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सीखने की उम्र

यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि इंसान की सीखने की क्षमता उम्र के साथ कम होती जाती है। यह माना जाता है कि बुढ़ापे में नई बातें,  नई आदतें सीखना इतना मुश्किल होता है कि दिमाग को चुस्त-दुरुस्त रखने के...

सीखने की उम्र
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 30 Nov 2014 08:31 PM
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यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि इंसान की सीखने की क्षमता उम्र के साथ कम होती जाती है। यह माना जाता है कि बुढ़ापे में नई बातें,  नई आदतें सीखना इतना मुश्किल होता है कि दिमाग को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए खास तौर पर नई चीजें सीखने की कोशिश करने के लिए कहा जाता है। यह अनुभव भी है कि शिशु बिना किसी विशेष प्रयास के एक नहीं,  बल्कि दो-दो भाषाएं सीख लेते हैं, लेकिन आगे जिंदगी में किसी भाषा को सीखने के लिए वर्षों तक क्लास रूम में बैठना पड़ता है और एक उम्र के बाद तो इससे भी कोई फायदा नहीं होता। किशोर या युवा लोगों को वाहन चलाना सिखाने और किसी पचास के उम्र के व्यक्ति को वाहन चलाना सिखाने में कितना फर्क है,  यह वे लोग बखूबी जानते हैं, जिन्होंने ऐसी कोशिश की है। बच्चों के हाथ में मोबाइल का लेटेस्ट मॉडल दें और किसी अधेड़ के हाथ में दें, तो कौन उसको इस्तेमाल करना पहले सीखेगा,  यह बताने की जरूरत नहीं है। सवाल यह उठता है कि उम्र के साथ सीखने की क्षमता कम क्यों हो जाती है?  एक सांस्कृतिक वजह तो यह है कि ऐसा मान लिया जाता है कि सीखने की उम्र तो युवावस्था तक रहती है,  उसके बाद इंसान का काम सीखना नहीं सिखाना है। लेकिन यह पूरा कारण नहीं है, क्योंकि पूरी कोशिश करने के बाद भी बूढ़े लोग सीखने के मामले में कम उम्र लोगों से पिछड़ जाते हैं।

एक विचार यह है कि जैसे बुढ़ापे में शरीर की मांसपेशियां कम लोचदार हो जाती हैं, वैसे ही दिमाग का भी लचीलापन कम हो जाता है। या तो दिमाग की जो कोशिकाएं सीखने में मदद करती हैं, उनकी तादाद कम हो जाती है या उनकी ग्रहण-शक्ति घट जाती है। यह बात काफी तार्किक लगती है, पर एक ताजा शोध ने एक बिल्कुल नई अवधारणा पेश की है। यह अवधारणा भी काफी तार्किक है। एक अमेरिकी यूनिवर्सिटी में हुए एक शोध में कुछ बूढ़े और कुछ जवान लोगों को एक जैसी कुछ बातें सीखने को दी गईं। उन्हें कंप्यूटर स्क्रीन पर आने वाले कुछ शब्द व अक्षर और उनका क्रम याद करने को कहा गया। देखा गया कि बूढ़े और जवान,  दोनों के सीखने की रफ्तार एक जैसी थी, पर बूढ़े लोगों ने कुछ अप्रासंगिक बातें भी सीख ली थीं, जो सीखने को उनसे नहीं कहा गया था। जवान लोगों ने ऐसा नहीं किया। शोधकर्ताओं का कहना है कि बूढ़ों की समस्या यह नहीं है कि वे सीख नहीं पाते, बल्कि यह है कि वे गैर-जरूरी जानकारी को अलग नहीं कर पाते।

वे सीखने के क्रम में गैर-जरूरी बातें भी सीख लेते हैं। उनके दिमाग में लचीलापन कम नहीं होता, पर उन्हें यह सीखने की जरूरत है कि कितनी जानकारी पर ध्यान केंद्रित करना है और किसे छोड़ देना है। उन्हें सीखना नहीं, बल्कि यह सीखना जरूरी है कि क्या छोड़ देना चाहिए। यह शायद हमारे रोजमर्रा का अनुभव भी है कि बूढ़े लोग अक्सर गैर-जरूरी तफसीलों पर ज्यादा वक्त गंवाते हैं। युवा जब कोई काम सीखते हैं, तो व्यर्थ के सवाल उन्हें नहीं सताते। जब किसी युवा के हाथ में मोबाइल आता है, तो वह उसे चलाकर उसके तौर-तरीके सीख लेता है, जबकि बूढ़े व्यक्ति के दिमाग में कई सवाल आते हैं। जैसे, यदि यह बटन दबाया, तो कुछ गलत तो नहीं हो जाएगा, मोबाइल खराब तो नहीं हो जाएगा, किसी पत्रिका में छपा था कि मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से कैंसर हो जाता है, इसके बाद यह बटन दबाना है या पहले यह बटन दबाना है, आदि। कुछ तो उम्र के साथ सावधानी बढ़ जाती है और कुछ गैर-जरूरी बातों को सोचने की आदत हो जाती है। यह बात काफी तार्किक लगती है कि बुढ़ापे में दिमाग को ऐसे फिल्टर की जरूरत है, जो बेकार की चीजों को छान सके। इससे सीखना भी आसान होगा और यूं भी बुढ़ापा ज्यादा सुखद हो जाएगा।

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