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भट्टराई का फैसला

संविधान लेखन की प्रक्रिया से उठे राजनीतिक बवंडर के बीच में बाबूराम भट्टराई ने यूसीपीएन (माओवादी) पार्टी छोड़ दी। नेपाली राजनीति पर नजर रखने वालों के लिए यह खबर किसी झटके से कम नहीं है। पार्टी के कई...

भट्टराई का फैसला
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 28 Sep 2015 08:43 PM
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संविधान लेखन की प्रक्रिया से उठे राजनीतिक बवंडर के बीच में बाबूराम भट्टराई ने यूसीपीएन (माओवादी) पार्टी छोड़ दी। नेपाली राजनीति पर नजर रखने वालों के लिए यह खबर किसी झटके से कम नहीं है। पार्टी के कई लोगों से उनके वैचारिक मतभेद थे, खास तौर पर पार्टी अध्यक्ष पुष्प कमल दहल से। सबको मालूम था कि जब भी वह पार्टी छोड़ेंगे, तो इसके पीछे यही कारण होगा। पर सच यह है कि अंतत: ऐसा हो गया। नेपाली राजनीति में इसे महत्वपूर्ण घटना के तौर पर देखा जा रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई नेपाल की राजनीति में अहम पहचान रखते हैं। सभी राजनीतिक पर्यवेक्षक, चाहे वे उनके समर्थक हों या आलोचक, इससे सहमत होंगे। माओवादी विद्रोह के दिनों से भट्टराई पार्टी के विचारक के तौर पर मान्य रहे हैं। लेकिन उनका प्रभाव पार्टी और राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ा या नहीं, इस बारे में पर्याप्त तथ्य नहीं मिलते।

भट्टराई की सबसे बड़ी मजबूती थी कि उन्होंने विचारधारा को कार्य-नीति से जोड़ने का काम किया। इस संदर्भ में वह माओवादी पार्टी के सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिकार के तौर पर देखे गए। हाशिये के जातीय समूहों के बारे में माओवादी पार्टी की स्थिति के सूत्रधार वही थे और उन्होंने ही राष्ट्रीयता के सवाल को आगे किया। जातीय समूहों के लिए स्वायत्तता का माओवादी दृष्टिकोण आगे चलकर पहचान आधारित संघवाद में बदला। इससे भी आगे भट्टराई ने राजशाही के खिलाफ संसदीय दलों से गठबंधन की नीति बनाई, जिससे संविधान-सभा का निर्माण हुआ। 2006 जन-आंदोलन और 2008 संविधान सभा चुनाव के दौरान माओवादी दलों व संसदीय दलों के बीच गठबंधन-धर्म की बड़ी जिम्मेदारी उन्होंने अपने कंधों पर ली। इन घटनाक्रमों ने नेपाली राजनीति व समाज पर स्थायी छाप छोड़ी है। कुछ मानते हैं कि पार्टी से भट्टराई की शिकायतें मुख्यत: दहल से निजी मतभेदों के रूप में थीं। उन्होंने पार्टी इसलिए छोड़ी कि वह पार्टी अध्यक्ष के प्रभुत्व की छत्रछाया से निकल नहीं सकते थे, जो कि एक बड़े करिश्माई नेता हैं। अहं का टकराव कारण हो सकता है, लेकिन पुराने मित्र मधेसी दलों के खिलाफ दहल के फैसले से वह नाराज चल रहे थे।
द काठमांडू पोस्ट, नेपाल

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