उम्र की गलतफहमी
वह हैरिएट थॉम्पसन के बारे में पढ़ रहे थे। जैसे-जैसे हैरिएट के बारे में जानते गए, उनकी यह गलतफहमी दूर होती गई कि कुछ करने के लिए उम्र मायने रखता है। अभी तक वह अपनी 50 की उम्र के कारण खुद को चुका हुआ...
वह हैरिएट थॉम्पसन के बारे में पढ़ रहे थे। जैसे-जैसे हैरिएट के बारे में जानते गए, उनकी यह गलतफहमी दूर होती गई कि कुछ करने के लिए उम्र मायने रखता है। अभी तक वह अपनी 50 की उम्र के कारण खुद को चुका हुआ मान रहे थे, जबकि हैरिएट ने 92 साल की उम्र में मैराथन जीता था। वह भी तब, जब वह दो-दो बार कैंसर जैसी बीमारी को मात दे चुकी थीं।
यह एक सामान्य-सी बात है कि जैसे ही आप युवावस्था से अधेड़ावस्था की ओर बढ़ते हैं, खुद के सामर्थ्य पर वह विश्वास नहीं रह जाता, जैसा पहले था। आपको पुरानी चीजों का एक्सपर्ट भी नहीं माना जाता और नई चीजों के योग्य भी नहीं। ऐसी सोच बूढ़ा होने की पहली शर्त होती है।
एक्सपर्ट मानते हैं कि समय के प्रभाव का न्यूरोटिक डर ही बुढ़ापे का कारण है, और यह न्यूरोटिक डर 38-42 साल के बाद सक्रिय हो जाता है। द मैजिक ऑफ थिंकिंग बिग के लेखक डेविड जे श्वार्ट्ज कहते हैं, 'उम्र की ढलान पर आपकी जिंदगी में मुश्किलें क्यों बढ़ जाती हैं, यह विषय नाटकों और पत्रिकाओं के लेखों में लोकप्रिय है, इसलिए नहीं कि इसमें सच्चे तथ्य हैं, बल्कि इसलिए कि बहाना ढूंढ़ने वाले बहुत से लोग इसी तरह के नाटक देखना चाहते हैं और इसी तरह के लेख पढ़ना चाहते हैं।'
श्वार्ट्ज की बातें सोलह आने खरी हैं। हम इस सामान्य सच्चाई से दूर हैं कि मस्तिष्क ही सबसे बड़ा बुनकर, आर्किटेक्ट, मूर्तिकार और डिजाइनर है और मस्तिष्क मन की ही तरह कभी बूढ़ा नहीं होता।
विख्यात नाटककार जॉर्ज बर्नार्ड शॉ तो नब्बे साल की उम्र में भी सक्रिय थे और उनके मस्तिष्क की कलात्मक गुणवत्ता कभी शिथिल नहीं हुई। वह कहते थे कि इंसान बूढ़ा तब होता है, जब वह अपने जीवन में दिलचस्पी खो देता है। उनके अनुसार, हम मरते दम तक युवा रह सकते हैं। बिल्कुल 20 साल की उम्र वाले।