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शाश्वत मूल्यों के दीप

इस बार दिवाली पर भारतीय जनता पार्टी के समर्थक विशेष उत्साह में होंगे और कांग्रेस तथा कुछ अन्य पार्टियों के समर्थक कुछ बुझे दिल के साथ बैठे होंगे। हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों ने कुछ के...

शाश्वत मूल्यों के दीप
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 22 Oct 2014 09:40 PM
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इस बार दिवाली पर भारतीय जनता पार्टी के समर्थक विशेष उत्साह में होंगे और कांग्रेस तथा कुछ अन्य पार्टियों के समर्थक कुछ बुझे दिल के साथ बैठे होंगे। हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों ने कुछ के लिए खुशी और किसी के लिए दुख का माहौल बना दिया है, लेकिन दिवाली पर दीये सबके घरों में जलेंगे, दिवाली सभी मनाएंगे। पर्व-त्योहार कुछेक अपवादों को छोड़कर हर स्थिति में मनाए जाते हैं, क्योंकि उनका एक संदेश यह भी होता है कि अच्छा-बुरा आता-जाता रहता है, लेकिन त्योहारों की जो मूल भावनाएं हैं, वे शाश्वत हैं। त्योहार मनाकर हम यह दर्शाते हैं कि सुख-दुख हर्ष-खेद के बावजूद जीवन एक उत्सव है और उसे आनंद के साथ मनाना चाहिए। दिवाली का शाश्वत संदेश यह माना जाता है कि अंधकार पर प्रकाश की विजय होती है, एक छोटा-सा दीया भी अंधकार को भेद सकता है, इसलिए हमें प्रकाश की शक्ति पर विश्वास करना चाहिए। दिवाली की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक परंपरा कुछ भी हो, लेकिन दिवाली की वास्तविक शुरुआत तब हुई होगी, जब पहली बार मनुष्य ने यह जाना होगा कि रात में अंधकार अनिवार्य नहीं है, आग को सहेजकर रात के अंधकार से भी जूझा जा सकता है। उस आदिम आग और प्रकाश के शाश्वत उत्सव को तात्कालिक सुख-दुख या हानि-लाभ की तराजू में तो नहीं तौला जा सकता।

जैसे-जैसे मानव सभ्यता की उम्र बढ़ रही है और अपने इतिहास और परंपराओं का हमारा ज्ञान बढ़ रहा है, वैसे-वैसे शाश्वत मूल्यों पर हमारा विश्वास बढ़ना चाहिए था, लेकिन दुर्भाग्य से हो इसका उल्टा रहा है। हमारे जीवन में तात्कालिकता का महत्व बढ़ने लगा है। जो चाहिए, जो होना है, वह अभी मिलना चाहिए, अभी होना चाहिए, दूरगामी नजरिये से उसके नतीजे कुछ भी हों। इसी क्षण सफलता की चाह में हमने अपने मानवीय मूल्यों, सामाजिक-सांस्कृतिक मर्यादाओं के साथ अपनी धरती, हवा और पानी को भी भारी नुकसान पहुंचाया है। जाने-जनजाने हम प्रकाश की नहीं, बल्कि अंधकार की ताकतों के साथ हो गए हैं, भौतिक रूप से भले ही हमने अपने चारों ओर रोशनी की चकाचौंध कर ली है। हमारे समाज में होने वाला हर परिवर्तन, हर उथल-पुथल यह बता रही है कि समृद्धि और खुशहाली का आधार न्यायपूर्ण और संतुलित विकास है, भले ही उसमें कितनी भी देर क्यों न लगे या किसी के व्यक्तिगत संकीर्ण स्वार्थ को ठेस पहुंचे। इसी तरह, हमें यह भी नए सिरे से सीखने की जरूरत है कि समाज और राजनीति में प्रतिद्वंद्विता हो सकती है, लेकिन दुश्मनी नहीं। अपने सार्वजनिक जीवन को हमने जितनी कड़वाहट से भर दिया है, उसे त्योहारों की कोई भी मिठाई कम नहीं कर सकती।
हमारा देश बड़े परिवर्तनों से गुजर रहा है। कई ऐसे समूह, जो दबे-कुचले थे, वे अब अपनी न्यायपूर्ण जगह के लिए आग्रह कर रहे हैं। औरतें बराबरी के लिए संघर्ष कर रही हैं। दलित और आदिवासी आगे बढ़ने की भरसक कोशिश कर रहे हैं। समाज में जब इतनी गतिशीलता होगी, तो अस्थिरता भी होगी ही। लेकिन इस प्रक्रिया में आर्थिक उदारीकरण से कई पुराने ढांचे टूट रहे हैं या कई दुराग्रही और हिंसक प्रवृत्तियां भी सामने आ रही हैं। जरूरत यह है कि इन परिवर्तनों के प्रति उदारता और सहिष्णुता बरती जाए और साथ ही दूसरों की बात समझने की लगातार कोशिश की जाए। यह भरोसा होना जरूरी है कि आखिरकार प्रकाश की विजय होगी और यह भी कोशिश होनी चाहिए कि हम प्रकाश की पक्षधर ताकतों के साथ रहें। प्रकाश न्याय है, सहिष्णुता है, उदारता है और परदुख कातरता है। जरूरत दिवाली के इसी संदेश को सुनने और उस पर अमल करने की है।

 

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