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बीमार बनाते नेता

दुनिया के किसी भी देश में नागरिकों को अपने राजनेताओं से शिकायत रहती है। सब मानते हैं कि उनके राजनेता सबसे भ्रष्ट, अकर्मण्य और तिकड़मी हैं। हम भी अपनी ज्यादातर समस्याओं का कारण अपने देश के राजनेताओं...

बीमार बनाते नेता
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 14 Jul 2014 12:46 AM
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दुनिया के किसी भी देश में नागरिकों को अपने राजनेताओं से शिकायत रहती है। सब मानते हैं कि उनके राजनेता सबसे भ्रष्ट, अकर्मण्य और तिकड़मी हैं। हम भी अपनी ज्यादातर समस्याओं का कारण अपने देश के राजनेताओं को ही मानते हैं, लेकिन अमेरिका में हुए एक सर्वेक्षण से पता लगता है कि राजनेता अपने देश के नागरिकों की सेहत खराब होने के लिए भी सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। इस सर्वेक्षण में लोगों से यह पूछा गया था कि उनके जीवन में सबसे ज्यादा स्ट्रेस या तनाव किस वजह से है। जब उनसे पूछा गया कि उनके जीवन में सबसे ज्यादा तनाव का दौर कब था, तो ज्यादातर लोगों ने किसी बीमारी के दौर का जिक्र किया। लेकिन जब उनसे रोजाना सबसे ज्यादा तनाव पैदा करने वाले कारणों के बारे में पूछा गया, तो लोगों ने ट्रैफिक की समस्या, घरेलू कामकाज, कार खराब होने की समस्या वगैरह का जिक्र किया, लेकिन सबसे ज्यादा तनाव की वजह सरकार और राजनेताओं के बारे में सोचने या सुनने को बताया गया।

44 प्रतिशत लोगों ने सरकार या राजनेताओं के कामकाज के जिक्र को तनाव का सबसे बड़ा कारण बताया और 40 प्रतिशत लोगों ने टीवी पर खबरें देखने को। जाहिर है, टीवी पर जो खबरें आती हैं, उनमें से बड़ी संख्या राजनीतिक खबरों की होती है या सरकारी कामकाज को लेकर होती हैं, इसके अलावा दुर्घटना, अपराध वगैरह की खबरें भी तनाव बढ़ाती हैं। इस सर्वेक्षण के नतीजों का विश्लेषण करते हुए विशेषज्ञ कहते हैं कि हम ऐसे दौर में हैं, जब जन-प्रतिनिधियों पर विश्वास और उनका सम्मान न्यूनतम स्तर पर है, ऐसे में उन्हें टीवी के परदे पर देखना तनाव और रक्तचाप के बढ़ने का स्वाभाविक कारण है। दूसरी बात यह है कि खबरें भी इन दिनों सनसनीखेज और कर्कश होने लगी हैं। उनका अंदाज झगड़ों और विवादों को बढ़-चढ़कर दिखाने का है। हो सकता है कि आधुनिकता के शुरुआती दौर में हमारे पास ज्यादा महान नेतृत्व रहा हो। जब पूरी दुनिया में आधुनिकता का प्रसार हो रहा था, तब नेतृत्व में भी ज्यादा त्यागी, विद्वान और दूरदर्शी नेता थे, क्योंकि वह दौर भी बड़े और उदात्त विचारों का दौर था।

जॉर्ज वाशिंगटन, थॉमस जेफरसन, अब्राहम लिंकन से लेकर महात्मा गांधी, ब्लादिमिर इलीच लेनिन और उसके बाद जवाहरलाल नेहरू और हो चि मिन्ह जैसे विराट व्यक्तित्व दुनिया में हुए, जिन्होंने लोकतांत्रिक और प्रगतिशील मूल्यों में आस्था जगाई। लेकिन हमारे दौर में ऐसे बड़े नेता नहीं हैं और 24 घंटे का मीडिया है, जो दुनिया से दूरदराज की बुरी खबर भी हमारे घर में पहुंचा देता है। जिसे हम तनाव कहते हैं, वह दरअसल शरीर का रक्षात्मक मैकेनिज्म है, जो किसी वास्तविक या आभासी खबर के संकेत से सतर्क हो जाता है। इस मैकेनिज्म की सतर्कता शरीर में कुछ हारमोन सक्रिय होने से होती है और दिमाग के साथ शरीर भी खतरे से निपटने के लिए तैयार हो जाता है। खून का दबाव बढ़ जाता है, मांसपेशियां फुर्ती से काम करने के लिए तैयार हो जाती हैं और दिमाग चौकन्ना हो जाता है। लेकिन जब यह मैकेनिज्म बार-बार सक्रिय होता है और शरीर निष्क्रिय रहता है, तो इससे समूचा तंत्र खराब हो जाता है। यही तनाव है, जो बीमारियां पैदा करता है। इससे बचने के लिए हमें ही कुछ उपाय करने होंगे, नेताओं से यह उम्मीद न करें। अगर हम व्यापक लोकतांत्रिक मूल्यों और संस्थानों के परिप्रेक्ष्य में नेताओं को देखें, तो हमें कम गुस्सा और खीज पैदा होगी। सबसे ज्यादा जरूरी है कि तनाव बढ़ाने वाली बातों से हटकर तनाव घटाने वाली बातों पर गौर करें। हम पाएंगे कि ऐसी चीजें भी दुनिया में कम नहीं हैं।

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