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अर्धवार्षिक परीक्षा

किसी भी सरकार के कामकाज की परख के लिए छह महीने बहुत कम होते हैं। एक नई सरकार इतने दिन तो अपनी व्यवस्था ठीक-ठाक करने में ही ले लेती...

अर्धवार्षिक परीक्षा
Tue, 25 Nov 2014 07:54 PM
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किसी भी सरकार के कामकाज की परख के लिए छह महीने बहुत कम होते हैं। एक नई सरकार इतने दिन तो अपनी व्यवस्था ठीक-ठाक करने में ही ले लेती है। लेकिन हर नई सरकार को लेकर उत्सुकता भी बहुत होती है और लोग उसके कामकाज की समीक्षा करने के लिए खुर्दबीन लेकर बैठे रहते हैं। नरेंद्र मोदी की सरकार की जांच इसलिए भी ज्यादा उत्सुकता और ज्यादा बारीकी से हो रही है,  क्योंकि उन्होंने चुनाव के पहले काफी बड़े वादे किए थे। वोटरों को यकीन दिलाया था कि उनकी सरकार वैसे नहीं चलेगी,  जैसे अब तक की सरकारें चलती रही हैं। भारत में सरकारों के र्ढे से नाराज लोगों को मोदी के अच्छे दिनों में ताजा हवा और कुछ रोशनी महसूस हुई। इसके अलावा मोदी ने यह भी भरोसा दिलाया था कि उनके काम करने की गति सरकारी ढंग की नहीं होगी,  वह तेजी से बदलाव लाएंगे। इस मामले में यह देखना दिलचस्प होगा कि मोदी अपने वादों पर कितने खरे उतरे और इसका कितना फायदा देश को मिला।

यह तो मानना होगा कि मोदी की कार्यशैली पिछली संप्रग सरकार के मुकाबले ज्यादा तेज और निर्णायक है। उन्हें अपने फैसले वापस लेने या दबाव में उन पर अमल रोकने की कभी मजबूरी नहीं रही। प्रशासन को चुस्त करने की कुछ कोशिश उन्होंने की है और कुछ उनका बनाया माहौल है कि सरकारी क्षेत्र में नई कार्यक्षमता और ऊर्जा दिखाई दे रही है। इस माहौल की वजह से ही देश में निवेशकों का भरोसा बढ़ा है। इस वजह से निवेश में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हो रही है और सेंसेक्स नई ऊंचाइयां छू रहा है। हालांकि यह भी कहना होगा कि छोटे-मोटे प्रशासनिक सुधारों के अलावा जमीनी स्तर पर ऐसे बड़े सुधार नहीं हुए हैं,  जिनका असर विकास पर पड़े। औद्योगिक विकास की राह में मुश्किलें कम तो हुई हैं,  लेकिन वह माहौल नहीं बना है, जिसमें औद्योगिक विकास में तेजी से बढ़ोतरी हो। आंकड़े भी यही बता रहे हैं कि उद्योगों में मामूली बढ़ोतरी हुई है, जबकि पिछले वर्षों की मंदी के बाद तेज विकास होना स्वाभाविक है। बड़ी उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में तो गिरावट ही आई है। जमीन, ऊर्जा और सरकारी प्रक्रियाओं के क्षेत्र में मामूली बदलाव तो हुए हैं, लेकिन बड़े बदलाव वाले फैसलों से सरकार अब तक बचती रही है। लेकिन कामयाबी कई मामलों में खुशकिस्मती का ही दूसरा नाम है, और यह सरकार खुशकिस्मत तो है ही। उसकी किस्मत से अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम इतने कम हो गए हैं कि साल भर पहले सोचा भी नहीं जा सकता था। इसी तरह, अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्यान्नों के दाम भी घटे हैं और इन दोनों घटनाओं का अच्छा असर महंगाई की दर पर हुआ है।

महंगाई के बढ़ने की रफ्तार पिछले पांच-छह साल में सबसे कम स्तर पर आ गई है और आयात का बिल घटने से चालू खाते की स्थिति भी संभल गई है। हम कह सकते हैं कि इन छह महीनों में अर्थव्यवस्था में जो बेहतरी हुई है, उसके पीछे सरकार के कामकाज का कम, मोदी की वजह से आए ‘फील गुड फैक्टर’ और किस्मत का हाथ ज्यादा है।
एक क्षेत्र में सरकार ने सचमुच बड़ा बदलाव किया है, और वह है विदेश नीति। विदेशी मामलों में बड़े दिनों बाद नई ऊर्जा, सुनिश्चित दिशा और सुविचारित नीति दिखाई दे रही है। इससे दुनिया के दूसरे देशों में भी भारत के प्रति उम्मीद बढ़ी है। रक्षा क्षेत्र में भी जड़ता के टूटने के लक्षण दिखाई दे रहे हैं, लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में भटकाव ही दिख रहा है। नई सरकार ने जो नट-बोल्ट कसे हैं, उससे उम्मीद तो बंधती है, लेकिन अब देश मोदी सरकार से बड़े परिवर्तनकारी फैसलों की आशा रखता है।

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