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इबोला की दस्तक

भले ही यह घबराने की बात न हो, लेकिन भारत में इबोला के पहले मरीज की पहचान से यह जाहिर होता है कि इस मामले में अतिरिक्त सतर्कता की जरूरत है। लाइबेरिया में इस नौजवान का इबोला के लिए इलाज हुआ था और उसे...

इबोला की दस्तक
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 19 Nov 2014 08:58 PM
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भले ही यह घबराने की बात न हो, लेकिन भारत में इबोला के पहले मरीज की पहचान से यह जाहिर होता है कि इस मामले में अतिरिक्त सतर्कता की जरूरत है। लाइबेरिया में इस नौजवान का इबोला के लिए इलाज हुआ था और उसे स्वस्थ होने का प्रमाण-पत्र भी मिल गया था, लेकिन दिल्ली हवाई अड्डे पर हुई जांच में उसके वीर्य में इबोला वायरस होने के प्रमाण मिल गए। लाइबेरिया में उसके खून की जांच हुई थी और उसमें इबोला वायरस न मिलने पर उसे स्वस्थ घोषित कर दिया गया था। सफल इलाज के बाद कुछ वक्त तक शरीर के विभिन्न द्रवों में वायरस की मौजूदगी स्वाभाविक है और इससे संक्रमण फैलने का खतरा काफी कम होता है। लेकिन इबोला ऐसा वायरस है, जिसके साथ थोड़ी-सी भी ढील बरतना खतरनाक हो सकता है, इसलिए इस नौजवान को अलग-थलग एक निगरानी वार्ड में रखा गया है।

यह बहुत अच्छा है कि भारत में इबोला नहीं पहुंच पाया है। इबोला का विश्वव्यापी संक्रमण अब उतार पर है, कुछ और दिन अगर सख्ती से सतर्कता बरती जाए, तो इससे बचा जा सकता है। लाइबेरिया में अब रोजाना आने वाले मरीजों की तादाद घटकर एक-चौथाई हो गई है, लेकिन अगर किसी नए देश में यह बीमारी पहुंच गई, तो फिर इसका प्रकोप भयंकर हो सकता है। खासकर भारत जैसे देश में अगर इस बीमारी को घुसने की जगह मिल गई, तो इसे नियंत्रित करना मुश्किल होगा। लगभग सवा सौ करोड़ की घनी आबादी वाले देश में ऐसी बीमारी को फैलने से रोकना तकरीबन नामुमकिन हो जाएगा। इबोला सीधे संपर्क से या शरीर के द्रवों के जरिये फैलता है और भारत ऐसा देश है, जिसमें खुले में मल-मूत्र त्याग करने वाली आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा है। ऐसे में, लोगों तक वायरस को पहुंचने से नहीं रोका जा सकता। इसके अलावा, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में भी हमारा देश बहुत पीछे है। ऐसे में, न लोगों को बचाने, न बीमारों का इलाज करने की अच्छी व्यवस्था हो पाएगी। निजी अस्पताल यूं तो बीमारी हो जाने पर उसका इलाज कर लेते हैं, लेकिन बीमारी को फैलने से रोकने की कोई व्यवस्था उनके पास नहीं होती। सामुदायिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य की समस्याओं से सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं ही निपट पाती हैं और हमारे देश में उनकी स्थिति बहुत खराब है। जो डॉक्टर या स्वास्थ्यकर्मी हैं भी, उनकी इबोला से निपटने की कोई ट्रेनिंग नहीं है, इसलिए भी यह बीमारी देश में घुस ही न पाए, यही अच्छा है। अफ्रीका के जिन देशों में इबोला महामारी फैली, वहां पर भी सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं अच्छी नहीं थीं और जो थीं, वे भी इबोला की वजह से चौपट हो गईं। कई डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी इबोला के प्रकोप से मारे गए, कुछ देश छोड़कर चले गए और अब स्थिति यह है कि दूसरी स्वास्थ्य समस्याओं का इलाज करने में भी समस्या हो रही है।

काफी बड़ी तादाद में भारतीय पश्चिम अफ्रीका के देशों में हैं, इसलिए भारत पर खतरा तो मंडरा ही रहा है। वहां आने-जाने वालों की चौकसी तो जरूरी है ही, लेकिन इस संक्रमण से कुछ और सबक सीखने भी जरूरी हैं। सबसे बड़ा सबक यह है कि हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को विस्तृत करना और उसे चुस्त-दुरुस्त बनाना बहुत जरूरी है, वरना कभी ऐसा कोई संक्रमण देश में आ गया, तो वह तबाही मचा देगा। यह भी सुनिश्चित करना जरूरी है कि स्वच्छ भारत जैसे अभियान सिर्फ औपचारिकता न रह जाएं, सार्वजनिक स्वच्छता देश की वास्तविक बननी चाहिए। भूमंडलीकरण के दौर में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैलने वाली बीमारियों का खतरा बढ़ गया है, लेकिन उनसे निपटने के लिए हमारी तैयारी पूरी नहीं है।

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