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शहरों पर नजर

सरकार जब कोई नई योजना या योजनाओं की घोषणा करती है, तो लोगों की राय यही होती है कि जमीन पर इनका कार्यान्वयन कैसे होता है, इसे देखना जरूरी है। भारत में योजना और कार्यान्वयन के बीच इतनी चौड़ी दरार होती...

शहरों पर नजर
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 26 Jun 2015 12:43 AM
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सरकार जब कोई नई योजना या योजनाओं की घोषणा करती है, तो लोगों की राय यही होती है कि जमीन पर इनका कार्यान्वयन कैसे होता है, इसे देखना जरूरी है। भारत में योजना और कार्यान्वयन के बीच इतनी चौड़ी दरार होती है कि संदेह स्वाभाविक है। इसी तरह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शहरी विकास के लिए जो तीन योजनाएं पेश की हैं, वे अगर आंशिक रूप से भी सफल हो जाएं, तो उनका फायदा हो सकता है। यह पहली बार नहीं है कि भारत में शहरी विकास के लिए राष्ट्रव्यापी योजनाएं पेश की गई हैं, लेकिन इतने बड़े स्तर पर शहरी विकास को लक्ष्य बनाकर शहरी विकास का महत्व पहली बार स्वीकार किया गया है। भारत में अब लगभग आधी आबादी शहरों में रहने लगी है और शहरीकरण की रफ्तार तेज होती जा रही है। लेकिन तब भी शहरों का महत्व स्वीकार नहीं किया जाता। राजनीतिक, सामाजिक मुहावरों में शहरीकरण को जैसे एक जरूरी बुराई और तमाम बुराइयों की जड़ मानने का चलन है। आजादी के आंदोलन के दौर में गांवों पर विशेष ध्यान दिया जाना जरूरी था, लेकिन वह मुहावरा आज भी रूमानी अंदाज में चल रहा है। इससे गांवों की स्थिति तो कुछ खास नहीं सुधरी, लेकिन शहरों की उपेक्षा होती रही। राजनेताओं के लिए गांव सत्ता के स्रोत और शहर वे ठिकाने बने रहे, जहां पैसा कमाना या निवेश करना है।

किसी भी देश के विकास क्रम में अर्थव्यवस्था में उद्योगों का हिस्सा बढ़ता जाता है और खेती का हिस्सा घटता जाता है। खेती की बेहतरी के लिए यह जरूरी है कि उस पर निर्भर जनसंख्या का प्रतिशत घटे, ताकि खेती आर्थिक रूप से फायदेमंद हो सके। अगर शहरों को आने वाले दौर में हमारी अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ाने का माध्यम बनना है, तो स्मार्ट सिटी जैसी योजनाएं महत्वपूर्ण हो सकती हैं। स्मार्ट सिटी की अवधारणा बहुत स्पष्ट नहीं है और उसके मायने भी बदलते रहे हैं। इन दिनों स्मार्ट सिटी का अर्थ एक ऐसे शहर से लिया जाता है, जिसमें आला दर्जे की सूचना तकनीक का इस्तेमाल हर स्तर पर किया जाए और नागरिकों को आवास, बिजली, पानी, प्रदूषणरहित वातावरण और सार्वजनिक परिवहन बिना किसी झंझट के विश्वसनीय रूप से मिलते रहें। ऐसे शहर बनाना अपने आप में किसी उद्योग से कम नहीं है और उन्हें चलाना अच्छी-खासी आर्थिक गतिविधि है। इसी वजह से कई दूसरे देशों ने भी भारत में स्मार्ट सिटी विकसित करने के लिए तकनीक और निवेश देने का प्रस्ताव रखा है। भारत के ज्यादातर शहरों में नागरिक जो समस्याएं रोज-रोज झेलते हैं, वे सिर्फ खराब प्रशासन का नतीजा हैं। प्रशासकीय स्तर पर नागरिकों को बेहतर सुविधाएं देने की इच्छाशक्ति ज्यादा जरूरी है। इसीलिए स्मार्ट सिटी की योजना लागू करने के पहले राज्य और केंद्र सरकार को अपने प्रशासन को प्रगतिशील करना होगा। शहरों की बदहाली में कई निहित स्वार्थों का लाभ भी जुड़ा है, उनसे निजात के लिए भी इच्छाशक्ति दिखानी होगी।

शहरों को इन योजनाओं से जोड़ने के लिए जिस तरह राज्यों में होड़ लगी है, उसका कारण यह है कि शहरों को इन योजनाओं में चुने जाने पर केंद्र से सहायता मिलेगी। इस लाभ की वजह से भी राज्य अपने शहरों को बेहतर बनाने के लिए कोशिश करेंगे। शहरों की हालत सुधरेगी, तो उससे गांवों पर भी बेहतर प्रभाव पड़ेगा। आधुनिक अर्थव्यवस्था में ग्रामीण और शहरी अर्थव्यवस्थाएं इस तरह जुड़ी हैं कि दोनों के बीच साफ फर्क करना नामुमकिन है। शहरी विकास भारत की अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ाने के लिए जरूरी है, इसलिए उम्मीद करनी चाहिए कि इन योजनाओं के स्वरूप और कार्यान्वयन में कम से कम फर्क रहेगा।

 

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