तुर्की में तनाव
हाल के दिनों में तुर्की में लाखों औरतें विरोध-प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतर आईं। वे ट्विटर पर भी अपनी आपत्तियां दर्ज करा रही हैं। दरअसल, बीते हफ्ते एक युवती के साथ मिनी बस के ड्राइवर ने बलात्कार करने...
हाल के दिनों में तुर्की में लाखों औरतें विरोध-प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतर आईं। वे ट्विटर पर भी अपनी आपत्तियां दर्ज करा रही हैं। दरअसल, बीते हफ्ते एक युवती के साथ मिनी बस के ड्राइवर ने बलात्कार करने की कोशिश की। युवती के विरोध पर उसने उसकी हत्या कर डाली। इस घटना से तुर्की में आक्रोश है। औरतों के खिलाफ हिंसा को रोकने की पुरजोर मांग हो रही है। महिला आंदोलनकारी ऐसा भी मानती हैं कि इस तरह की हिंसक घटनाएं इसलिए बढ़ी हैं कि सत्तारूढ़ जस्टिस ऐंड डेवलपमेंट पार्टी कट्टर सोच वाली है। इस पूरे विरोध-प्रदर्शन से बाकी दुनिया में यह उत्सुकता पैदा हुई है कि क्या अन्य मुस्लिम समाज में भी महिलाएं इसी स्तर पर आंदोलन कर रही हैं? सऊदी अरब में हाल ही में कुछ महिलाओं ने वाहन चलाने को लेकर लगाई गई पाबंदी का विरोध किया था। अफगानिस्तान में भी महिलाओं के हकों को लेकर सीमित प्रदर्शन हुए थे। 2012 में मिस्र में हजारों महिलाएं तब सड़कों पर उतर आई थीं, जब तहरीर चौक पर एक महिला आंदोलनकारी के साथ बुरा बर्ताव हुआ। हालांकि, तुर्की के विरोध-प्रदर्शन का आकार संभवत: इसका सबसे बड़ा संकेत है कि आज की मुस्लिम महिलाएं न सिर्फ पारंपरिक पितृसत्तात्मक प्रभुत्व को चुनौती दे रही हैं, बल्कि इस्लाम के अंदर लैंगिक भूमिका की पुरानी व्याख्याओं की मुखालफत भी कर रही हैं। महिला आंदोलनकारी अपने आंदोलन को न सिर्फ सार्वजनिक विरोध के संदर्भ में देख रही हैं, बल्कि उसमें जेहाद का सही अर्थ भी देखती हैं कि यह अंतरात्मा का संघर्ष है। इसमें कोई दोराय नहीं कि स्त्री सशक्तीकरण से जुड़े मुद्दे ज्यादातर मुस्लिम देशों में नदारद हैं। अपनी तरक्की के बावजूद तुर्की महिलाओं की भूमिका को घर की चारदीवारी में ही देखता है, इसलिए संघर्ष हो रहा है। तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एर्डोगैन ने कहा है कि महिलाएं और पुरुष समान नहीं हो सकते, क्योंकि यह ‘कुदरत के कानून’ के खिलाफ है। इस विरोध-प्रदर्शन को लेकर भी उन्होंने कहा कि कुछ महिला आंदोलनकारियों का ‘हमारी सभ्यता और मजहब से कोई सरोकार नहीं है।’ लेकिन उनके मुल्क की महिलाओं ने अपनी आवाज बुलंद कर ली है।
द क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर, अमेरिका