मानवीय मदद की जरूरत
अगर संसार के पास दया-करुणा को मापने का एक पैमाना होता, तो उसमें शायद समृद्ध देशों व सहायताकर्मियों के बलिदान दर्ज होते। इस साल यह काम अपने तमाम कीर्तिमानों को भी पार कर गया। बीते मंगलवार को सरकारी...
अगर संसार के पास दया-करुणा को मापने का एक पैमाना होता, तो उसमें शायद समृद्ध देशों व सहायताकर्मियों के बलिदान दर्ज होते। इस साल यह काम अपने तमाम कीर्तिमानों को भी पार कर गया। बीते मंगलवार को सरकारी दाताओं के एक समूह की बैठक जेनेवा में हुई, जहां युद्ध-क्षेत्रों में मानवीय मदद के लिए अधिक से अधिक रकम जुटाने का संकल्प लिया गया। साल 2015 में मानवीय मदद के लिए 16.4 बिलियन डॉलर की जरूरत होगी, जो इस साल की रकम से एक-तिहाई अधिक है। ऐसा क्यों? संयुक्त राष्ट्र और दूसरे संगठनों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है, दर-बदर लोगों की बढ़ती तादाद। करीब पांच करोड़, दस लाख लोग उन युद्ध-क्षेत्रों से पलायन कर चुके हैं, जहां शांति-बहाली के प्रयास नाकाम रहे हैं। शरणार्थियों के संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त एंटोनियो गुटेर्रेस बताते हैं कि मानवतावादी संसार में यह काम किसी कारोबार की तरह नहीं होता। यह मानवीय मदद प्रदान करने वाले कार्यकर्ताओं के लिए भी कारोबार जैसा नहीं है। पिछले साल नागरिक मदद अभियानों के खिलाफ हिंसा के रिकॉर्ड मामले देखे गए। ह्यूमेनिटेरियन आउटकम्स संगठन के मुताबिक, 251 हमले हुए और 155 लोग मारे गए। यह आंकड़ा पिछले एक दशक में लगभग दोगुना हो गया। आशंका है, अगले साल इसमें और बढ़ोतरी दर्ज होगी। इराक व अफगानिस्तान से अमेरिका और उसके सहयोगी देश की फौज निकल रही है। ऐसे में, शरणार्थियों व पीड़ितों को मदद पहुंचाने वाले लोगों की सुरक्षा पर दुनिया को ध्यान देना होगा। वे भी बहादुर जवानों की तरह नायक हैं। मारे गए ज्यादातर सहायताकर्मी अंतरराष्ट्रीय संगठनों से जुड़े थे। सड़क रास्तों में हमले अधिक हुए। नर्स, इंजीनियर, ड्राइवर वगैरह अपने कामों के दौरान अधिक जोखिम मोल लेते हैं। सबसे अधिक अंतरराष्ट्रीय राहत की जरूरत उन 60 लाख सीरियाइयों को है, जो 2011 से जारी गृह-युद्ध के कारण उजड़ चुके हैं। बहरहाल, दुनिया भर में संघर्षों को खत्म करने के लिए कूटनीति, ड्रोन और अन्य माध्यमों का इस्तेमाल हो रहा है, पर पीड़ितों को राहत पहुंचाने के लिए पूंजी की भी उतनी ही आवश्यकता है।
द क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर, अमेरिका