा सकती.. एक जूते में सबके पैर कभी फिट नहीं होते। हमारा लक्ष्य एक होना चाहिए— जनता की खुशहाली परन्तु आवश्यकतानुसार नीतियां एवं कार्ययोजनाएं बनाना जरूरी है।

हिन्दुस्तान: क्या आप मानते हैं कि 2002 के गुजरात दंगों पर सुप्रीम कोर्ट से आपको जो क्लीन चिट मिली वह पर्याप्त है? अल्पसंख्यकों का दिल जीतने को इससे आगे कुछ करने की जरूरत नहीं?
नरेन्द्र मोदी:
निहित स्वार्थ से प्रेरित लोगों ने दंगों के बाद खूब आरोप लगाए एवं मुझे बदनाम करने का अथक प्रयास किया। कुछ लोगों ने तो मुझे नीचा दिखाने के लिए दंगापीड़ितों के घावों को भी कुरेदने से परहेज नहीं किया। कुछ तो विदेशों में भी भारत को बदनाम करने से नहीं हिचके। जो लोग अपने देश की कानून व्यवस्था, न्याय व्यवस्था का सम्मान करते हैं, उनके लिए तो मुझे क्लीन चिट मिलना पर्याप्त है। परन्तु जिनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य मोदी को बदनाम करना, उसे नीचा दिखाना है, उन्हें तो तब भी संतोष नहीं होगा जब दुनिया की हर कोर्ट, हर संस्था क्लीन चिट दे दे। अल्पसंख्यकों का दिल जीतने के लिए यदि कुछ करने की जरूरत है तो वह है सर्वसमावेशक विकास। हमारा नारा भी है— ‘सबका साथ, सबका विकास’ मैं तो कहता हूं कि अल्पसंख्यकों को सेकुलरिज्म की खोखली बातें नहीं चाहिए, उन्हें भी शिक्षा, स्वास्थ्य की सुविधाएं एवं रोजगार के अवसर चाहिएं। 125 करोड़ भारतीयों का विकास ही हमारा ध्येय होगा। धर्म एवं जाति के गणित के मुताबिक वोटबैंक को पुख्ता करने के मलिन इरादे के साथ कार्य करना भाजपा की राजनैतिक संस्कृति नहीं रही है। हमारे लिए देश सर्वप्रथम है, और सारे देशवासी सर्वोपरि हैं। ..वैसे इस मामले में मैं सभी लोगों के सभी सवालों के जवाब बार-बार दे चुका हूं। फिर भी मानो एक टोली ऐसी है जिसका मीडिया पर भी इतना दबाव बन चुका है कि जब तक हर अखबार मुझसे इस बारे में सवाल न पूछे, कोई साक्षात्कार पूरा नहीं हो सकता। लगता है आपका अखबार भी इस दबाव में है।

हिन्दुस्तान: आपकी घोषणाओं से लगता है कि कर घटाएंगे, महंगाई कम करने के उपाय करेंगे, ऐसे में विकास के लिए पैसे कहां से आएंगे?
नरेन्द्र मोदी:
मेरा गुजरात का 12 साल का अनुभव बताता है कि अमूमन सरकारों के पास पैसों की कमी नहीं होती। पैसे भ्रष्टाचार या घोटाले की भेंट चढ़ते हैं या वोटबैंक की राजनीति के लिए बर्बाद हो जाते हैं। यदि नीतियां सही एवं अमलीकरण व्यवस्था मजबूत हो, तो पैसे की कमी आड़े नहीं आती।

