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कामयाब कप्तान

यह अंदाजा तो था कि ऑस्ट्रेलिया की सीरीज महेंद्र सिंह धौनी की आखिरी टेस्ट सीरीज होगी,  लेकिन वह अचानक तीसरे टेस्ट के बाद संन्यास ले लेंगे,  यह शायद ही किसी ने सोचा होगा। वह चौथे टेस्ट की...

कामयाब कप्तान
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 30 Dec 2014 07:51 PM
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यह अंदाजा तो था कि ऑस्ट्रेलिया की सीरीज महेंद्र सिंह धौनी की आखिरी टेस्ट सीरीज होगी,  लेकिन वह अचानक तीसरे टेस्ट के बाद संन्यास ले लेंगे,  यह शायद ही किसी ने सोचा होगा। वह चौथे टेस्ट की कप्तानी करने के लिए भी नहीं रुके। इस सीरीज के बाद एकदिवसीय विश्व कप होगा और उसके बाद संभवत: धौनी एकदिवसीय क्रिकेट भी छोड़ देंगे। पिछले विश्व कप की जीत के बाद ही धौनी ने यह संकेत दिया था कि वह टेस्ट क्रिकेट छोड़ना चाहते हैं,  ताकि एकदिवसीय और टी-20 क्रिकेट में अपने करियर पर ध्यान दे सकें। स्थितियां ऐसी बनती रहीं कि वह टेस्ट क्रिकेट छोड़ नहीं पाए और इस विश्व कप के ठीक पहले ही उन्होंने टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह दिया। पिछले लंबे दौर में धौनी का बतौर कप्तान रिकॉर्ड टेस्ट क्रिकेट में अच्छा नहीं रहा है। खासकर विदेशी मैदानों पर मजबूत टीमों के खिलाफ भारत बहुत खराब खेला। 2011 से भारत 22  ऐसे टेस्ट मैचों में 13 हारा और सिर्फ दो जीता। ऑस्ट्रेलिया व इंग्लैंड में तो सारे टेस्ट मैच हार गया।

इसके बावजूद धौनी भारत के सबसे सफल टेस्ट मैच कप्तानों में एक हैं। जिन 60 टेस्ट मैचों में वह कप्तान रहे,  उनमें से भारत 27 मैच जीता और 18 हारा। लेकिन सफलता का दौर उनकी कप्तानी का शुरुआती समय था। एक दौर में भारत को नंबर-1 टेस्ट टीम का दर्जा भी मिल गया था,  लेकिन वह दर्जा छिन भी जल्दी ही गया। बाद में उनके खाते में नाकामियां ही ज्यादा दर्ज हुईं। इन नाकामियों का सारा दोष धौनी पर नहीं डाला जा सकता। पहले उनकी टीम में सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, वीवीएस लक्ष्मण, विरेंदर सहवाग और राहुल द्रविड़ जैसे बड़े बल्लेबाज थे, जो किसी भी टीम के खिलाफ कहीं भी अच्छा प्रदर्शन कर सकते थे। इन खिलाड़ियों की नाकामी और उनके रिटायर होने के साथ ही भारत का प्रदर्शन भी गिरने लगा।

धौनी एक नई मजबूत टेस्ट टीम नहीं बना पाए। यह भी दिखाई देता था कि उनका मन टेस्ट क्रिकेट से ज्यादा छोटे दौर के क्रिकेट में ज्यादा रमता है। यह इस बात से भी जाहिर होता है कि टेस्ट क्रिकेट में उनका बल्लेबाजी औसत 38.09 और एकदिवसीय क्रिकेट में 52.85 है। टेस्ट क्रिकेट की कप्तानी में भी वह वैसी कल्पनाशीलता नहीं दिखाते थे, जैसी कल्पनाशीलता उनकी एकदिवसीय या टी-20 की कप्तानी में दिखती है। टेस्ट मैच में उनकी कप्तानी पर संदेह बना रहा,  लेकिन बतौर खिलाड़ी वह मूल्यवान थे, इसमें कोई शक नहीं। वह बहुत बड़े विकेटकीपर नहीं थे, लेकिन उनके जैसी स्टंपिंग और रन आउट करने वाला शायद ही कोई और हो। पिछले कुछ वक्त से उनकी विकेट कीपिंग में भी काफी कमजोरी दिखने लगी थी, शायद उनकी उंगलियों पर लगी चोटें अपना असर दिखा रही थीं। न उनकी बल्लेबाजी, न विकेट कीपिंग तकनीकी रूप से बहुत अच्छी थी। पर उनमें जबर्दस्त स्वाभाविक प्रतिभा है और साथ में खेल की समझ व चतुराई भी, जिससे वह कामयाबी की इस ऊंचाई तक पहुंच गए।

वह नए जमाने के नए खिलाड़ी हैं,  जो तेज गति के क्रिकेट को ज्यादा पसंद करते हैं,  टेस्ट मैच का शास्त्रीय स्वरूप, जिन्हें बहुत रास नहीं आता। यह स्वीकार करना होगा कि धौनी के दौर में भारतीय क्रिकेट ने एक नए दौर में कदम रखा, भारतीय क्रिकेट और भारतीय खिलाड़ियों की छवि इस बीच बहुत बदल गई है। उनके संन्यास का भी यही समय ठीक है। उनके संरक्षक एन श्रीनिवासन की स्थिति भी डांवाडोल है। यह टेस्ट सीरीज भारत हार जरूर गया है, लेकिन अब एक नई जुझारू टीम बनती दिख रही है। तमाम तरह के विवादों के बावजूद भारत के अब तक के सबसे सफल टेस्ट कप्तान के खिताब के साथ महेंद्र सिंह धौनी रिटायर हो रहे हैं।

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