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मलेरिया का टीका

कुछ बीमारियां ऐसी हैं, जो मानव इतिहास के साथ जुड़ी हुई हैं और इतिहास में इनकी बड़ी भूमिका भी रही है। ऐसी ही एक बीमारी मलेरिया है। मच्छर तो कई लाख साल से दुनिया में मौजूद हैं, लेकिन मलेरिया की शुरुआत...

मलेरिया का टीका
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 26 Jul 2015 07:14 PM
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कुछ बीमारियां ऐसी हैं, जो मानव इतिहास के साथ जुड़ी हुई हैं और इतिहास में इनकी बड़ी भूमिका भी रही है। ऐसी ही एक बीमारी मलेरिया है। मच्छर तो कई लाख साल से दुनिया में मौजूद हैं, लेकिन मलेरिया की शुरुआत करीब 10,000 साल पहले तभी हुई, जब इंसान ने खेती करना शुरू किया, यानी मानव सभ्यता की शुरुआत के साथ ही मलेरिया की भी शुरुआत हुई। आज भी मलेरिया काबू में नहीं आया है और हर साल करोड़ों लोग इसके शिकार होते हैं। अनुमान है कि तकरीबन 60,000 से एक लाख लोग हर साल मलेरिया से मरते हैं। मलेरिया से मरने वाले ज्यादातर लोग मध्य अफ्रीका में रहते हैं। इनमें ज्यादा बड़ी तादाद 15 साल से कम उम्र के बच्चों की होती है। अब एक अच्छी खबर यह है कि यूरोप के दवा नियंत्रक संस्थान ने मलेरिया के एक टीके को मंजूरी दे दी है और इन देशों की सरकारों की मंजूरी के बाद यह टीका वहां बच्चों को लगाया जाएगा। यह मलेरिया का पहला टीका है, जिसे इस्तेमाल की मंजूरी मिली है।

भारतीयों को इस टीके का फायदा नहीं मिलेगा, क्योंकि मलेरिया परजीवी की जिस प्रजाति प्लाज्मोडियम फाल्सिपेरम के खिलाफ यह कारगर है, वह प्रजाति भारत में आम नहीं है। भारत में प्लाज्मोडियम वाइवेक्स नामक प्रजाति आम तौर मिलती है। प्लाज्मोडियम फाल्सिपेरम ज्यादा खतरनाक और जानलेवा प्रजाति है, इसलिए उसके खिलाफ टीका बनाने पर ज्यादा जोर था। लगभग तीस साल में 2,600 करोड़ रुपये टीका विकसित करने पर खर्च किए गए, तब जाकर यह पहली कामयाबी मिली है। यह टीका भी सिर्फ 36 प्रतिशत लोगों में प्रतिरोध पैदा करने में कामयाब है। मलेरिया का टीका बनना इतना मुश्किल नहीं था, पर यह गरीब देशों की बीमारी है और दवा कंपनियों की दिलचस्पी उसमें इतनी नहीं थी। अगर अमीर देशों की बीमारियों या एड्स के मुकाबले मलेरिया के टीके की खोज में लगे पैसे को देखें, तो यह कुछ भी नहीं है। वह तो भला हो बिल और मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन का, जिसने अफ्रीका में मलेरिया को नियंत्रित करने के लिए काफी धन लगाए। इस टीके के विकास में भी इसी फाउंडेशन की मुख्य भूमिका है। मलेरिया का टीका बनाने के लिए प्रकृति ने ही संकेत दे रखे हैं। जिन लोगों को लंबे वक्त तक मलेरिया होता है, उनके शरीर में धीरे-धीरे अपने आप मलेरिया का प्रतिरोध विकसित हो सकता है। इसका अर्थ है कि इंसानी शरीर में मलेरिया का मुकाबला करने वाले तत्व होते हैं। दिक्कत यह है कि मलेरिया का परजीवी शरीर में बड़ी तेजी से अपनी संख्या बढ़ाता है और अपने जीवन चक्र में वह कई रूप बदलता है। ऐसे में किस रूप पर किस तरह से आक्रमण किया जाए यह तय करना मुश्किल होता है।

वैसे एक सदी पहले मलेरिया परजीवी का इस्तेमाल सिफलिस जैसी बीमारियों के इलाज के लिए टीके के रूप में करने की कोशिश की गई थी। इन बीमारियों के पीड़ित लोगों के शरीर में मलेरिया परजीवी डालकर इलाज की ईजाद करने वाले डॉक्टर को नोबेल पुरस्कार भी मिला। मगार इलाज का यह तरीका तब रोक देना पड़ा, जब यह देखा गया कि मरीजों की मूल बीमारियों का इलाज तो अक्सर हो जाता था, लेकिन लगभग 15 प्रतिशत मरीज मलेरिया से मर जाते थे। यह नया टीका एक बार प्रचलन में आ जाने के बाद इसको ज्यादा प्रभावी बनाने की कोशिशें भी कामयाब हो सकती हैं। यह जरूरी इसलिए है, क्योंकि मौसम चक्र जिस तरह बदल रहा है, उसमें मलेरिया नए इलाकों में भी फैल सकता है। मच्छर और मलेरिया परजीवी में अपने को नई परिस्थितियों में ढालने की जबर्दस्त क्षमता है। इसलिए समय रहते मलेरिया को रोकना जरूरी है।

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