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संविधान को चुनौती

शिवसेना संविधान और कानून की लगातार अवहेलना करती आई है, बाल ठाकरे स्मारक के बारे में भी उसका रवैया वैसा ही...

संविधान को चुनौती
Wed, 28 Nov 2012 10:01 PM
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मुंबई के शिवाजी पार्क में, जहां शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे का दाह संस्कार हुआ था, वहीं पर बाल ठाकरे का स्मारक बनाने की मांग पर शिवसैनिक अड़े हुए हैं। शिवसेना नेताओं का कहना है कि वे सरकार की नहीं सुनेंगे और अगर अदालत का भी आदेश होगा, तो उसे नहीं मानेंगे। अब महाराष्ट्र सरकार को तय करना है कि उसके लिए उसका अपना राजधर्म ज्यादा महत्वपूर्ण है या शिवसैनिकों की जिद। महाराष्ट्र में किसी की सरकार हो, शिवसेना की एक समानांतर सत्ता कम से कम मुंबई में जरूर चलती आई है। यह इस बात से भी जाहिर हुआ कि बाल ठाकरे का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। फेसबुक पर टिप्पणी के मामले में जैसी कार्रवाई हुई, उससे पता चलता है कि पुलिस अधिकारियों के लिए भी सरकारी नियमों से ज्यादा शिवसेना की सत्ता मायने रखती है। महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन सिर्फ एक कार्यकाल सत्ता में रहा, पर कांग्रेसी और कांग्रेस-राकांपा गठबंधन सरकार ने अपनी प्रतिष्ठा की कीमत पर भी शिवसेना की महत्ता बनाए रखी। शिवसेना एक ऐसा संगठन है और बाल ठाकरे एक ऐसे नेता थे, जो खुलेआम ऐसे बयान दे देते थे, जो देश के कानूनों और संविधान की अवहेलना करता हो। शिवसेना के प्रमुख और बाल ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे कह रहे हैं कि शिवसैनिक हिंसा पर उतारू न हों, इसका एकमात्र तरीका यही है कि उनकी मांग मान ली जाए। शिवाजी पार्क में स्मारक बनाने में एक दिक्कत यह है कि हाईकोर्ट ने शिवाजी पार्क को ‘शांति क्षेत्र’ घोषित कर रखा है, जहां किसी किस्म का शोर नहीं हो सकता। अगर बाल ठाकरे का स्मारक बन जाए, तो यह इलाका शांत नहीं रह पाएगा। इसी आधार पर कई नागरिक भी वहां स्मारक का विरोध कर रहे हैं। बृहन्मुंबई नगरपालिका ने दो वैकल्पिक जगहें सुझाई हैं, लेकिन शिवसेना के लिए यह सिर्फ भावनात्मक नहीं, बल्कि शक्ति-परीक्षण का भी मुद्दा बन गया है। बाल ठाकरे के निधन के बाद यह पहला बड़ा मुद्दा है, जिस पर सरकार और शिवसेना आमने-सामने है। अगर सरकार इस मुद्दे पर झुक जाती है, तो पूरे देश में, खासकर सूबे में यह संदेश जाएगा कि शिवसेना का आतंक और उसकी सत्ता बरकरार है। शिवसेना का अस्तित्व ही आतंक और संविधानेतर सत्ता पर निर्भर है, इसलिए शिवसेना इस बात पर झुक जाएगी, यह नामुमकिन-सा लगता है। ऐसे में, महाराष्ट्र सरकार के पास अब दो विकल्प हैं- वह सख्ती से शिवसेना के सामने अड़ जाए या फिर शिवसेना के आगे झुककर शांति का सौदा कर ले।

अगर मामला अदालत में जाता है और अदालत शिवाजी पार्क में स्मारक के लिए मंजूरी नहीं देती है, तब फिर सरकार क्या करेगी? किसी भी सरकार को अपनी और अदालत की अवहेलना करने वाले बयान का सख्ती से जवाब देना ही चाहिए। न शिवसेना इतना ताकतवर संगठन है और न ही बाल ठाकरे इतने लोकतांत्रिक नेता थे, जितना दिखाई देता है। शिवसेना की ताकत ज्यादातर महाराष्ट्र सरकार की बनाई हुई है, क्योंकि वह उसके लिए उपयोगी संगठन है। शिवसेना मुंबई के बाहर मजबूत नहीं है, इसलिए एक कमजोर विपक्ष है और विपक्ष की जगह वही घेरे रहे, इसमें कांग्रेस-राकांपा का स्वार्थ है। मुंबई में शिवसेना अल्पसंख्यकों और गैर-मराठियों को डराए रखती है, जिसका चुनावी फायदा मिल सकता है। लेकिन संविधान का सम्मान न करने वाले संगठन को बढ़ावा देने की बड़ी कीमत महाराष्ट्र ने चुकाई है। महाराष्ट्र देश के समृद्ध राज्यों में से है, पर धीरे-धीरे उसका क्षय हो रहा है। क्या महाराष्ट्र सरकार से यह उम्मीद की जाए कि वह संकीर्ण स्वार्थ से उठकर अपने सांविधानिक कर्तव्यों का पालन करेगी?

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