सनसनी के लिए
यह एक बेमकसद इंटरव्यू पर खड़ा हुआ बेवजह विवाद है। दिसंबर 2012 में दिल्ली में निर्भया के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद जिस तरह से उसकी जघन्य हत्या हुई थी, वह एक ऐसा शर्मनाक कांड है, जिसे समाज को...
यह एक बेमकसद इंटरव्यू पर खड़ा हुआ बेवजह विवाद है। दिसंबर 2012 में दिल्ली में निर्भया के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद जिस तरह से उसकी जघन्य हत्या हुई थी, वह एक ऐसा शर्मनाक कांड है, जिसे समाज को बार-बार तब तक याद दिलाना चाहिए, जब तक समाज में महिलाएं पूरी तरह सुरक्षित नहीं हो जातीं। लेकिन इसे याद दिलाने का तरीका वह नहीं है, जिसे ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन यानी बीबीसी अपना रही है। बीबीसी ने इसके लिए जो तरीका अपनाया है, वह नैतिक रूप से तो गलत है ही, साथ ही बलात्कारियों को महिमा-मंडित करता दिख रहा है। बीबीसी ने इस कांड के एक आरोपी का इंटरव्यू तब लिया था, जब मामले पर अदालत का फैसला भी नहीं आया था। और यह इंटरव्यू अब आठ मार्च को महिला दिवस पर प्रसारित होगा, जबकि इस मामले के सभी बालिग आरोपियों को अदालत मृत्युदंड की सजा सुना चुकी है। तिहाड़ जेल के अधिकारियों का कहना है कि इंटरव्यू की इजाजत इस शर्त पर दी गई थी कि इसके प्रसारण से पहले पूरा कार्यक्रम जेल अधिकारियों को दिखाया जाएगा।
इतने संवेदनशील मामले में इंटरव्यू की इजाजत जेल अधिकारियों ने क्यों दी और इंटरव्यू करने वालों ने शर्त का पालन क्यों नहीं किया, ये दो महत्वपूर्ण मगर अलग-अलग मुद्दे हैं। कई और सवाल हैं, जो पूछे जाने जरूरी हैं। अगर हम किसी मामले के आरोपी का इंटरव्यू लेते हैं, तो जाहिर है कि वह उसमें अपने आप को निर्दोष साबित करने की कोशिश करेगा। वह चाहेगा कि इस मौके का इस्तेमाल अपने बचाव के लिए करे। एक सवाल तो यह है कि क्या मीडिया को किसी जघन्य कांड के आरोपी को अपने बचाव के लिए मंच प्रदान करना चाहिए? बलात्कार जैसे जघन्य मामले में यह सवाल ज्यादा गंभीर हो जाता है। इससे बलात्कारी को यह मौका मिल जाता है कि वह अपनी रुग्ण बलात्कारी मानसिकता को जायज ठहराने की कोशिश करे। साथ ही इस मौके का इस्तेमाल वह पीड़िता को ही दोषी ठहराने के लिए करे।
अभी तक जो बातें सामने आई हैं, वे बताती हैं कि इस मामले में यही हुआ है। इस कार्यक्रम का प्रसारण अभी नहीं हुआ है, लेकिन बीबीसी ने कई तरह से उसका प्रचार शुरू कर दिया है। उस प्रचार से तो यही लगता है कि बीबीसी ने बलात्कारी को अपनी मानसिकता को जायज ठहराने का एक मंच प्रदान किया है। एक बलात्कारी की मानसिकता क्या होती है, यह समाजशास्त्रीय और मनोवैज्ञानिक अध्ययन का विषय हो सकता है, लेकिन यही सोच अगर मीडिया में परोसी जाती है, तो उसके अपने खतरे हैं। पूरा कार्यक्रम क्या है, यह हम अभी नहीं कह सकते, लेकिन बीबीसी प्रेस रिलीज कार्यक्रम के प्रचार के बहाने बलात्कारी का महिमा-मंडन करती हुई ही दिख रही है।
इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि जिस मानसिकता के चलते निर्भया से बलात्कार हुआ था, उस मानसिकता के लोग अब भी समाज में मौजूद हैं। इसीलिए समाज में महिलाएं अब भी असुरक्षित हैं। वह सामंती सोच अब भी जिंदा है, जो महिलाओं को दोयम मानती है। एक बलात्कारी के घृणित चेहरे की बजाय अगर उसका कोई दूसरा या सनसनीखेज चेहरा पेश किया जाए, तो खतरा यह है कि ऐसी सोच वाले लोग उससे जुड़ सकते हैं। उस आरोपी या अपराधी से, जिसे सजा देकर हम समाज से दूर कर रहे हैं। आठ मार्च को पूरी दुनिया में मनाया जाने वाला महिला दिवस महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिलाने के संकल्प का दिन है, ऐसे मौके पर उन लोगों की राय को सामने लाया जाना कतई उचित नहीं कहा जा सकता, जो समाज को महिलाओं के लिए असुरक्षित बनाते हैं।