हिन्दुस्तान: पहली बार पूरे प्रचार को पार्टी से हटाकर व्यक्ति केंद्रित किया गया है, अबकी बार मोदी सरकार। इससे लोकतंत्र मजबूत होगा या कार्यकर्ताओं की पार्टी को एक व्यक्ति के हवाले से जाना जाएगा?
नरेन्द्र मोदी:
इस बार का चुनाव पार्टी या व्यक्ति नहीं लड़ रहा, देश की जनता लड़ रही है। लोग भाजपा सरकार बनाने का मन बना चुके हैं। पार्टी ने मुझे नेतृत्व का अवसर दिया है। मैं अपनी पूरी शक्ति एवं क्षमता से लोगों की आशाओं को पूरा करने का प्रयास कर रहा हूं। 10-12 साल से एक व्यक्ति को इतनी गालियां दी गई, इतनी अपमानजनक भाषा उसके खिलाफ इस्तेमाल की गई। यदि मोदी को सेंटर स्टेज में लाने का श्रेय किसी को दिया जाना है या इसका दोष भी किसी को देना है तो वे हैं मेरे राजनीतिक विरोधी, जिन्होंने एक दशक में एक व्यक्ति की आलोचना में इतनी ऊर्जा लगाई। शायद इसी की प्रतिक्रिया है कि मुझे जनता का इतना स्नेह मिल रहा है।

हिन्दुस्तान: बुलेट ट्रेन चलाने के लिए अहमदाबाद से मुंबई तक के लिए ही 72 हजार करोड़ चाहिए। इतनी खर्चीली योजना के लिए पैसे कहां से आएंगे?
नरेन्द्र मोदी:
यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि अब तक जिस प्रकार सरकारें चलाई गईं, उसमें मानों गरीबी एक अभिशाप नहीं बल्कि एक वरदान हो, एक आवश्यकता हो। भले वह वोटबैंक की राजनीति के लिए हो या सत्तारूढ़ दूरदृष्टि के अभाव के कारण। अटल जी की सरकार में स्वर्णिम चतुर्भुज जैसी योजनाओं को लागू कर यहां भी वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराने की कोशिश हुई। मेरा मानना है कि हमारा विजन बड़ा हो एवं उसके अनुरूप पुरुषार्थ करने की क्षमता तथा तैयारी हो तो हमारा देश भी प्रगति के पथ पर शीघ्रता से आगे बढ़ सकता है। रही पैसों की बात मुझे नहीं लगता कि वर्तमान समय में ऐसी योजनाओं के लिए पैसे जुटाना मुश्किल है। 

हिन्दुस्तान: पार्टी के कद्दावर नेताओं की आपको लेकर तल्खी जाहिर होती रही है। क्या सत्ता में आने पर पार्टी के अंदर आप इसे चुनौती नहीं मानते?
नरेन्द्र मोदी:
देश के बुद्धिजीवियों से एवं राजनीतिक विश्लेषकों से मेरी एक अपील है। कृपया विश्लेषण कीजिए कि क्या इस समय बीजेपी में जैसी इंटरनल डेमोक्रेसी है वैसी किसी और पार्टी में है? DISCUSSION IS NOT DISSENT. DISSENT IS NOT DISOBEDIENCE.... यानी चर्चा करना विरोध नहीं है और विरोध करना भी कोई अवज्ञा नहीं है। क्या हमें राजनैतिक दलों के अंदर ऐसी संस्कृति को बढ़ावा नहीं देना चाहिए, जहां सामूहिक नेतृत्व हो न कि एक परिवार की हुकूमत? क्या निर्णय प्रक्रिया में मतभेद हो, चर्चा हो ये बुरी बात है? रही बात सत्ता में आने के बाद इस तथाकथित चुनौती की, तो मेरा मानना है कि भाजपा के भीतर आंतरिक लोकतंत्र की जो स्वस्थ परंपरा रही है, वह सत्ता में आने के बाद भी बरकरार रहेगी। सामूहिक निर्णय का फलसफ़ा भाजपा के डीएनए में है। हमारी पार्टी में हरेक विषय पर लंबी चर्चा होती है, लंबा मंथन होता है और उसी के बाद निर्णय किए जाते हैं। केवल एक व्यक्ति या एक परिवार के द्वारा निर्णय लिए जाने का शाही अंदाज भाजपा की पहचान नहीं है। लिहाजा, जिसे आप तल्ख़ी और चुनौती जैसे शब्दों से बयां कर रहे हैं, दरअसल वह सामूहिक निर्णय की भाजपा की अपनी प्रक्रिया है।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें