फोटो गैलरी

Hindi Newsनिराशा को बनाएं अपनी सफलता का औजार

निराशा को बनाएं अपनी सफलता का औजार

तनाव और निराशा की स्थिति में सकारात्मक ढंग से उठाया गया कोई कदम मैनेजमेंट की भाषा में सकारात्मक तनाव अथवा पॉजिटिव स्ट्रेस के  नाम से जाना जाता है। इस अवधारणा को सबसे पहले दुनिया के सामने हंस...

निराशा को बनाएं अपनी सफलता का औजार
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 30 Sep 2014 11:23 AM
ऐप पर पढ़ें

तनाव और निराशा की स्थिति में सकारात्मक ढंग से उठाया गया कोई कदम मैनेजमेंट की भाषा में सकारात्मक तनाव अथवा पॉजिटिव स्ट्रेस के  नाम से जाना जाता है। इस अवधारणा को सबसे पहले दुनिया के सामने हंस सेल्ये ने प्रस्तुत किया। सेल्ये का कहना था कि  प्रतिकूल परिस्थितियों को भी जो अपने समयानुकूल बना ले, ऐसे व्यक्ति को हम करिश्माई लीडर के नाम से भी जानते हैं। ऐसे करिश्माई व्यक्तियों की जो कुछ खूबियां होती हैं, वे इस प्रकार हैं-

चुनौतियों का दृढ़तापूर्वक सामना करने वाले
बेन मेनरिच ने अपनी पुस्तक द एक्सीडेंटल बिलियनेर में लिखा कि दुनिया में लोकप्रियता की पराकाष्ठा पर पहुंच चुकी सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक की कहानी बड़ी ही रोमांचक होने के साथ-साथ निराशा भरी रही है। मेरी नजर में यदि इसके जनक को जीवन की प्रारंभिक अवस्था में निराशा हाथ नहीं लगी होती तो शायद उनका नाम दुनिया के सबसे युवा अरबपतियों के रूप में कभी प्रतिस्थापित नहीं हो पाता। हुआ यूं की मार्क जुकरबर्ग जब मात्र 19 वर्ष के थे और हारवर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ ही रहे थे, उसी समय उनकी गर्लफ्रेंड एरिका अलब्राइट ने उनका साथ छोड़ दिया।

उनको अपनी गर्लफ्रेंड का इस तरह साथ छोड़कर चले जाना इतना नागवार गुजरा कि उन्होंने एरिका के इस व्यवहार को सबको बताने के लिए लाइव जर्नल ब्लॉग और कैम्पस वेबसाइट फेसमाश बना डाली। यह साइट डेटिंग करने वाले छात्रों में इतनी लोकप्रिय हुई कि लोगों ने अपनी फोटो और अन्य जानकारियां इसमें पोस्ट करनी शुरू कर दीं। 

इसकी लोकप्रियता को देखकर फेसबुक संस्थापक मार्क जुकरबर्ग के भारतीय मूल के मित्र नील सुरेन्द्र ने इसका नाम बदल कर ‘द फेसबुक’ रखने की सलाह दी और इसके बिजनेस पार्टनर बन गए। देखते ही देखते फेसबुक की लोकप्रियता पूरी दुनिया में फैल गई और मार्क जुकरबर्ग दुनिया के सबसे युवा बिलियनेर बन गए। आज फेसबुक की कुल संपति लगभग 25 हजार बिलियन डॉलर के करीब पहुंच चुकी है, जो इतने कम समय में एक रिकॉर्ड है।

कुछ नया करने वाले
सु-कैम इनवर्टर कंपनी के मालिक कुंवर सचदेव की कहानी बहुत ही मार्मिक और रोचक है। कुंवर के पिता जी भारतीय रेलवे में क्लर्क थे और माता गृहिणी। दिल्ली की एक छोटी सी जगह में रहने वाले कुंवर के पिता परिवार चलाने के लिए छोटा-मोटा बिजनेस भी करते रहते थे, ताकि अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा-दीक्षा दे सकें। लेकिन उनकी यह मेहनत भी काम न आई और कुंवर जब मात्र पांचवीं कक्षा में पढ़ रहे थे, तभी घर की आर्थिक तंगी को देखते हुए उनके पिता ने उन्हें प्राइवेट स्कूल से निकाल कर सरकारी स्कूल में डाल दिया। लेकिन परिवार के इस पूरे कष्ट को कुंवर चुपचाप देख और समझ रहे थे।

खैर, जैसे-तैसे करके कुंवर ने दिल्ली के हिन्दू कॉलेज में एडमिशन लिया और बीएससी करने के साथ-साथ बड़े भाई के पेन के बिजनेस में भी हाथ बंटाने लगे, जिससे घर का खर्चा आसानी से चलने लगा। लेकिन जैसे ही उनकी ग्रेजुएशन पूरी हुई, उन्होंने घर के हालात को देखते हुए नौकरी न करके बिजनेस करने की सोची और सु-कैम नाम से पेन बनाने की कंपनी शुरू की, लेकिन इसमें बहुत सफल नहीं हुए। 

कुंवर ने हार नहीं मानी और दिल्ली की बिजली की समस्या को देखते हुए डीजल पम्प के सहारे पावर इन्वर्टर बनाने का धंधा शुरू किया। यह धंधा उनका इतना सफल रहा कि देखते ही देखते सु-कैम इन्वर्टर का नाम सभी की जुबां पर आ गया और भारत का नंबर एक इन्वर्टर बन गया। इतना ही नहीं, सु-कैम भारत के अलावा अब दुनिया के कई देशों में अपनी पहचान बना चुका है। 

नकारात्मक विचारों को सकारात्मकता में बदला
हंस सेल्ये ने अपने सिद्धांत पॉजिटिव स्ट्रेस में कहा कि जब भी किसी दृढ़ निश्चई व्यक्ति के सामने ऐसी कोई भी समस्या आती है तो वे उससे घबराते नहीं, बल्कि कोई ऐसा सकारात्मक काम करना प्रारंभ कर देते हैं, जिससे उनका दिमाग डाइवर्ट हो सके और कुछ नया काम कर सकें।  इसका सबसे बड़ा उदाहरण मार्कजुकरबर्ग स्वयं हैं, जिन्होंने अपनी गर्लफ्रेंड की याद में कोई गलत कदम न उठाकर लोगों के लिए एक ऐसी तकनीक ढूंढ़ने में अपना ध्यान लगाया, जिससे कोई भी दूर रह कर भी अपने सुख-दुख को अपने साथी और मित्र के साथ बांट सके। यह तकनीक
आज कितनी कामयाब है, यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है।

कभी हार नहीं मानने वाले
कबीरदास जी का एक दोहा है- ‘धीरे-धीरे रे मना, धीरज से सब होय। माली सीचैय सौ घड़ा तु आये फल होय’, यह दोहा उन सभी सफल व्यक्तियों के जीवन के लिए लागू होता है, जो जीवन में कभी हार नहीं मानते और इस बात पर विश्वास करते हैं कि काम करना मेरा धर्म है और जब सही समय आयेगा, इसका फल मुझे जरूर मिल जायेगा।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें