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युद्ध नायक की मौत

रोहित सेठी की मौत बहुत कुछ कहती है- 1971 के युद्ध के इस नायक की रिटायर जिंदगी के बारे में, अपने युद्ध नायकों के प्रति समाज की सोच के बारे में, और उस दौर के बारे में भी, जिसमें हमारे आज के महानगरों के...

युद्ध नायक की मौत
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 13 Jun 2014 08:53 PM
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रोहित सेठी की मौत बहुत कुछ कहती है- 1971 के युद्ध के इस नायक की रिटायर जिंदगी के बारे में, अपने युद्ध नायकों के प्रति समाज की सोच के बारे में, और उस दौर के बारे में भी, जिसमें हमारे आज के महानगरों के लोग जी रहे हैं। दिल्ली के एक संभ्रांत मुहल्ले में रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी जी रहे वीर चक्र विजेता मेजर (रिटायर्ड) रोहित सेठी की हत्या बुधवार की रात उन्हीं के घर काम करने वालों ने कर दी। हत्या के पीछे की मंशा थी उनकी जमा-पूंजी पर हाथ साफ कर देना। इस तरह की हत्याएं दिल्ली के लिए कोई नई बात नहीं हैं, हर कुछ समय बाद ऐसी दुखद खबरें इस महानगर से आती ही रहती हैं, और कुछ दिन तक सुर्खियों में छाने के बाद भुला दी जाती हैं। लेकिन इससे भी दुखद यह है कि आज तक न तो प्रशासन और न ही समाज अपने वरिष्ठ नागरिकों को बचाने का तरीका निकाल पाया। तरीका निकालना तो दूर, वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा पर कोई विमर्श भी हमें नहीं सुनाई देता। एकल परिवार वाले समाज में, खासकर महानगरों के समाज में, ऐसे वरिष्ठ नागरिकों की संख्या बढ़ती जा रही है, जिनके बच्चे कहीं विदेश में हैं, या शहर से बाहर कहीं काम करते हैं। रोहित सेठी का बेटा भी सिंगापुर में काम करता है और वह दिल्ली में अपनी 94 वर्षीया मां के साथ रह रहे थे। हालांकि वरिष्ठ नागरिक होने के बावजूद सेठी सक्रिय जीवन जी रहे थे। वह अपने घर पर लड़कों के लिए एक (पेइंग गेस्ट) हॉस्टल चला रहे थे। लूटपाट के लिए उनकी हत्या का षड्यंत्र इसी हॉस्टल के कर्मचारियों ने रचा था।

शुरुआती जांच के बाद दिल्ली पुलिस ने बताया है कि रोहित सेठी ने अपने घरेलू नौकर का पुलिस वेरीफिकेशन नहीं करवाया था। ऐसे अपराधों को कम करने में पुलिस वेरीफिकेशन एक महत्वपूर्ण औजार हो सकता है, लेकिन इसकी भी एक सीमा है। इस मामले में संदिग्ध घरेलू नौकर नाबालिग था, और अगर पुलिस वेरीफिकेशन करवाया भी जाता, तो भी पुराना आपराधिक रिकॉर्ड न होने के कारण शायद उसका वेरीफिकेशन आसानी से हो जाता। रोहित सेठी की हत्या दरअसल एक आपराधिक षड्यंत्र का नतीजा है और ऐसे षड्यंत्रों को हम सामाजिक या प्रशासनिक व्यवस्थाओं से ही पूरी तरह नहीं रोक सकते। लेकिन ऐसे आपराधिक षड्यंत्र जब महानगरों में दोहराए जाने लगें, तो इसका अर्थ यह है कि सामाजिक और प्रशासनिक स्तर पर इसके लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।

रोहित सेठी को हम 1971 के युद्ध में उनकी जांबाजी के लिए याद करते हैं। उस समय वह नौवीं गोरखा बटालियन के कमांडो थे। उन्होंने अपने कुछ साथियों के साथ दुश्मन के इलाके में सेंध लगाकर पाकिस्तान की संचार लाइन को ध्वस्त कर दिया था। दो दिन तक चले इस ऑपरेशन में उन्होंने दुश्मन द्वारा चलाई गई गोलियों को तो अपने शरीर पर ङोला ही था, साथ ही एक हैंड ग्रेनेड के विस्फोट में उनका 90 प्रतिशत शरीर जल गया था। लेकिन यह उनका जज्बा ही था कि वह इस सबके बावजूद दुश्मन के क्षेत्र से बचकर आ गए और दो साल तक लगातार इलाज के बाद पूरी तरह से स्वस्थ भी हो गए। तत्कालीन थल सेना अध्यक्ष जनरल सैम मानेक शॉ ने रोहित सेठी से मिलकर उन्हें निजी तौर पर इस बहादुरी के लिए बधाई दी थी। बाद में इस साहसिक कारनामे के लिए उन्हें वीर चक्र से भी नवाजा गया। 1971 के युद्ध में वह लेफ्टिनेंट के पद पर थे और बाद में जब रिटायर हुए, तो वह मेजर के पद पर पहुंच चुके थे। ऐसे वीर नायक का एक आपराधिक षड्यंत्र का शिकार बन जाना और भी दुखद है। वह इससे कहीं ज्यादा सम्मानजनक विदाई के हकदार थे।

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