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आजादी की नई राहें

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज पहली बार लाल किले से देश को संबोधित करेंगे। कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के दस वर्षो के राज के बाद कुछ ही महीने पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की...

आजादी की नई राहें
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 14 Aug 2014 10:07 PM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज पहली बार लाल किले से देश को संबोधित करेंगे। कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के दस वर्षो के राज के बाद कुछ ही महीने पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनी है, जिसमें भाजपा को अपने बूते ही लोकसभा में पूर्ण बहुमत हासिल है।

यह गठबंधन के दौर का अंत नहीं है, लेकिन यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि लगभग 25 वर्षो बाद लोकसभा में एक पार्टी मौजूद है, जिसे पूर्ण बहुमत हासिल है। भारत और नरेंद्र मोदी ने यह बहुमत काफी ठोस योजनाओं की घोषणाओं के आधार पर पाया है और इस वजह से जनता में अपेक्षाएं भी बहुत हैं।

पिछले कुछ स्वतंत्रता दिवस आम तौर पर बिना किसी उम्मीद के गुजरे थे, क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था धीमी पड़ती जा रही थी और ऐसा लग रहा था कि केंद्र सरकार फैसले करने और उन पर अमल करने में नाकाम है। इसके बरक्स नरेंद्र मोदी के फैसले करने और उन पर अमल करने की शैली को वोटरों ने अपना समर्थन दिया।

दिल्ली के शक्ति समीकरणों और कार्यशैली में फर्क तो नजर आ रहा हैं, हालांकि ठोस परिणाम अभी नहीं दिख रहे हैं। फिर भी यह साफ है कि भारत की राजनीति और सत्ता तंत्र में एक बुनियादी बदलाव हुआ है और लोग उम्मीद के साथ नरेंद्र मोदी का भाषण सुनेंगे।
आजादी के बाद से आज तक भारत में सरकार और जनता के रिश्तों में कोई बुनियादी परिवर्तन नहीं आया, न ही सरकार के कामकाज का तरीका बदला है।

वक्त के साथ और लोकतंत्र के परिपक्व होने के साथ-साथ कुछ चीजें बदलती जरूर हैं, लेकिन आर्थिक उदारीकरण के लगभग 24 साल बाद भी सत्ता तंत्र का रवैया वही है। सरकारी तंत्र अब भी जनता से ‘माई-बाप’ जैसा ही व्यवहार करता है और उदारीकरण के बावजूद उद्योग और व्यापार के क्षेत्र पर सरकारी शिकंजा वैसा ही है।

उदारीकरण ने लाइसेंस परमिट राज को खत्म नहीं किया और अब भी देश में उद्यमी सरकार के आशीर्वाद के बिना एक कद़ा नहीं बढ़ा सकते। क्रोनी कैपिटलिज्म का इतना विस्तार इसका सबूत है। इसी वजह से भ्रष्टाचार कम नहीं हुआ है, बल्कि आर्थिक विकास के साथ अर्थव्यवस्था का आकार प्रकार बढ़ा है, इसलिए भ्रष्टाचार का भी आकार-प्रकार कई गुना बढ़ा गया है। लेकिन इस बीच सूचना तकनीक के विस्तार और अर्थव्यवस्था की तरक्की की वजह से जनता की समझ बढ़ी है। आम लोग अब सरकार से एहसान की तरह बांटी जाने वाली सुविधाएं नहीं, बल्कि साफ-सुथरा और जवाबदेह प्रशासन चाहते हैं। पिछले दिनों हुए तमाम चुनावों में लोगों ने उन लोगों को जिताया है, जिन्होंने बेहतर प्रशासन का वादा किया था।

नरेंद्र मोदी ने आम भारतीयों की इस अपेक्षा को पहचाना और इसे अपनी नीति की तरह अभिव्यक्त किया। भारतीय जनता ने उन्हें अभूतपूर्व सफलता सौंपी, इस उम्मीद में कि वह सत्ता तंत्र और उसके जनता से रिश्ते में बुनियादी बदलाव करेंगे। इसी उम्मीद के साथ लोग इस 15 अगस्त का भाषण सुनेंगे।

पिछले ढाई दशकों के अनुभव ने भारतीय जनता में यह भावना जगा दी है कि भारत तीसरी दुनिया का ऐसा देश होने को अभिशप्त नहीं है, जिसकी जनता का जीवन स्तर हमेशा निम्न गुणवत्ता का रहेगा। यह भावना और जनता की उम्मीदें अब हर शासक के लिए भारी चुनौती बनी रहेगी। क्षेत्र, जाति, धर्म, संप्रदाय के झगड़े देश में बने हुए हैं, लेकिन उन्हें जनता की प्राथमिकता जो भी नेता या संगठन मानेगा, उसे इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। यह एक बड़ा फर्क पिछले 67 सालों में आया है और नई सरकार को इसके अनुरूप काम करना होगा। आजादी के बाद से बहुत सारे काम अधूरे छूट गए हैं, उन्हें पूरा करने के लिए और इंतजार नहीं किया जा सकता।

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