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विकास के क्षेत्र

जानकार पहले से यह मान रहे थे कि महाराष्ट्र और हरियाणा में अगर भारतीय जनता पार्टी जीती, तो आर्थिक सुधारों की रफ्तार तेज हो सकती है। इसकी मुख्य वजह यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हैसियत और उनका...

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लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 20 Oct 2014 08:47 PM
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जानकार पहले से यह मान रहे थे कि महाराष्ट्र और हरियाणा में अगर भारतीय जनता पार्टी जीती, तो आर्थिक सुधारों की रफ्तार तेज हो सकती है। इसकी मुख्य वजह यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हैसियत और उनका कद इन चुनावों से बढ़ेगा और वह अपने फैसले ज्यादा मजबूती से लागू करवा पाएंगे। इन चुनावों में भाजपा की सफलता का दूरगामी असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। अब भारत के पूरे केंद्रीय और पश्चिमी हिस्से पर भाजपा का राज है और यह इलाका देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 37.49 प्रतिशत पैदा करता है। गुजरात पहले से ही विकसित राज्य है, इसमें महाराष्ट्र और हरियाणा के जुड़ जाने से भाजपा का राज तीन उच्च आर्थिक पैमानों वाले राज्यों में हो गया है। मध्य प्रदेश देश के सबसे तेजी से विकास कर रहे राज्यों में से है, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की रफ्तार जरूर धीमी है, लेकिन इन राज्यों के साथ आने से वे भी तेज विकास की राह पर जा सकते हैं। इन सात राज्यों में भाजपा के राज का सबसे बड़ा फर्क यह पड़ेगा कि केंद्र सरकार ऐसे कई फैसले कर सकती है, जिनके लागू होने में राज्यों की बड़ी भूमिका होती है। पिछली संप्रग सरकार के राज में कई बड़े फैसले इसलिए अटक गए थे, क्योंकि राज्य उन्हें सहयोग नहीं कर रहे थे। यहां तक कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकारों ने ऐसे कई फैसले नहीं लागू होने दिए थे, जिन पर सैद्धांतिक रूप से भाजपा को किसी तरह की कोई आपत्ति नहीं हो सकती थी।

आर्थिक प्रगति में राज्यों की भूमिका बहुत बढ़ी है और केंद्र सरकार की भूमिका सीमित हुई है। अच्छे और सक्षम मुख्यमंत्रियों के राज में कई राज्यों ने जबर्दस्त तरक्की की है और जो राज्य राजनीतिक उठा-पटक और संकीर्ण स्वार्थों में उलझ गए, उनकी तरक्की उस अनुपात में नहीं हुई है। अब देश के आर्थिक रूप से ताकतवर राज्यों और केंद्र सरकार में समन्वय ज्यादा होगा, इसलिए कई योजनाएं या सुधार लागू करना आसान हो जाएगा। केंद्र के कई फैसलों को लागू करने के मामलों में राज्य सरकारें स्वायत्त होती हैं और अक्सर राजनीतिक वजहों से ही सहयोग या असहयोग के फैसले किए जाते हैं। निवेशक भी इन राज्यों में ज्यादा निवेश को उत्साहित होंगे, क्योंकि उन्हें मालूम होगा कि केंद्र और राज्य सरकार के बीच समन्वय है। दक्षिण के कई राज्य, जो निवेशकों की पसंद रहे हैं, वे तमाम किस्म की उलझनों में फंसे हैं। तमिलनाडु में राजनीतिक संकट है, और आंध्र प्रदेश की प्राथमिकता तूफान हुदहुद से हुई तबाही के बाद फिर से पटरी पर आने की है। इस मामले में हरियाणा से लेकर महाराष्ट्र तक फैले भाजपाई प्रभाव क्षेत्र के लिए आने वाले दिन इस मायने में फायदेमंद हो सकते हैं। इसके अलावा कई योजनाएं हैं, जिनमें न सभी राज्यों का सहयोग जरूरी होगा। दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारे के निर्माण जैसी परियोजनाओं को आगे बढ़ाना अब काफी आसान हो जाएगा, क्योंकि यह गलियारा जिन राज्यों से गुजर रहा है, उन सब में अब भाजपा का राज है।

अगर पश्चिमी और मध्य क्षेत्र का विकास तेजी से होगा, तो दूसरे राज्यों पर इसका दबाव पड़ेगा। पूर्वी भारत के कई राज्यों पश्चिम बंगाल, बिहार और ओडिशा में अपेक्षाकृत रूप से निवेश पहले से ही कम है और इसका और ज्यादा असर इन पर पड़ेगा। राजनीतिक रूप से भी यह दबाव उन पर आएगा, क्योंकि भाजपा यह प्रचारित कर पाएगी कि उसके प्रभाव क्षेत्र के मुकाबले ये राज्य कहां ठहरते हैं? संभव है कि इस स्पर्धा का अच्छा असर भी हो और बाकी राज्य अपने को भाजपा शासित राज्यों की बराबरी में खड़ा करने की कोशिश करें। इन चुनावों से जो नए राजनीतिक और आर्थिक समीकरण बने हैं, उनके असर को देखना दिलचस्प होगा।

 

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