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कुछ काम, कुछ आराम

मानव सभ्यता की शुरुआत से ही श्रम की महत्ता गाई गई है। आलसी और निकम्मे लोगों की तादाद कम नहीं है, लेकिन प्रकट रूप में वे भी मेहनत का ही गुणगान करते हैं और मेहनती, कर्मठ दिखने की कोशिश करते हैं। लेकिन...

कुछ काम, कुछ आराम
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 23 Aug 2015 11:32 PM
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मानव सभ्यता की शुरुआत से ही श्रम की महत्ता गाई गई है। आलसी और निकम्मे लोगों की तादाद कम नहीं है, लेकिन प्रकट रूप में वे भी मेहनत का ही गुणगान करते हैं और मेहनती, कर्मठ दिखने की कोशिश करते हैं। लेकिन यह भी तय है कि जरूरत से ज्यादा मेहनत भी नुकसान करती है। और इस जरूरत से ज्यादा की परिभाषा क्या है? कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने अमेरिका में दो आधुनिक जानलेवा समस्याओं, दिल के दौरे और मस्तिष्काघात, के संदर्भ में इस बात को जांचने की कोशिश की। उन्होंने यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में हुए अनेक अध्ययनों की जानकारी और आंकड़े जुटाए, जिनसे लगभग छह लाख लोगों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड को परखा जा सकता था। फिर उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि जो लोग हर हफ्ते पचपन घंटे काम करते हैं, उनमें सामान्यत: 40-44 घंटे काम करने वाले लोगों के मुकाबले दिल की बीमारियां 13 प्रतिशत ज्यादा और स्ट्रोक का खतरा 33 प्रतिशत ज्यादा होता है।

यह ऐसा अब तक का सबसे बड़ा अध्ययन है, जिसमें काम के घंटों और स्ट्रोक का रिश्ता सामने आया है। अब तक काम के ज्यादा घंटों और दिल की बीमारियों का रिश्ता ही स्पष्ट हुआ था। अभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि ज्यादा मेहनत और स्ट्रोक के बीच इस सीधे रिश्ते की वजह क्या है? इस अध्ययन से यह भी जाहिर हुआ कि जैसे-जैसे काम के घंटे बढ़ते हैं, स्ट्रोक का खतरा बढ़ता जाता है। कई वैज्ञानिक मानते हैं कि सेहत के लिए खतरे की बड़ी वजह तनाव या स्टे्रस है। ऐसे में, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है कि काम के घंटे कितने हैं, बल्कि यह है कि काम का स्वरूप क्या है, उसमें तनाव कितना है? एक अन्य अध्ययन से यह पता चला है कि आधुनिक कार्यस्थलों में बीच के स्तर पर यानी मिडिल मैनेजमेंट के स्तर पर तनाव सबसे ज्यादा होता है, उसके मुकाबले सर्वोच्च और निचले स्तर पर तनाव कम होता है। बीच के स्तर पर जिम्मेदारी बहुत ज्यादा होती है और उसके मुकाबले अधिकार कम होते हैं। इस स्तर के लोग इसलिए भी बहुत ज्यादा काम करते हैं, क्योंकि उनमें और ऊंचे स्तर पर जाने की महत्वाकांक्षा होती है और इस स्तर पर स्पद्र्धा भी ज्यादा होती है। इसीलिए मैनेजमेंट में युवाओं में जीवनशैली की बीमारियां या बर्न आउट होने की घटनाएं खूब सुनाई देती हैं। गरीब और विकासशील देशों में गरीबों को रोजी-रोटी के लिए घंटों काम करना पड़ता है। ये वर्ग खतरे के ज्यादा करीब होते हैं।

श्रम की महत्ता को औद्योगिक क्रांति के बाद इसे विशेष रूप से प्रचारित किया गया। औद्योगिक क्रांति के बाद विशाल स्तर पर मशीनी उत्पादन शुरू हुआ, जिसमें लाखों मजदूर कारखानों में काम करते थे। कारखानों का काम बहुत नीरस, एक जैसा था। शुरुआती दौर में कारखानों की स्थिति और माहौल भी बहुत खराब था। ऐसे में, मजदूरों को उत्साहित करने के लिए विशेष रूप से मेहनत और मेहनतकशों को गौरवान्वित करने वाले नारे बनाए गए। अब यह स्थिति भी बदलती दिख रही है, जो यांत्रिक काम है, उन्हें करने के लिए यंत्रों का प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है और निकट भविष्य में हो सकता है कि इंसानों के लिए सिर्फ वे चुनौतीपूर्ण बौद्धिक काम ही बचेंगे, जिन्हें यंत्र या रोबोट नहीं कर सकते। जो भी हो, हर हाल में इंसानी दिमाग और शरीर की सीमाएं बनी रहेंगी। इसलिए दोनों को दुरुस्त रखने के लिए कुछ आराम, कुछ मनोरंजन और कुछ कसरत जरूरी है। इससे सेहत भी अच्छी रहती है और काम की क्षमता और गुणवत्ता भी बढ़ती है। अति दोनों ही बुरी हैं, निकम्मेपन से दिमाग पर जंग चढ़ती है और ज्यादा काम करने से स्ट्रोक हो सकता है, इसलिए मध्यमार्ग ही श्रेष्ठ है।

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