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सबके साथ होली

होली उल्लास का और वर्जनाओं से मुक्ति का त्योहार है। वर्जनाओं से मुक्ति का त्योहार वैसे समाज में ही मनाया जा सकता है, जिसमें काफी वर्जनाएं मौजूद हों। भारत इस वक्त एक ऐसे बदलाव के दौर में है, जिसमें...

सबके साथ होली
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 05 Mar 2015 11:17 PM
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होली उल्लास का और वर्जनाओं से मुक्ति का त्योहार है। वर्जनाओं से मुक्ति का त्योहार वैसे समाज में ही मनाया जा सकता है, जिसमें काफी वर्जनाएं मौजूद हों। भारत इस वक्त एक ऐसे बदलाव के दौर में है, जिसमें पुरानी वर्जनाएं टूट रही हैं और इससे जो मूल्यों का टकराव हो रहा है, वह अक्सर काफी असुविधाजनक या तकलीफदेह है। अगर होली पर हम याद रखें कि समाज की स्वाभाविक गति उसके ज्यादा उदार और सहिष्णु होने में है, और उल्लास का रिश्ता अपनी आजादी व तरक्की का जश्न मनाने से है, तो हम समाज को कई असुविधाजनक स्थितियों से बचा सकते हैं। लोकतंत्र का अर्थ हमारे समाज में बहुमत या ताकत की तानाशाही से जुड़ गया है और हम यह मानते हैं कि जो भी हमारे लिए असुविधाजनक है या हमसे सहमत नहीं है, उस पर पाबंदी लग जानी चाहिए। हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं, और एक ऐसे समाज में भी, जहां हजारों साल से विरोधियों से सामंजस्य की असाधारण परंपरा है, लेकिन हम जिस गति से औपचारिक-अनौपचारिक, सरकारी-गैर सरकारी पाबंदियां लगाते जा रहे हैं, वे हमें होली के मजाक का पात्र बना देती हैं। इस वक्त भी कुछ पाबंदियों का शोर संसद से लेकर तो चौराहों तक गूंज रहा है। बिना यह सोचे कि दुनिया बहुत आगे निकल आई है, सूचना तकनीक के इस दौर में कितनी पाबंदियां हम लगाएंगे, और उनका असर क्या होगा?

भारत एक मजबूत लोकतंत्र और दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। ऐसे में, हम अपने विविध रंगों का उत्सव मनाने की बजाय किसी संकटग्रस्त कमजोर तानाशाही की तरह क्यों व्यवहार करें? हर तरफ से बार-बार ‘भेड़िया आया, भेड़िया आया’ की ललकारें समाज में उठती रहें, इससे क्या फायदा है? अगर हम असहमत हैं, तो असहमति का रंग बिखेरें, होली में थोड़ी-सी अति भी चल ही जाती है, बल्कि हमारे राजनेता और समर्थ लोग जिस कदर ज्यादतियां करते हैं, उसे देखकर तो लगता है कि कोई हद ही नहीं है। संसद में एक विधेयक आता है, विरोधी पार्टियां पूरी ताकत लगाकर उसे रोक देती हैं। अगली बार विरोधी पार्टी की सरकार होती है, वह लगभग वही विधेयक पेश करती है, अब जो विरोधी पार्टियां हैं, वे उसे पूरी ताकत से रोक देती हैं। राजनेताओं ने परस्पर विरोध और असहमति की अति कर दी है। पिछले कितने बजट में वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) को अगले साल से लागू करने का वादा रहता आया है। हर पार्टी सहमत है कि देश की अर्थव्यवस्था के लिए जीएसटी बहुत फायदेमंद है, लेकिन वह हर साल एक साल आगे खिसक जाता है। वैकल्पिक राजनीति की बात करने वाली आम आदमी पार्टी भी असहमति से निपटने में परंपरागत पार्टियों से ज्यादा अलग नहीं है।
होली वर्जनाओं से मुक्ति का त्योहार है, लेकिन वह गले मिलने का भी त्योहार है। वह दूसरे को स्वीकार करने और विरोधी को मित्र बनाने का त्योहार है। हमारे यहां इन दिनों विरोधी को मित्र बनाने से मित्र को दुश्मन बनाने की प्रतिभा ज्यादा नजर आ रही है, लेकिन अगर होली के बहाने ही कुछ मित्रता का संचार हो जाए, तो सांप्रदायिक और जातिगत झगड़े कम हो जाएं, संसद सचमुच वह काम करे, जिसके लिए वह बनी है, समाज में महिलाओं और कमजोर वर्गों की स्थिति ज्यादा सुरक्षित हो जाए और उल्लास का माहौल होली से दिवाली और फिर दिवाली से होली तक बना रहे। होली में ढेर सारे अलग-अलग रंग बिखेरे जाएं, थोड़ा-बहुत कीचड़ भी ‘आप’ शैली में उछल जाए तो कोई बात नहीं, लेकिन मन में सबके लिए शुभकामनाएं हों और सबको साथ लेकर चलने की इच्छा हो।

 

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